क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि , कांग्रेस के शासनकाल में जैसे ही कोई बड़ी आर्थिक अनियमितता या घोटाले की जानकारी आम लोगों के बीच पहुँच कर चर्चा का विषय या मुद्दा बनती थी ,ठीक उसके आसपास -देश में कहीं न कहीं कोई आतंकी घटना विस्फोट हमला आदि होता था जिसमे सैकड़ों निर्दोष मारे जाते थे | सबका ध्यान उस घपले घोटाले से हट कर आतंकवाद और उससे जुड़ी समस्याओं की तरह चला जाता था -बकौल अर्नब – ये रिश्ता क्या कहलाता है -पूछता है भारत |
ऐसी बातों पर यकीन और अधिक तब हो जाता है जब लोग देख रहे हैं की पिछले छः वर्षों में एक भी सिविल नागरिक की जान किसी भी आतंकी घटना में नहीं गई है बेशक इसके लिए हमारे फ़ौजी सपूतों ने पिछले दिनों सर पर कफ़न बाँध कर जो ऑपरेशन क्लीन जैसा स्पष्ट और कठोर मिशन चलाया ,उसमे बहुत से रण बाँकुरों ने अपने प्राणों की आहुति दी और अब भी दे रहे हैं , वो सरहद की हर सीमा पर चट्टान की तरह खड़े हैं हमारे लिए , घर के अंदर छिपे दीमकों को भी लगातार ख़त्म किया जा रहा है ,हर तरीके से |
तो क्या कांग्रेस की सरकार अपने घोटालों को छुपाने दबाने के क्रम में ऐसे हथकंडे भी अपनाती थी ? बिलकुल जम्मू कश्मीर में रुबिया सैय्यद अपहरण कांध और फिरौती में पांच आतंकियों की रिहाई वाला सारा काण्ड इतना भी पुराना नहीं है कि बिलकुल ही याद न आए |
भाजपा की पिछली सरकार एक चतुर विद्यार्थी की तरह सत्ता की कक्षा में बैठने के बाद धैर्यपूर्वक सब कुछ देखती परखती रही | देश को संचालित करने वाली नीति और रीति अब राष्ट्रवादी विचार के साथ साम्य रखने वाली ही होगी इसे कार्यमूर्त देने ,वरीयता के आधार पर मुद्दों और समस्याओं को पटल पर रखने उनका रास्ता निकालने के दुरूह काम में लगी रही |
कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा ,भानुमति ने कुनबा जोड़ा ” तो इस चुनाव से ठीक पहले अचानक ये कुनबा अपने आप एक बार फिर से जुड़ गया वही बरसात के समय टर्र टर्र के मेंढक सामान | कुल 22 तो स्वघोषित प्रधानमंत्री ही थे और जिन दीदी जी ने इस बड़े मोर्चे को आहूत किया था वो कभी “जय श्री राम ” का नारा सुनते ही अपनी फ़ौज और पुलिस चढ़वा दिया करती थी सामने से आती आवाज़ पर | नतीजे पिछले चुनाव से अधिक दुखदायी साबित हुए इनके लिए, रही सही कसर अदालत से पड़ते चाबुक ने पूरी कर दी |
नागरिकता संशोधन कानून के लागू होने के बाद भारत के किसी भी मुस्लिम नागरिक पर रत्ती भर भी प्रभाव पड़ने की कोई सूचना ,कोई घटना आज तक संज्ञान में नहीं आई है ,आएगी भी नहीं क्यूंकि ये उनसे दूर दूर तक सम्बद्ध नहीं है | ये असल में इस कानून का विरोध और सिर्फ इसका ही विरोध जैसा था भी नहीं | अब जबकि जांच एजेंसियां अपने अन्वेषण में सारे तथ्य और साक्ष्य की कड़ियाँ जोड़ रही है तो बिलकुल ठीक वही और वैसा ही सच सामने निकल कर आ रहा है जैसा कि अपेक्षित था |
तीन तलाक पर नया कानून , विशेष रूप से भारतीय संविधान की छाती पर लदा हुआ धारा 370 , श्री राम जन्मभूमि के पक्ष में जनमत और न्यायादेश भी , बार बार पाकिस्तान की पिटाई ,देश में बढ़ती हुई राष्ट्रवाद की भावना। …..आदि वो कुछ मुद्दे थे जब कभी भी उपद्रवी विचार वाले अपनी सोच को अंजाम दे सकते थे |
