बीते सप्ताह भारत की अध्यक्षता में संपन्न दो दिवसीय जी20 बैठक (9-10 सितंबर) का लब्बोलुआब क्या रहा? जिस प्रकार इस शक्तिशाली वैश्विक मंथन में भारत और उसकी कूटनीति का वर्चस्व दिखा, उसने सिद्ध कर दिया कि बाहरी एजेंडे के अनुसरण करने की बाध्यता को ‘नए भारत’ ने विशुद्ध राष्ट्रहित में मीलों पीछे छोड़ दिया है। अब नया भारत न केवल अपनी मूल सांस्कृतिक छत्रछाया में दुनिया के अन्य सभी सभ्य देशों के सामूहिक कल्याण के लिए प्रारूप बना रहा है, साथ ही ‘ग्लोबल साउथ’ अर्थात्— विश्व के दक्षिणी हिस्से का मुख्य प्रतिनिधि भी बनकर उभरा है। भारतीय नेतृत्व में अफ्रीकी संघ को जी20 में बतौर सदस्य सम्मिलित करना— इसका प्रमाण है।

भारत ने अपनी जी20 अध्यक्षता में जिन प्रमुख विषयों का निर्धारित किया, उसमें देश की मौलिक सांस्कृतिक पहचान और उसमें निहित विविधता से भी दुनिया को परिचय कराना भी रहा। मुख्य आयोजनस्थल ‘भारत मंडप’ में भारतीय वस्तुकला, कालजयी परंपरा और सांस्कृतिक धरोहरों की झलक— इसका मूर्त रूप है। यह उस दूषित नैरेटिव को भी ध्वस्त करने का एक सार्थक उपक्रम बना, जिसमें विशेषकर पिछले एक दशक से देश के स्वघोषित सेकुलरवादी, वामपंथी-जिहादी गठजोड़ और अन्य देशविरोधियों शक्तियों के साथ मिलकर विश्व में बहुलतावादी भारत की छवि भंजन और उसकी सनातन संस्कृति को धूमिल करने का एजेंडा चला रहे है।

पहले जब भी वर्ष 2014 से पूर्व, देश में कोई बड़ा अंतरराष्ट्रीय आयोजन होता था, तब वह अक्सर ब्रितानियों द्वारा बसाए और उन्हीं के नाम पर प्रचलित ‘लुटियंस दिल्ली’ या विज्ञान भवन या फिर इसके तीन-चार किलोमीटर की परिधि तक सीमित रहता था। परंतु इस बार भारत में आयोजित जी20 की दर्जनों परिचर्चाओं का समस्त देश न केवल साक्षी बना, अपितु उसमें जनता की भी भागीदारी रही। बीते साढ़े नौ माह में भारत के अलग-अलग 60 नगरों, जिसमें कश्मीर और ईटानगर भी शामिल रहे— उसमें जी20 समूह की 200 बैठकें हुई। इससे जहां सदस्य देशों के प्रतिनिधियों के साथ शेष दुनिया को भारत की विविधता और सुंदरता को अनुभव करने का अवसर मिला, तो वही यह भविष्य में जी20 का आयोजन कैसे किया जाए, उसका एक आदर्श मापदंड बन गया। पहले जी20 के आयोजन केवल सदस्य राष्ट्राध्यक्षों का सीमित रहते थे। परंतु इस बार भारत में हुआ सम्मेलन न केवल साधारणजनों तक पहुंचा, अपितु इसमें उनकी भागीदारी भी देखने को मिली।

