अरविन्द केजरीवाल अभी हाल ही में अपने चुनावी सम्बोधनों में फिर से सबको बिजली फ्री , पानी फ्री , नौकरी फ्री आदि का टोकरा बेच कर आए हैं। ऐसा उन्होंने उत्तराखंड और गोवा , के मद्देनज़र किया। और ऐसा इसलिए भी किया क्यूँकि अपना फार्मूला वे पहले ही दिल्ली में एक नहीं दो दो बार दोहरा कर गद्दी पर बैठ गए हैं।
केजीरवाल अपनी कही बातों , घोषणाओं और वादों के प्रति कितने जवाबदेह और जिम्मेदार रह पाते हैं इसका सारा कच्चा चिट्ठा पिछले दिनों आये कोरोना काल के संकट में सबने देख ही लिया था। सबको मरता हुआ छोड़कर सिर्फ कोरी बयानबाजी कर विज्ञापन में लगी सरकार और उसके मुखिया अरविन्द केजरीवाल इतने ज्यादा ढीठ हो चुके हैं कि अपने किए के लिए न तो शर्मिन्दा होते हैं न ही माफी माँगते हैं। खासकर तब तक जब तक अदालत उन्हें ये एहसास करवाकर उनकी गलती के लिए माफ़ी नहीं मंगवाती।
कोरोना काल में दिल्ली के पलायन के लिए मजबूर किए गए लाखों मजदूरों , रेहड़ी पटरी लगाने वाले , लघु श्रमिकों और कामगारों को कूद कूद कर चीख चीख कर ये कहा गया कि यदि कोई किरायेदार अपने मकान का किराया नहीं चुका सकेगा तो उसका किराया सरकार देगी। ऐसी ही घोषणा बिजली के बिल और स्कूल की फीस के बाबत भी की गई थी। मगर मजाल है जो सरकार ने एक धेला भी किसी को दिया हो इन मद में।
इसी किसी शिकायत जब दिल्ली उच्च न्यायालय में संस्थापित एक याचिका में की गई तो अरविन्द केजरीवाल सरकार की तरह से पेश अधिवक्ता ने बताया कि ” अरविन्द केजरीवाल का कथन कहीं से भी पालन करने के उद्देश्य से नहीं कहा गया था ” वो महज एक बयान था जिसे अमलीकरण का जामा नहीं पहनाया जाना था।
न्यायालय यह जवाब सुनकर हैरत में पड़ गया और पूछा -तो क्या “आप” की सरकार का ईरादा अपने किए गए वादों का 5 प्रतिशत भी पूरा करने का नहीं था ? अदालत में केजरीवाल द्वारा इस बाबत दिए गए बयान को चलवाकर सुनवाया गया। अदालत ने माना कि किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री जब इस तरह की कोई घोषणा सार्वजनिक रूप से करता है तो वो अनुपालनीय होता है।
अदालत ने केजरीवाल सरकार को तगड़ी फटकार लगाते हुए ,इस विषय पर एक विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया है।
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