झारखंड से एक ऐसी घटना सामने आयी है जिसे सुनकर आप भी दंग रह जाएंगे। घटना चाईबासा की है जहां कुछ लोग ‘कोल्हान देश’ के लिए पुलिस और ‘मुंडा’, ‘मानकी’ और ‘हो’ भाषा के टीचरों की बहाली की प्रक्रिया पूरी कर रहे थे। हजारों युवक और युवतियों ने आवेदनपत्र खरीदकर आवेदन किया था। कोल्हान पुलिस में 30 हजार भर्ती का लक्ष्य रखा गया था।

देखा जाए तो एक देश के अंदर एक अलग देश के लिए पुलिस की भर्ती करना, कोई छोटा जुर्म नहीं है। इसलिए जब स्थानीय पुलिस को इस बाबत सूचना मिली पुलिस ने बिना समय गवाएं घटनासथ्ल पर पहुंचकर भर्ती प्रक्रिया को रुकवा दिया साथ ही चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन इसके बाद लगभग 400 लोगों की भीड़ ने पुलिस थाने पर हमला कर दिया। पुलिस को मजबूरन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी। लेकिन भीड़ इतने गुस्से में थी की पुलिस वालों पर पत्थर और तीर से हमला कर दिया। प्राथमिकी के मुताबिक आनंद चातर मुख्य षड्यंत्रकारी है उसी के इशारे पर ये सब हो रहा है . पुलिस का कहना है कि आनंद चातर ने ही गिरफ्तार लोगों को छुड़वाने के लिए ग्रामीणों को पुलिस पर हमला करने के लिए उकसाया था।

‘कोल्हान देश’ के नाम पर जारी नियुक्ति पत्र-सौजन्य Panchjanya

दरअसल, झारखंड में कोल्हान नाम से एक प्रमंडल है। इसके अंतर्गत तीन जिले पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां है। अंग्रेजों के शासन के दौरान सर थामस विल्किंसन साउथ वेस्ट फ्रंटियर एजेंसी यानि छोटानागपुर प्रमंडल का प्रमुख था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उन दिनों मुंडा जनजाति के लोग कोल विद्रोह चला रहे थे। उस विद्रोह को दबाने के लिए विल्किंसन ने सैन्य कार्रवाई की। इस कारण कोल्हान के 620 गांवों के मुंडाओं (प्रधान) को ब्रिटिश सेना के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा। लेकिन विद्रोह शांत नहीं हुआ. तब विल्किंसन ने 1833 में ‘कोल्हान सेपरेट एस्टेट’ की घोषणा कर चाईबासा को उसका मुख्यालय बना दिया। इसके साथ ही उसने लोगों को अपने पक्ष में करने के उद्देश्य से इस क्षेत्र में पहले से चली आ रही मुंडा-मानकी स्वशासन की व्यवस्था लागू कर दी। इसे ही ‘विल्किंसन रूल’ कहा गया। इसके तहत सिविल मामलों के निष्पादन का अधिकार मुंडाओं को मिल गया, जबकि आपराधिक मामलों के निष्पादन के लिए मानकी को अधिकृत कर दिया गया।

आजसू के संस्थापकों में से एक सूर्य सिंह बेसरा के मुताबिक कोई भी सरकार सही ढंग से संथाल परगना कास्तकारी अधिनियम (एसपीटी एक्ट)-1876, छोटानागपुर कास्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट)-1908 और विल्किंसन रूल को समझ नहीं पाई है। अगर इन कानूनों को सरकार ने सही तरीके से लागू नहीं किया तो आने वाले समय में इस तरह की मांगें और उठ सकती हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि स्वतंत्रता के बाद देसी रियासतों के भारत में विलय के समय कोल्हान क्षेत्र में कोई रियासत प्रभावी नहीं थी। यह इलाका मुगलों के समय से ही पोड़ाहाट के राजा की रियासत थी, लेकिन अलग कोल्हान राज्य बनने के बाद सारे अधिकार मुंडाओं के हाथों में आ गए थे। बाद में पोड़ाहाट के राजा का अस्तित्व भी नहीं रहा। इस कारण कोल्हान इलाके के भारतीय संघ में विलय का कोई मजबूत दस्तावेज नहीं बन सका और इस क्षेत्र में विल्किंसन रूल प्रभावी बना रहा। इसी को आधार बनाकर बीच–बीच में अलग कोल्हान देश की मांग कर दी जाती है।

