जब कार्ल मार्क्स ने अपनी किताब दास कैपिटल में कहा था कि धर्म अफीम है और इस वाक्य को लेकर सारे वामपंथी एकमत हैं कि कम से कम हिंदुत्व तोो अफीम है हीं। एक बेहतरीन वाकया अफगानिस्तान से देखने को मिला है। कल खबर थी कि अफगानिस्तान से अनारों का निर्यात बंद हो गया है तालिबानी शासन के कारण इसीलिए वहां के किसान अनारों के बाग़ उजाड़ कर अफीम की खेती कर रहे हैं। यह खबर दैनिक भास्कर की है। दैनिक भास्कर का ही चित्र में संलग्न कर रहा हूं।
भारत के बुद्धिजीवियों को कोई शक नहीं है कि इस्लाम एक शांतिप्रिय पंथ है और सारा विप्लव हिंदुत्व वादियों ने कर रखा है। उसी श्रेणी में सलमान खुर्शीद ने भी कह दिया है कि हिंदुत्व बोको हरम और आईसिस जैसा ही एक नफरती विचारधारा है। उन्होंने भी तालिबान को नफरती विचारधारा से अलग रखा है और मुझे इस पर पूरा यकीन है कि सलमान साहब सही कह रहे होंगे।
अब एक बात मुझे समझ में आती है कि तालिबान इस्लाम के हर फर्ज को निभाने वाला संगठन है। इस्लाम को बुतों से प्रॉब्लम है और शराब हराम है। लेकिन यह भी सच है कि किसी जिहादी अभियान में मरने के बाद मरने वाले जंगज़ुओं को ऊपरवाला ७२ हूरें और शराब का दरिया अता फरमाता है। खैर शराब और बुतों से इस्लाम को समस्या है इसीलिए तालिबानियों ने बामियान की बुद्ध प्रतिमाओं को नेस्तनाबूद कर दिया परंतु अफीम की खेती से इस्लाम को कोई समस्या नहीं है। अफीम , अफीम से बनने वाली नशीली वस्तु मार्फिन और उस मार्फिन से भी प्यूरीफाइड हेरोइन की बिक्री से इस्लाम की शांति को कोई फर्क नहीं पड़ता है। शांति भंग नहीं होती है। इस्लाम की शांति तो सिर्फ इस जहांँ में शराब पीने और अफगानिस्तान की विशालकाय बुद्ध की मूर्तियों से भंग होती है।
वैसे यह भी खबर है कि तालिबान ने अफगानिस्तान में अफीम की खेती पर रोक लगाने की घोषणा की है परंतु आंकड़े कुछ और ही कह रहे हैं।
भारत में इस्लाम को शांतिप्रिय धर्म मानने वाले वामपंथियों से बस एक सवाल है कि अफीम से इस्लाम को समस्या नहीं , इस्लाम से आपको समस्या नहीं तो फिर धर्म अफीम है यह किसने कहा है?
वाह ! कितनी शांतिप्रिय सोच है यह।
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