दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज भारतीय राजनीति के जिस पायदान पर हैं …उसतक उन्हें पहुंचाने में अटलजी के भरोसे का बड़ा हाथ है। अटलजी और नरेन्द्र मोदी का रिश्ता संघ के आदर्शों की गहराई लिए हुए…राष्ट्रप्रेम के प्रयोजन से परिमार्जित… निष्काम कर्म की ऊंचाई लिए हुए गुथा हुआ था। अटलजी अक्सर नरेंद्र मोदी के संघटन कौशल की तारीफ़ करते थे और मोदी से विशेष स्नेह रखते थे। कम ही लोग जानते हैं कि जब नरेंद्र मोदी सक्रिय राजनीति त्यागने का मन बनाकर अमेरिका गए थे तब अटलजी उन्हें कहा था कि ‘भागने से काम नहीं चलेगा’ और फिर अटलजी के कहने से मोदी को बीजेपी दफ्तर अशोका रोड में एक कमरा दिया गया था।
नरेंद्र मोदी दिल्ली में रहते हुए संघठन कौशल का काम देख रहे थे और 1995-1998 के गुजरात चुनावों में बीजेपी की जीत के शिल्पकार बनकर उभरे थे। 2001 में गुजरात भूकम्प के बाद पार्टी की विधानसभा उपचुनावों में करारी हार हुई थी और तभी से तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के खिलाफ आवाजें उठनी शुरू हो गईं थीं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक अक्टूबर 2001 में नरेंद्र मोदी दिल्ली में एक अंतिम संस्कार कार्यक्रम में थे , तभी उनके पास प्रधानमंत्री निवास से फोन आया और उन्हें PMO बुलाया गया। कहा जाता है कि तब प्रधनमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नरेंद्र मोदी पर भरोसा जताते हुए उन्हें गुजरात रवाना किया था और मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई थी। इसके बाद जो हुआ उसका गवाह इतिहास खुद है…2002, 2007, 2012 में गुजरात CM रहते हुए नरेंद्र मोदी 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बने। जाहिर है वाजपेयी जी के ‘अटल’ भरोसे का ही नतीजा है कि नरेंद्र मोदी आज भारत के प्रधानमंत्री हैं।
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