मगर जब खिलाड़ी घाघ हों तो वे खेल कौशल से नहीं खेल को दांव पेंच से खेलने लगते हैं | एक तरफ कुछ चुनिंदा सोच वाले विश्व विद्यालय जो पहले , भारत तेरे टुकड़े होंगे जैसे मंसूबे पाल कर कबीलाई सभ्यता में अपनी पूर्ण आस्था का परिचय देते रहे थे उन्होंने बौद्धिक मोर्चा खोला , चिट्ठी पत्री ,पुरस्कार वापसी , ट्विट्टर ट्विट्टर चीत्कार मारना ,धरना देना आदि कर रहे थे तो दूसरी तरफ कुछ बड़े वाले कट्टर झाड़ू छाप पार्टी के संग मिले होने के बावजूद भी ,मुहल्लों में हर घर में पत्थर ,डंडे ,सरिया ,तेज़ाब ,गुलेल आदि जैसे अमन की वस्तुएं इकट्ठा कर रहे थे |
एक सिर्फ मोटे अनुमान के अनुसार उस समय नागरिकता संशोधन कानून के विरूद्ध हुए उपद्रव दंगों में सिर्फ भारतीय रेलवे की सात सौ करोड़ की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया था , आम लोगों के घर ,मकान दूकान दुनिया जो लुटी वो सबने देखि और जिनके द्वारा लूटी गई उनमे से एक भी एक भी ऐसा नहीं है जो ये प्रमाणित कर पाया हो कि उक्त नियम और कानून की वजह से उसे लेश मात्र भी दिक्कत आई हो |
असम को सबसे पहले झोंका गया था इस आग में , एक से बढ़ कर एक हस्तियां उस समय आगे आईं थी ,असम को उकसाने के लिए | आज असम को सच में ही जरूरत है उन तमाम लोगों की जो अबसे कुछ दिनों पहले मीडिया में मुंह चमकाने के मारे ही सही वहाँ आग में घी डालने का काम कर रहे थे उन सबको आगे आकर असम के एक एक घर तक पहुँचना चाहीये , ये होता है साथ देना |
असम के बाद बंगाल और उसके आसपास सबसे ज्यादा आराजकता देखने को मिली थी और ये भी कि आज के समय में यदि राज्य सरकार चाहे तो अपनी सरपरस्ती में पूरी बेशर्मी से सामूहिक उपद्रव ,तोड़फोड़ ,आगजनी को अंजाम देते हुए चुपचाप देख कर उन्हें मौन सहमति दे सकती है | महाराष्ट्र ,बिहार और फिर दिल्ली एक सबसे भयंकर दंगे तक सब कुछ एक बड़ी साजिश की तरह रचा गया था |
बानगी सिर्फ इस बात से ही पता चलती है की , असम को भारत से पूरी तरह काटने जैसे खतरनाक बात का आह्वान करने वाले शर्जील को कोई भी अदालत किसी भी सूरत में जमानत पर भी छोड़ने को राज़ी नहीं है | और इनके जैसे तमाम बौद्धिक विषवमन करने वाले मज़हबी कट्टरता से पीड़ित सोच वालों ने पैसे की ,हथियारों की , संचार तकनीकों की , आदि जिस भी प्रकार की सहायता से शत्रु राष्ट्रों से मिल सकती थी ली |
उत्तरप्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इन दंगों और दँगाईयों से निपटने के लिए इतने कठोर और सपष्ट उपाय किये उसे देख कर फिर सूबे में शासन व्यवस्था ऐसी दुरुस्त हुई कि बाद में सुना अमेरिकी सरकार ने भी उसे रास्ते पर चल कर ऐसे दंगाइयों को सही सबक सिखाया |
अयोध्या प्रकरण पर शुरू से ही नज़र बनाए हुए एक विश्लेषक कहते हैं कि “एक क्षण को कल्पना करिये कि मुकदमे का फैसला हिन्दुओं के पक्ष में न जाकर मस्जिद के पक्ष में गया होता तो क्या तब भी मुस्लिम समुदाय की इतनी सौम्य प्रतिक्रिया होती ? अच्छा कल्पना करिये कि 6 दिसंबर 1992 को उस ढाँचे को नहीं गिराया गया होता और अब अदालती आदेश के बाद राम मंदिर निर्माण कल उसे प्रशासनिक आदेश के तहत ध्वस्त किया जाना कितना सहज होता ?
इस देश के भीतर बैठ कर ,इस देश के सारे संसाधनों का उपभोग करते हुए बार बार इस देश के प्रति , देश मत के प्रति , फ़ौज ,पुलिस के प्रति अविश्वास जता कर षड्यंत्र करने वाले गिरोह को अब ये मान और समझ कर चलना चाहिए कि लोग अब सच में ही उतने मासूम नहीं रहे कि वे इतने बड़े सच को नहीं देख पाएं | ये देश अब वैचारिक सामाजिक और हर रूप से एक भारत श्रेष्ट भारत होने की राह पर अग्रसर है तो फिर देश के भीतर ऐसे ऐसे षड्यंत्र रच कर देश को गृह युद्ध की आग में धकेलने की कोशिश करने वाले निरंतर बेनकाब हो रहे हैं |
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