बता दें आपको कुछ सालों पहले रामो बिरूवा नाम के एक शक्स ने अपने आपको ‘कोल्हान देश’ का राष्ट्रपति घोषित कर ‘कोल्हान देश’ की मांग की थी। इसके बाद उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। वहीं उसकी मृत्यु हो गई थी। उसी का सहयोगी आनंद चातर है। वह भी जेल में था। कुछ दिन पहले ही वो जमानत पर जेल से बाहर आया है। इसके बाद उसने ‘कोल्हान देश’ के नाम पर पुलिस और शिक्षक की भर्ती कर रहा था।

वहीं कुछ सामाजिक कार्यकर्ता इसके पीछे चर्च और मिशनरियों का हाथ बता रहे हैं , क्योंकि 40 साल पहले भी 30 मार्च, 1980 को कोल्हान रक्षा संघ के नेता क्राइस्ट आनंद टोपनो, कृष्ण चंद्र हेंब्रम और नारायण जोनको ने 1833 के विल्किंसन रूल का हवाला देते हुए कहा था कि कोल्हान इलाके पर भारत का कोई अधिकार नहीं बनता। उस वक्त भी उन लोगों ने अंग्रेजों की सरकार पर ही अपनी आस्था जताई थी। इसी को देखते हुए कहा जा सकता है कि जनजातीय समाज के जो नेता हमेशा से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे वे अचानक अंग्रेजों के समर्थक कैसे बन सकते! इसीलिए इस घटना के पीछे ईसाई मिशनरी का हाथ माना जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि इसमें नक्सली भी शामिल हैं। दरअसल पूरा कोल्हान क्षेत्र नक्सल प्रभावित है। इन्हें हर तरह की मदद चर्च के लोग करते हैं। इसलिए कहा जा रहा है कि ‘कोल्हान देश’ की मांग के पीछे इन्हीं लोगों का हाथ है। यह भी बता दें कि लगभग चार साल पहले झारखंड के कई जिलों में जनजातियों की एक बहुत ही प्राचीन परम्परा पत्थरगड़ी की आड़ में लोगों को उकसाया गया था। किसी गांव में चर्च और नक्सली संगठनों के लोग पत्थरगड़ी कर कहते थे कि यहां गांव वालों की अनुमति के बिना किसी का भी प्रवेश निषेध है। नवंबर, 2019 में JMM के नेता हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने। उन्होंने सबसे पहला काम पत्थरगड़ी के आरोप में बंद लोगों को जेल से छोड़ने का किया। इस कारण ऐसे लोगों का दुस्साहस बढ़ा और वह दुस्साहस ‘कल्हान देश’ की मांग तक पहुंच गया है।

वहीं 1981 में कोल्हान रक्षा संघ से जुड़े नारायण जोनको, आनंद टोपनो और अश्विनी सवैयां इस मामले को लेकर लंदन और जेनेवा भी गए थे। लंदन में इन लोगों ने राष्ट्रमंडल के सदस्य देशों के प्रतिनिधियों को अपने तर्कों से संबंधित दस्तावेज सौंपा और विल्किंसन रूल के तहत कोल्हान को अलग देश का दर्जा देने की मांग की। तब इन लोगों ने राष्ट्रमंडल देशों के प्रतिनिधियों से 2 दिसंबर, 1981 को चाईबासा पहुंचने की अपील की, ताकि वे ‘कोल्हान देश’ की विधिवत घोषणा कर सकें। इसकी खबर मिलते ही तत्कालीन भारत सरकार सक्रिय हुई और लंदन से वापस लौटते ही नवंबर, 1981 में आनंद टोपनो और अश्विनी सवैयां को गिरफ्तार कर चाईबासा जेल में डाल दिया गया। पुलिस तब नारायण जोनको और के. सी. हेंब्रम को गिरफ्तार नहीं कर पायी थी। इन सबके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज कराया गया था। 1984 में लोकसभा में स्वीकार किया गया था कि उस समय के बिहार के चाईबासा इलाके में ‘कोल्हानिस्तान’ नाम से एक अलगाववादी आंदोलन को हवा दी जा रही है।

 

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.