पिछले कुछ दिनों से वाराणसी का पावलूम उद्योग और इससे जुड़े व्यवसायी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं | उनकी मांग है कि , समाजवादी पार्टी की सरकार द्वारा तय किए गए बिजली के फ़्लैट और फिक्स रेट को ही आधार मान कर बिजली का उपयोग करने का अधिकार मिले |

जबकि बिजली नियामक एजेंसी की अनुशंसा पर योगी सरकार द्वारा जारी किए गए आदेश के अनुसार जनवरी 2020 से , बिजली से चलने वाले इन सभी पावरलूम को खपत की गई बिजली के हिसाब से उसका भुगतान करना है |

अब मामले को ऐसे समझिये सीधे सीधे | अखिलेश यादव की सरकार ने अपनी मुस्लिमपरस्ती (इन पावरलूम उद्योग के तमाम व्यवसायी अल्पसंख्यक समुदाय से हैं ) का समाजवादी झंडा बुलंद करते हुए , प्रति पावरलूम सिर्फ 72 रूपए की दर से बिजली का दर निश्चित कर दिया था जो सालों से चला आ रहा था | उसके बाद सबने इस लगभग मुफ्त मिली बिजली का लाभ उठा कर अधिक से अधिक पावरलूम बिठा लिए |

हालांकि सरकार और संबंधित विभाग अभी भी यही कह रहे हैं कि बातचीत चल रही है और कोरोना महामारी को देखते हुए कोई रास्ता निकाला जाएगा , लेकिन इस बीच पावरलूम उद्योग से जुड़े तमाम अल्प संख्यकों ने योगी सरकार अन्याय कर रही है कह कह कर रोना पीटना शुरू कर रखा है |

अब कुछ मोटी मोटी बातों को समझते हैं | पावरलूम ,हाथ से चलने वाले हस्तकरघा से अलग होते हैं और एक एक मशीन में बिजली की अच्छी खासी खपत होती है |

अब इसमें तैयार वस्त्र को देख कर अंदाज़ा लगाइये कि ये कितने मूल्य का होगा ??

सिर्फ बनारस ही नहीं गोरखपुर , टाण्डा आदि स्थानों पर भी पावरलूम व्यावसायियों को जबरन ही गोलबंद किया जा रहा है ताकि वे भी सरकार के विरूद्ध इस साजिश का हिस्सा बनें |

समाजवादी , आम आदमी पार्टी जैसी कुछ पार्टियों ने कांग्रेस के “मुफ्त बाँटो और वोट लो ” वाले फार्मूले को दिल से अपना कर उस पर ऐसा अमल किया कि वो अब गाहे बेगाहे नासूर की तरह चुभने ही लगता है |

सहायता /सब्सिडी /मदद/अनुदान आदि सब संबलता प्रदान करने के लिए दिया गया अतिरिक्त साथ होता है न कि एक ऐसा अधिकार जिसके लिए आप सड़क पर बैठ कर आंदोलन शुरू कर दो |

व्यापारी हो तो व्यापारी रहो , भिखारी नहीं |

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