किस तरह से कांग्रेस सरकार के समय दिल्ली ही नहीं व देश के तमाम हिस्सों में नसबंदी का प्रोग्राम जबरन चलाया गया था उस पर यह लेख पढ़िए… इमरजेंसी लागू हुए तीन दिन बीत चुके थे।
संजय ने नसबंदी का प्रोग्राम सबसे पहले दिल्ली में लांच किया था – उस के बाद उन राज्यों में जहां कांग्रेस की सरकार थी। इस कार्यक्रम को लागू करवाने के लिए चार लोगो की टीम गठित की गयी -गवर्नर किशन चंद , नविन चावला , विद्याबेन शाह और रुखसाना सुल्ताना। सुल्ताना खुशवंत सिंह के भतीजे को तलाक दे चुकी थी – फिल्म लाइन से जुडी बेगम पारा की भतीजी थी। इत्र में नहायी , आँखों पर हमेशा धूप चश्मा चढ़ाये रुखसाना सुल्ताना संजय गाँधी की सबसे बड़ी फैन थी और वो किसी को भाव ना देती। सुल्ताना का काम एक बुटीक चलाना था और यही उसकी क्वालिफिकेशन थी। अमृता सिंह की माँ , सैफ की सास और सारा अली खान की नानी। बड़े बड़े नेता सुल्ताना के समक्ष मेमने नज़र आते थे। अब एक नज़र संजय गाँधी पर – सितम्बर 1976 , जब ये नसबंदी कार्यक्रम लांच हुआ था – उस समय संजय की आयु तीस थी – ना वो सांसद थे , ना किसी सरकारी नौकरी पर और ना कोई व्यापार – लेकिन ओहदा सबसे बड़ा। इतना बड़ा कि इंदिरा ने नसबंदी का काम संजय के हवाले कर दिया और किसी ने चू तक ना की
शुरुआत हुई दिल्ली की जामा मस्जिद के रिहाशी इलाको से , जहां विद्याबेन और सुल्ताना ने काम शुरू किया – कैंप लगाए – दोनों मरदाना और जनाना नसबंदी के। शुरू में किसी ने ध्यान ना दिया । सुल्ताना इत्र छिड़कती वहां की गलियों में घूमती और खवातीनो से दरख़्वास्त्र करती। पहले दिन १९ लोग , दुसरे दिन जीरो , तीसरे दिन तीन लोग कैंप में आये। संजय ने पैसा और वालंटियर बढ़ाये , खुद कैंप में बैठे तब भी २४ से ज्यादा लोग ना आये। अब तक प्रोग्राम स्वचछा से चल रहा था – कोई जोर जबरजस्ती नहीं थी। इनाम बढ़ाया गया -७५ रुपैये , एक टिन घी का और दो दिन की काम से छुट्टी। अब संजय ने dig पुलिस को बुलाया और लोगो को आने के किये कहा । ऊपर से सरकार ने भी १६ अप्रैल को आबादी दिवस घोषित कर दिया – सब कोंग्रेसी नेता इसी सुर में बयान देने लगे थे। अब इन सब के चलते रोज तीन सौ से ऊपर लोग कैंप में आने लगे थे। कुछ जगह ट्रांजिस्टर भी बाँट रहे थे ताकि ज्यादा लोग आये। अब ये प्रोग्राम up , mp , राजश्थान , बिहार , हरयाणा , ओरिसा , पंजाब , हिमाचल राज्यों में भी शुरू किया गया ।
दिल्ली का ट्रैक रिकॉर्ड ४१ प्रतिशत था और बाकी राज्य १६ प्रतिशत टारगेट पर चल रहे थे । संजय गाँधी खुद डेली सुबह रिपोर्ट लेते थे – टारगेट कितना मीट हुआ है । दिल्ली में उस एक साल में उतनी नसबंदी हो गयी जो पिछले दस साल में नहीं हुई थी। लेकिन अभी सैलाब आना बाकी था।
जब सब मुख्य मंत्री अपनी अपनी रिपोर्ट देते तो उन सबको आपस में तुलना करवा कर जलील किया जाता। इस तरह से हरियाणा – जहां बंसीलाल थे ने दमदार गति पकड़ी। राजस्थान भी पीछे ना था। अखबारों में साफ़ इंस्ट्रक्शन थे – कोई बुरी खबर ना छापी जाए। बल्कि बढ़िया खबर प्रिंट होती – कैसे अपनी ख़ुशी से लोग नसबंदी करवा रहे है – ऑस्ट्रेलियाई डॉक्टर की थीसिस छपती कि नसबंदी के बाद काम इच्छा और बढ़ जाती है आदि आदि। २ मौलवी के साथ भी संजय की फोटो छापी गयी जिन्होंने नसबंदी करवाई थी , ईसाई आर्चबिशप की भी अपील जारी हुई। अक्टूबर का महीना गजब का निकला – चाईबासा बिहार में एक डॉक्टर ने रिकॉर्ड ९२ नसबंदी करि एक दिन में ; गुजरात में दस हज़ार ऑपरेशन हुए पूरे महीने में ; भालकी कर्नाटक में बारह घंटे में दो हज़ार ऑपरेशन। आगरा में दो हज़ार भिखारियों को पकड़ा गया और १८०० को तुरंत ऑपरेट कर दिया गया एक दिन में ही।
सुल्ताना ने दिल्ली में अलग ही कहर ढा रखा था – छह कैंप वो चला रही थी – सबसे ज्यादा कुख्यात था दोजना हाउस कैंप – जिसे कबाड़ी बाजार वाले स्पॉन्सर कर रहे थे। दोजोना हाउस कैंप रोज सुबह दस बजे खुलता , चाय पिलाई जाती , दोपहर खाना मिलता , पूरे दिन गाने बजते – आओ नसबंदी करवाए। इनाम में ट्रांजिस्टर , डालडा और घडिया बांटी जाती। इस कैंप में छह बिस्तर थे और डॉक्टर के टीम के हेड थे – डॉक्टर निरोध बनेर्जी। जी हां नाम सही पढ़ा आपने – निरोध ! इस दोजोना हाउस में ही सबसे ज्यादा बर्बरता हुई थी और इस कैंप को सँभालने के लिए राजस्थान के पेशेवर अपराधियों को जिम्मेदारी दी गयी थी।
सुल्ताना ने संजय के तमाम काण्डो में अपनी प्रजेंस दी थी- कोई काम ऐसा ना था जिस में ये ना हो। मर्दमार लेडी की अम्मा अपनी बेटी से कम ना थी। संजय के एक तरफ़ सोनी दूसरी तरफ़ सुल्ताना। देखने वालों को महात्मा गांधी याद आ जाते थे।
आपातकाल के कुछ चर्चित नारे ::
नसबंदी के तीन दलाल – इंदिरा ,संजय और बंसीलाल
संजय की मम्मी बड़ी निकम्मी
ज़मीन गयी चकबंदी में , मकान गया हदबंदी में , दरवज्जे पर खड़ी औरत चिल्लाये – मेरा मरद गया नसबंदी में
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