इस पूरे आयोजन में भारत की कूटनीति ने धैर्य का परिचय दिया। जिस प्रकार एक के बाद एक जी20 की मंत्रिस्तरीय बैठकें बिना किसी आधिकारिक वक्तव्यों के समाप्त होती रही, तो मौके की ताक में बैठे देशविरोधी शक्तियों ने नैरेटिव बनाना प्रारंभ कर दिया कि भारत में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन बेनतीजा समाप्त हो जाएगा। इन्हीं कुप्रचार के बीच भारत, बतौर जी20 अध्यक्ष— विश्व के लिए बहुपक्षीय विकास बैंकों के सुधार, डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास आदि दीर्घकालीन विषयों को समायोजित करके उसका प्रारूप तैयार करता रहा। अंततोगत्वा, सदस्यों देशों के बीच भारत आम सहमति बनाने में सफल हुआ। प्रचंड कोरोनाकाल के बाद बीते डेढ़ वर्ष से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में यह सहमति इसलिए भी ऐतिहासिक है, क्योंकि जी20 समूह में जहां एक ओर यूक्रेन समर्थित अमेरिका और यूरोपीय देश हैं, तो दूसरी तरफ स्वयं रूस के साथ उसका समर्थक चीन देश भी हैं। ऐसी स्थिति में भारत द्वारा दोनों विरोधी पक्षों के बीच सफलतापूर्वक संतुलन बनाना किसी कीर्तिमान से कम नहीं है।

इसी जी20 सम्मेलन में छह हजार किलोमीटर (3500 कि.मी. समुद्री मार्ग सहित) लंबे भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (आईएमईसी) की घोषणा भी एक बड़ी उपलब्धि है। इसके लिए भारत, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ ने समझौता किया है। यह परियोजना चीन के बीआरआई परियोजना अर्थात ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव’ की काट के रूप में देखा जा रहा है, जो वैश्विक व्यापार के समक्ष एक चुनौती बना हुआ है।

अपनी कुटिल साम्राज्यवादी नीतियों के कारण चीन की कुदृष्टि अफ्रीकी देशों पर पहले से है। इस पृष्ठभूमि में भारत ने चीन की योजनाओं पर एक प्रकार से पानी फेरने का काम किया है। इसमें प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारतीय कूटनीति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस वर्ष जनवरी में ‘वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ’ शिखर सम्मेलन हुआ था, जिसमें 100 से अधिक देश शामिल हुए थे। इसमें भारत ने उनके हितों और चिंताओं को धैर्यपूर्वक सुना, जिसका प्रतिबिंब नई दिल्ली के जी20 घोषणापत्र में भी दिखता है। ऐसा नहीं कि चीन इसके विरोध में था, परंतु अपनी अध्यक्षता में भारत ने अफ्रीकी संघ को पहले ही सत्र में जी20 के पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल करके, चीन की भावी योजनाओं को झटका ही दिया है।

यह ठीक है कि ‘वेस्टर्न वर्ल्ड’ अर्थात् पश्चिमी दुनिया की तुलना में ‘ग्लोबल साउथ’ की स्पष्ट पहचान में अभी अभाव दिखता है, परंतु अफ्रीकी संघ के जी20 समूह में शामिल होने से यह निसंदेह आकार लेने लगेगा। ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं कि बदले वैश्विक समीकरणों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय कूटनीति अपने सभी पूर्ववर्तियों की तुलना में अधिक सार्थक और दूरदर्शी सिद्ध हो रही है। दिल्ली जी20 में 73 परिणाम और 39 संलग्न दस्तावेज सहित 112 कार्यों को अंतिम रूप देना— इसकी एक बानगी है।

जी20 शिखर सम्मेलन से भारत, विश्व में एक स्वाभाविक और प्रामाणिक मध्यस्थ के रूप में स्थापित हुआ है। यह दिलचस्प है कि भारत की गिनती उन चंद देशों में होती है, जो एक-दूसरे के विरोधी समूहों का हिस्सा है। जहां भारत ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन का हिस्सा है, तो वह क्वॉड और आई.टू.यू.टू. आदि वैश्विक समूहों का भी सदस्य है। इन सभी में सक्रिय हिस्सेदारी होने से भारत, राष्ट्रहित में अपनी शर्तों के साथ अन्य कई बड़ी योजनाओं को अंतिम रूप दे सकता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के समय प्रतिबंधों के बीच भारत द्वारा रूस से सस्ता ईंधन खरीदना— इसका एक प्रमाण है।

लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय-उपाध्यक्ष हैं।
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