राम लला पर आस्था रखने वाले और मूर्ति पूजा करने वाले इन मुस्लिमों को मौलानाओं द्वारा स्वीकार किया जाएगा या इन्हें काफिर मानकर कुचला जाएगा ?

कई मुस्लिम राम मंदिर के भूमि पूजन से जुड़ना चाहते हैं, कोई मिट्टी लाना चाहता हैं, कोई जल चढ़ाना चाहता हैं। इनमें से ज्यादातर भगवान राम से अपने आत्मा के संबंध को पहचान रहे हैं। अपने पूर्वजों की समझ को स्वीकार रहे हैं और दिल दिमाग खोलकर जीना चाहते हैं।

ये लोग ऐसा सोच पा रहे हैं, कह पा रहे हैं और शायद इनमें से कुछ जब मंदिर बन जायेगा तो भगवान राम की मूर्ति के दर्शन पूजा भी करेंगे । ये हिन्दू धर्म में सम्भव हैं। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या ये खुलापन ये स्वीकार्यता एक तरफा रहेगी ? क्या काबा में गैर मुस्लिम का जाना संभव हैं क्या?

जवाब हम सभी जानते हैं। लेकिन फिर भी हिंदुओं को असहिष्णु कहने वाले इस सच को छिपाते हैं। हिन्दू धर्म की सरलता और खुलेपन के कारण ही कोई मुस्लिम एक हिन्दू बहुल देश में ये कल्पना कर पा रहा हैं कि वो बिना धर्म परिवर्तन किए भगवान राम की जन्मभूमि में दर्शन पूजा कर सकता हैं।

ऐसे मुस्लिम जो भगवान राम से जुड़ाव महसूस कर रहे हैं, अयोध्या आना चाहते हैं, वो भूमि पूजन पर आएंगे या नहीं, ये बड़ी बात नहीं हैं, उसका निर्णय श्री राम जन्मभूमि ट्रस्ट ही करेगा। कोरोना काल में हिन्दू भी वहां बड़ी संख्या में नहीं जा पा रहे। लेकिन रामलला पर अपनी आस्था प्रकट करके, मूर्ति पूजा के प्रति अपनी ललक दिखाकर इन मुस्लिम समाज के कुछ लोगों ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया हैं – क्या इस्लाम इन्हें स्वीकार करेगा?

इस्लाम में किसी अन्य पर आस्था की अनुमति नहीं, मूर्ति पूजकों के लिए लिखित में भयानक सजाओं का उल्लेख हैं। भारत में अगर ये सिलसिला शुरू होता हैं तो ये अंतहीन होने जा रहा हैं।

आत्मा, पुनर्जन्म और कर्मफल पर लगभग हर भारतीय की स्वाभाविक समझ होती है, चाहे उसके पूर्वजों ने किसी भी कारण से धर्म परिवर्तन कर लिया हो।

रामलला के प्रति कई मुस्लिमों का सहज आकर्षण इसी समझ के कारण हैं। इस्कॉन का अनुभव बताता है कि कृष्ण भगवान के प्रति भी ऐसा ही आकर्षण कई मुस्लिमों को कृष्ण भक्ति की तरफ खींचता हैं।

भारत की पुण्यभूमि में ये खुलापन क्या इस्लाम के कट्टर मौलानाओं द्वारा स्वीकार किया जाएगा या भगवान राम के प्रति आस्था व मूर्ति पूजा करने वाले इन मुस्लिमों को काफिर घोषित कर दिया जाएगा?

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