नए-नए राजवंशों को जन्म देने वाली प्रक्रिया को लोकतंत्र कहते हैं। चूंकि कि लोकतंत्र का निर्माण राजतंत्र के अवगुणों को अपदस्थ करने के लिए हुआ था इसीलिए जब लोकतंत्र बनने लगा तो उसके निर्माता मनीषियों के मस्तिष्क में सिर्फ राजतंत्र के अवगुण ही रहे और आप जानते हैं कि व्यक्ति जो सोचता है अंततः वही करता है इसीलिए लोकतंत्र को राजवंशों के अवगुणों की जननी बना दिया! यदि किसी राजनय निष्णात और प्रशासकीय क्षमता संपन्न व्यक्ति ने लोकतंत्र का सर्जन किया होता तो वह उसमें राजतंत्र की खूबियों का समावेश करता । परंतु किसी भी व्यवस्था का विरोध और यदि वह कमियों के बदले उसके अवगुणों के आधार पर हो तो निर्माण काल में मात्र अवगुण ही समाहित होंगे । उसके उलट यदि गुणों को याद करके किसी नए तंत्र की आधारशिला रखी जाए तो जाहिर सी बात है कि पूर्ववर्ती तंत्र के गुणों का समावेश नए तंत्र में होगा ।

यदि राजतंत्र से निराश होकर और घृणा करते हुए प्रजातंत्र की संकल्प ना की गई होती और प्रजातंत्र के अवयवों का निर्माण राजतंत्र के गुणों के आलोक में हुआ होता तो आज प्रजातंत्र का आकार आयाम और विकास का कुछ अलग ही रंग होता।

किसी भी व्यवस्था का विकल्प स्थापित करना चाहिए विरोध को प्रतिस्थापित करना समाज के लिए अच्छा नहीं होता।

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