पंडित मदन मोहन मालवीय जी का जन्म 25 दिसंबर 1861 को हुआ था , वह एक भारतीय विद्वान, शिक्षा सुधारक और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका के लिए उल्लेखनीय राजनीतिज्ञ थे, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष और अखिल भारतीय हिंदू महासभा के संस्थापक थे। उन्हें सम्मानपूर्वक पंडित मदन मोहन मालवीय के रूप में संबोधित किया गया तथा महामना के रूप में भी संबोधित किया गया।
मालवीय ने भारतीयों के बीच आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा दिया , वह 1919-1938 तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति थे।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में स्थित एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। इसे प्रायः बीएचयू (बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी) कहा जाता है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना (वाराणसी हिन्दू विश्वविद्यालय एक्ट, एक्ट क्रमांक 16, सन् 1915) महामना पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा सन् 1916 में बसंत पंचमी के पुनीत दिवस पर की गई थी।
उन्हें विशेष रूप से कैरिबियन में भारतीय इंडेंट्योर सिस्टम को समाप्त करने में उनकी भूमिका के लिए भी याद किया जाता है। इंडो-कैरिबियाई लोगों की मदद करने के उनके प्रयासों की तुलना महात्मा गांधी द्वारा भारतीय दक्षिण अफ्रीकी लोगों की मदद करने के प्रयासों से की जाती है।
मालवीय भारत में स्काउटिंग के संस्थापकों में से एक थे। उन्होंने 1909 में प्रयागराज से प्रकाशित एक अत्यंत प्रभावशाली, अंग्रेजी अखबार, द लीडर की स्थापना की। वे 1924 से 1946 तक हिंदुस्तान टाइम्स के अध्यक्ष भी रहे। उनके प्रयासों के फलस्वरूप 1936 में इसका हिंदी संस्करण हिंदुस्तान दैनिक नाम से लॉन्च हुआ।
उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, 24 दिसंबर 2014 को उनकी 153 वीं जयंती से एक दिन पहले दिया गया था।
मालवीय जी का हिन्दू सभ्यता और संस्कृति के शाश्वत मूल्यों में अटूट विश्वास था और उनका यह विश्वास ही उनके जीवन तथा कार्यपद्धति का मुख्य आधार था। मालवीय जी ने राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के लिए एक व्यापक सिद्धांत का प्रतिपादन किया। उनका कहना था कि देश के नैतिक, बौद्धिक और आर्थिक साधनों का परिवर्धन करने के लिए लोगों में लोककल्याण और लोकसेवा की भावना उत्पन्न करना भी नितांत आवश्यक है। मूलतः एक ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के कारण वे अत्यधिक धार्मिक विश्वासी थे।
पंडित मदन मोहन मालवीय जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष चुने गए, वर्ष 1909 में लाहौर, 1918 और 1930 में दिल्ली तथा 1932 में कोलकाता में कांग्रेस के अधिवेशन के अध्यक्ष रहे। मालवीय जी ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेकर 35 वर्ष तक कांग्रेस की सेवा की तथा राष्ट्र सेवा में अपना योगदान दिया।
वह एक सच्चे देशभक्त थे जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन देशहित में समर्पित कर दिया ।
12 नवंबर 1946 को मालवीय जी का निधन हो गया था और वे देश को स्वतंत्र होते नहीं देख सके थे।
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