“वीरवर दुर्गादास ,यह उचित होगा कि आप शाही बच्चों को दिल्ली ले जाने की अनुमति दें। ” औरंगजेब के प्रतिनिधि ईश्वरदास ने कहा !..”दोनों बच्चों पर बादशाह का पूर्व अधिकार है ईश्वरदास। ” वीर दुर्गादास ने सहमति प्रकट की। “बादशाह के पौत्र और पौत्री उनकी अमानत हैं मेरे पास , उन्हें मैं स्वयं दिल्ली पहुंचा दूँगा। किन्तु शर्त यह है की मुग़ल सम्राट औरंज़ेब को अजीत सिंह को जोधपुर नरेश स्वीकार करना होगा। ”
ईश्वरदास सारी स्थति के लिए तैयार होकर आया था। औरंज़ेब के सामने इस के अलावा कोई उपाय न था , इसलिए यह शर्त स्वीकार ली गयी। नीति-निपुण दुर्गादास इस सरलता से औरंगज़ेब को झुकते देख चक्ति हो गए लेकिन चतुर , कूटनीतिज्ञ दुर्गादास भी मजे हुए राजनीतिक शतरंज के खिलाड़ी थे। अतः वे शहजादे बुलंदअख्तर को जोधपुर ही छोड़कर केवल शहजादी सफाइतुन्निसा को दिल्ली ले गए। पौत्री (शहज़ादी ) ने जैसे ही बाबा के कदमों में सिर्फ झुकाया तो प्रेम से उसे आशीर्वाद देते हुए औरंगज़ेब बोला , “बेटी , तुम अभी तक काफिरों के साथ रही हो , तुम्हें अपने मज़हब का ज्ञान नहीं है , इसलिए अच्छा होगा कि अब कुरान पढ़कर अपने मज़हब का नूर (प्रकाश )हासिल करो। ”
बाबा जान ? शहजादी बोली , “मैंने तो कुरान पढ़ा है , चाचा दुर्गादास जी ने मुझे कुरआन पढ़ाने और इस्लामी तालीम हासिल करने के लिए योग्य मौलवी नियुक्त कर दिए थे। ” वह बाल-गर्व से बोली , “आप पूछ देखिए , मुझे कुरआन की पूरी आयतें याद हैं। ” ” क्या सच ? ” बादशाह का मुंह अचरज से खुला रह गया। यह सच है बाबा। शहजादी ने जवाब दिया। ” हिन्दुओं की बहुत सी बातें ऐसी हैं बेटी, कि फ़रिश्ते भी शायद उनका मुकाबला न कर सकें। ” भाव विभोर होकर औरंगज़ेब ने बेटी को प्यार को थपथपाया।
” यह हमारा स्वाभाविक कर्तव्य था , जहां पनाह ! सहसा दरबार में प्रवेश करते हुए दुर्गादास ने कहा। वे बोले , ” आपसे हमारा मतभेद हो सकता है , किसी पंथ से हमारा विद्वेष नहीं। इसलिए शाही बच्चों को यह इस्लामी शिक्षा दी गयी जो आपके मज़हब के मुताबिक़ उन्हें दी जानी चाहिए थी। ये हमारे मेहमान थे और हमारे पास शहंशाह की धरोहर थे। हमें गौरव है की हम इनकी उचित देखभाल कर पाए। ”
इस्लाम का कट्टर पुजारी औरंगज़ेब बोला , ” दुर्गादास, तुम फ़रिश्ते हो। ” बादशाह ने कहा और उसी क्षण अजीतसिंह को जोधपुर नरेश स्वीकार करने का फरमान जारी कर दिया।
“शहंशाह इस सम्मान का अधिकारी मैं नहीं , हम हिन्दुओं की गौरवमयी संस्कृति है , जिसके कारण युग-युग से हमारे रक्त में मानवता के ये उच्च संस्कार प्रवाहित हो रहे हैं। “
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