केरल में वर्तमान में कम्युनिस्ट दल की सरकार है । 1956 में भारतीय संघराज्य का केरल यह स्वतंत्र राज्य अस्तित्व में आया और 1957 में केरल में पहली लोकतांत्रिक सरकार कम्युनिस्ट दल की बनी । आज राज्य निर्मिति के 65 वर्षों के उपरांत ‘कम्युनिस्ट‘ केरल का मार्गक्रमण कैसा हो रहा है, यह बताने वाला यात्रा का अनुभव…
केरल के कम्युनिस्टों के प्रेरणास्रोत कौन ?
केरल में ‘मार्क्सवादी कम्युनिस्ट दल‘ का राज्य है । नाम के अनुसार ही दल की प्रेरणा ‘कार्ल मार्क्स‘ है । हमारे देश में लोकतंत्र है और निर्वाचन द्वारा राजनीतिक दल सत्तारूढ होते हैं । संपूर्ण संसार के कम्युनिस्टों का इतिहास देखने पर वे निर्वाचनों का सामना नहीं करते । ‘किसान और परिश्रम करने वालों के रक्तरंजित विद्रोह से सत्ता का मार्ग निकलता है‘, इस कम्युनिस्ट तत्त्वज्ञान पर उनकी श्रद्धा होती है । इसलिए 1957 तक संसार की एक भी कम्युनिस्ट सरकार निर्वाचन में विजयी होने के उपरांत सत्तारूढ नहीं हुई थी; परंतु केरल में 1957 में वहां की पहली विधानसभा के निर्वाचन में कम्युनिस्ट दल विजयी होकर सत्तारूढ हुआ । केरल में इस दल की विशेषताएं हैं वहां के स्थानीय नेता अथवा दल के राष्ट्रीय नेताओं की छवि उनकी प्रसार सामग्री अर्थात बैनर्स–पोस्टर्स पर नहीं होती । कांग्रेस की प्रचार सामग्री पर गांधीजी से लेकर राहुल गांधी तक सबके छायाचित्र दिखाई देते हैं । भाजपा की सामग्री पर भी अटलजी से लेकर अमित शहा तक सबके छायाचित्र होते हैं । इस पृष्ठभूमि पर केरल के कम्युनिस्टों की पृथकता अधोरेखित होती है । उनकी प्रचार सामग्री पर संपूर्ण संसार के कम्युनिस्ट क्रांति करने वाले तीन नेताओं के चित्र होते हैं । पहला चित्र अर्जेंटीना के कम्युनिस्ट क्रांति के युवा नेता ‘चे गवारा‘ के विविध पोस्टर्स का है । दूसरा चित्र रंग से पोती गई दीवार का है । उस पर ‘कार्ल मार्क्स‘, ‘फेड्रिक एंगल‘ और ‘व्लादिमिर लेनिन‘ के एकत्रित छायाचित्र हैं । ऐसे पोस्टर्स और पोती गई दीवारें कोचीन–एर्नाकुलम नगर में सर्वत्र दिखाई देते हैं तथा उनके साथ ही दिखाई देते हैं मार्ग के पथदीपकों और विद्युतवाहिनियों के स्तंभों पर लगे कम्युनिस्ट पार्टी के हंसिया–हथोडे के चिन्ह वाले झंडे !
संक्षेप में स्वतंत्रता के 75 वर्षों के उपरांत भी राष्ट्रीय विज्ञापन के लिए कम्युनिस्ट दल को नेता के रूप में आदर्श व्यक्तित्व नहीं मिला है । इसीलिए विदेश के जर्मनी–रशिया–अर्जेंटीना के नेताओं के चित्र लगाने में वह आज भी धन्यता मानता है । दुर्भाग्यवश यह अराष्ट्रीयता है ।
‘गल्फ मनी‘ यह बडा आर्थिक स्रोत !
भारत की कुल बेरोजगारी दर की अपेक्षा केरल की बेरोजगारी दर अत्यधिक है । यद्यपि वहां साक्षरता 100 प्रतिशत है, तथापि उद्योग धंधे अत्यल्प हैं; क्योंकि कोई उद्योग प्रारंभ होते ही वहां तुरंत कम्युनिस्ट दल के नाम के यूनियन के झंडे लग जाते हैं । ‘काम कम और मांगे अधिक‘ ऐसी उनकी गुंडागर्दी होती है । ऐसी स्थिति में उद्योग खडे नहीं होते । इसलिए शिक्षित केरलवासियों को नौकरियां नहीं मिलतीं । अधिकांश शिक्षित केरली लोग खाडी (गल्फ) देशोंं में नौकरियां स्वीकारते हैं । खाडी देशों में केरली लोग प्रमुखता से परिचारिका (नर्स), वाहनचालक (ड्राइवर), तंत्रज्ञ (टेक्निकल स्किल्ड लेबर) आदि काम करते हैं । उनकी विदेश यात्रा सरल होने के लिए छोटे से केरल में 4 अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं । आज 35 लाख केरली लोग खाडी देशों में रहते हैं । उनके कारण विदेशी आय केरल राज्य को मिलती है और वहां की अर्थव्यवस्था चलती है । उद्योग धंधे बडी मात्रा में न होकर भी विदेशी आय के भरोसे केरल राज्य की अर्थव्यवस्था बनी हुई है । उसमें केरल के कम्युनिस्टों का योगदान शून्य है ।
नीले वस्त्रों के कुलियों की गुंडागर्दी !
कोचीन–एर्नाकुलम नगर में सर्वत्र नीले वस्त्र परिधान किए हुए कुली दिखाई देते हैं । इन लोगों को ‘नोक्कू कुली‘ कहते हैं । किसी भी व्यापारी वाहन का सामान उतारना हो, तो उन्हें बुलाना पडता है । हम स्वयं उतारने वाले हों, तब भी उनको उनका मूल्य देना पडता है । मालिक उन्हें देखे, तब भी उनका मूल्य वे जो मांगेगे, वह देने की ‘कम्युनिस्ट‘ कुप्रथा वहां है । अनेक सुशिक्षित युवकों की टोली नीले रंग के कुली के वस्त्र परिधान कर शहर में घूमती रहती है और पैसे वसूल करती रहती है । कम्युनिस्ट दल का समर्थन होने के कारण कोई उनका विरोध नहीं करता । कम्युनिस्टों का राज्य कैसा होता है, इसका यह ज्वलंत उदाहरण है ।
केरल में कम्युनिस्टों का एकाधिकार !
केरल के अधिकांश हिन्दू कम्युनिस्ट दल को मत देते हैं । एक सामान्य घर के हिन्दू मतदाता से मैंने पूछा, आप कम्युनिस्ट दल को मत क्यों देते हैं ? उसने बताया कि, मृत्यु के पश्चात यहां कंधा देने के लिए लोग नहीं होते । अंतिम संस्कार कौन करेगा, यह प्रश्न होता है । ऐसे समय किसी के घर में मृत्यु होने पर स्थानीय कम्युनिस्ट दल के कार्यालय से अर्थी और अंतिम संस्कार की सामग्री आती है । दल के कार्यकर्ता स्वयं कंधा देकर श्मशान भूमि तक पहुंचाते हैं । ऐसा और कौन करता है ? उसके प्रश्न का उत्तर मेरे पास नहीं था । केरल के हिन्दू स्वयं को श्मशानभूमि तक ले जाने के लिए कम्युनिस्ट दल को मत देते हैं, इतना उनके बोलने से ज्ञात हुआ ।
– चेतन राजहंस, प्रवक्ता, सनातन संस्था
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