कहा जाता है कि एक तस्वीर जो बात कह जाती है वह हजार शब्दों में भी कहना मुश्किल है. आज के दौर में तस्वीरें एक ऐसा जरिया बन चुकी हैं कि उसका इस्तेमाल सच और झूठ फैलाने दोनों में होता है। हाल के दिनों में जिस तरह से तस्वीरों के जरिये भारत की छवि को खराब करने की कोशिश की गयी है वो किसी से छिपी नहीं हैं. झूठी तस्वीरों के जरिये हर बार पश्चिमी मीडिया ने भारत को नीचा दिखाने की कोशिश की है.

इसी कड़ी में एक बार फिर अफगानिस्तान में मारे गए दिवंगत फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी समेत चार भारतीयों को फीचर फोटोग्राफी कैटेगरी पुलित्जर पुरस्कार 2022 से सम्मानित किया गया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक रॉयटर्स समाचार एजेंसी के फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी को उनके सहयोगियों अदनान आबिदी, सना इरशाद मट्टू और अमित दवे के साथ भारत में कोरोना के कारण हुई मौतों की तस्वीरें खींचने के लिए सम्मानित किया गया है।

कोरोना काल के दौरान दानिश सिद्दीकी ने कई ऐसी तस्वीरें लीं थी जिसमें श्मशान में जलती चिताओं को ड्रोन से दिखाया गया था। दरअसल, जब से कोरोना की दूसरी लहर ने देश में तबाही मचानी शुरू की तब से अतंराष्ट्रीय मीडिया ने भारत के खिलाफ दुष्प्रचार शुरू कर दिया. अपनी खबरों को सनसनीखेज बनाने के लिए लिबरल मीडिया ने अपने लिखे गए रिपोर्टों के साथ ऐसी फोटो शेयर की जिससे लोगों में भारत के प्रति एक नकारात्मक छवि बने और देश में भय का माहौल बनें. चाहे वो रॉयटर्स हो या Washington Post या फिर BBC ही क्यों न हो,  हर जगह सबसे बड़ी स्टोरी भारत की ही दिखाई देती वो भी श्मशान में जलती हुई चिता की उन्हीं तस्वीरों के साथ।

बात सिर्फ इतनी सी ही नहीं थी इन्हीं तस्वीरों का इस्तेमाल करके विदेशी मीडिया ने  भारत के खिलाफ वैश्विक एजेंडा चलाने की कोशिश की और भारत की छवि को नुकसान पहुंचाया। दानिश सिद्दीकी ने कई ऐसी तस्वीरें दुनिया को दिखाई जिसके जरिये भारत की पूरी दुनिया में बदनामी हो, वामपंथियों का एजेंडा चल सके. दिल्ली दंगों के दौरान बंदूक उठाए एक हिन्दू शख्स की फोटो हो, या किसान आंदोलन के दौरान पुलिस की कार्रवाई की तस्वीरें, सभी के पीछे इन लोगों का सिर्फ एक एजेंडा था, मोदी सरकार को इन तस्वीरों के जरिए दुनिया के दूसरे देशों के सामने बदनाम किया जाए।

वाकई ये गिद्ध पत्रकारिता का सबसे बेहतरीन उदहारण है और इन लिबरल मीडिया की मदद दानिश सिद्दीकी और बरखा दत्त जैसे भारत के कुछ गिद्ध पत्रकार कर रहे हैं। देखा जाए तो भारत ने जब कोरोना के मामलों को बेहतर तरीके से नियंत्रित करना शुरू किया था तब उस दौरान पश्चिमी लिबरल मीडिया ने कहीं भी एक शब्द भारत की तारीफ में नहीं लिखे. लेकिन वही लोग कोरोना के दौरान हुई लोगों की मौत का तमाशा बना कर जलती हुई चिताओं पर अपनी रोटी सेंक कर अपना एजेंडा चलाने से बाज नहीं आए. ये वो लोग थे जो जलती चिता का तमाशा बना कर खुशी मना रहे थे. इन लोगों का एकमात्र मकसद है कि किसी भी तरह से भारत की छवि को विश्व के पटल पर खराब किया जाए. चाहे इसके लिए जलती हुई लाशों का ही सहारा क्यों न लिया जाए.

इसके साथ ही पुलित्जर पुरस्कार बोर्ड ने भी ये साबित कर दिया कि यहां उन्हें ही पुरस्कारों से नवाजा जाता है जो अशांति, भय, भूखमरी और मानवीय संवेदनाओं पर चोट करती हुई तस्वीरों को दुनिया के सामने रखते हैं जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ अपना एंजेंडा चलाना होता है. दानिश सिद्दीकी भी एक ऐसे ही उदाहरण थे…

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