स्वामी श्रद्धानंद , ये नाम सामने आते ही मस्तिष्क में ऊंचा कद, चेहरे पर गंभीरता, वाणी में दृढ़ता लिए एक महामानव का नाम स्मरण हो जाता हैं .
स्वामी श्रधानंद को महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने कर-कमलों से गढ़ा और राष्ट्र-सेवा के लिए प्रेरित किया, लेकिन अफ़सोस जिस स्वामी श्रद्धानंद ने 20 लाख से अधिक लोगों को दोबोरा हिन्दू बनाया उन्हें ज्यादातर लोग जानते तक नहीं है. यह हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि जिस विराट व्यक्तित्व को यह सौभाग्य प्राप्त है की उन्होंने जामा मस्जिद से वेद मन्त्रों का पाठ किया उन्हें हम नहीं जानते .
स्वामी श्रद्धानन्द का जन्म 22 फ़रवरी, 1856 ई. को पंजाब प्रान्त के जालंधर ज़िले में तलवान नामक ग्राम में हुआ था. स्वामी श्रद्धानंद के बचपन का नाम मुंशीराम था. बेटे के नास्तिक होने के कारण पिता जी बड़े ही असहज महसूस करते थे | एक बार इनके पिता महर्षि दयानंद सरस्वती के प्रवचन में लेकर गए बस क्या था उसके बाद तो स्वामी श्रद्धानंद की जीवन की धारा ही बदल गई.
1917 में संन्यास लेने पर उनका नाम स्वामी श्रद्धानन्द हो गया। स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लेने के कारण उन्हें एक साल चार महीने की सजा दी गयी। जेल से आकर वे अछूत और मुसलमानों के शुद्धिकरण में लग गये। 1924 में शुद्धि सभा की स्थापना कर उन्होंने 30,000 मुस्लिमों को फिर से हिन्दू बनाया।
स्वामी श्रद्दानंद जी ने 1922 में दिल्ली की जामा मस्जिद में भाषण दिया था, उन्होंने सबसे पहले वेद मंत्रों का पाठ किया और बेहद ही प्रेरक भाषण दिया, किसी मुस्लिम सभा में वेद मंत्रों का पाठ करते हुए भाषण देने का सम्मान स्वामी श्रद्दानंद को ही मिला. ये विश्व के इतिहास में एक असाधारण क्षण था
स्वामी श्रद्धानन्द के कांग्रेस के साथ मतभेद तब हुए जब उन्होंने कांग्रेस के कुछ प्रमुख नेताओं को मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर चलते देखा. कट्टरपंथी मुस्लिम और ईसाई हिन्दुओं का मतान्तरण कराने में लगे हुए थे. उन्होंने गैर-हिन्दुओं को पुनः अपने मूल धर्म में लाने के लिये आन्दोलन चलाया जिसका नाम शुद्धि था.
इतना ही नहीं देश का दुर्भाग्य तो देखिये कि उस समय हो रहे दंगो के लिए एक जांच कमेटी मोती लाल नेहरु की अध्यक्षता में बनाई गई थी उस कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट में यह लिखा कि स्वामी श्रद्धानन्द के शुद्धि आन्दोलन के कारण देश में दंगे हुए. इस ऊलजलूल आरोप से बेपरवाह स्वामी जी ने स्पष्ट रूप से कहा कि जिस प्रकार मुसलमानों को यह अधिकार है कि वे गैर मुसलमानों को इस्लाम में आने की दावत दें, उसी प्रकार हिन्दुओं को भी अधिकार है कि वे अपने बिछड़े हुए भाईयों को वापस अपने घर में वापस ले आयें. महात्मा गांधी ने जोश में आकर सत्यार्थ प्रकाश और स्वामी श्रद्धानंद के खिलाफ लेख लिख डाला और मुसलमानों के रुख का समर्थन किया.
लेकिन ‘भारतीय हिन्दू शुद्धि सभा’ के प्रयासों से 1923 से 1931 के बीच लगभग लाखों नव-मुस्लिमों को शुद्ध किया गया। इसी दौरान लगभग 60,000 अछूत कहलाने वाले लोगों को हिन्दू धर्म छोड़ने से भी बचाया गया। स्वामी श्रद्धानंद जी ने पश्चिम उत्तर प्रदेश के 81 गांवो के हिन्दू से हुए मुसलमानों को पुनः हिन्दू धर्म में शामिल किया .. उन्होंने समाज में यह विश्वास उत्पन्न किया कि जो विधर्मी हो गये थे , वे सभी वापस अपने मूलधर्म में वापस आ सकते हैं। लेकिन उनका यह महान कार्य उन्हीं के लिये घातक सिद्ध हो गया। कुछ कट्टरपंथी मुसलमान इस शुद्धिकरण आन्दोलन के खिलाफ हो गए थे और अब्दुल रशीद नामक एक धर्मांध मुस्लिम युवक ने 23 दिसम्बर 1926 को छल से चांदनी चौक दिल्ली में स्वामी जी को गोलियों से भून दिया। इस तरह धर्म, देश, संस्कृति, शिक्षा का उत्थान करने वाला यह युगधर्मी महामानव मानवता के लिए बलिदान हो गया।
उनकी हत्या के दो दिन बाद यानि 25 दिसम्बर, 1926 को गुवाहाटी में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में जारी शोक प्रस्ताव में जो कुछ कहा वह तो और हैरान करने वाला था। गांधी के शोक प्रस्ताव की क पंक्ति में उन्होंने कहा कि “मैंने अब्दुल रशीद को भाई कहा और मैं इसे दोहराता हूं। मैं यहां तक कि उसे स्वामी जी की हत्या का दोषी भी नहीं मानता हूं। वास्तव में दोषी वे लोग हैं जिन्होंने एक दूसरे के विरुद्ध घृणा की भावना को पैदा किया। इसलिए यह अवसर दुख प्रकट करने या आंसू बहाने का नहीं है।“
गांधी ने अपने भाषण में यह भी कहा,”… मैं इसलिए स्वामी जी की मृत्यु पर शोक नहीं मना सकता। हमें एक आदमी के अपराध के कारण पूरे समुदाय को अपराधी नहीं मानना चाहिए। मैं अब्दुल रशीद की ओर से वकालत करने की इच्छा रखता हूं।“ उन्होंने आगे कहा कि “समाज सुधारक को तो ऐसी कीमत चुकानी ही पढ़ती है। स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या में कुछ भी अनुपयुक्त नहीं है। “अब्दुल रशीद के धार्मिक उन्माद को दोषी न मानते हुये गांधी ने कहा कि “…ये हम पढ़े, अध-पढ़े लोग हैं जिन्होंने अब्दुल रशीद को उन्मादी बनाया। स्वामी जी की हत्या के पश्चात हमें आशा है कि उनका खून हमारे दोष को धो सकेगा, हृदय को निर्मल करेगा और मानव परिवार के इन दो शक्तिशाली विभाजन को मजबूत कर सकेगा।
चाहे कुछ भी हो स्वामी श्रद्धानन्द अमर होकर आज भी हमारे प्रेरणा बने हुए है
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.