आदिवासियों द्वारा देश भर में चलाया जा रहा “डीलिस्टिंग आंदोलन” धीरे-धीरे और जोर पकड़ता जा रहा है. इस मुद्दे को लेकर आदिवासी समाज काफी आक्रोशित है. देखा जाए तो इनकी मांग जायज है, इनका कहना है कि जो आदिवासी अपना मूल धर्म छोड़ कर ईसाई बन चुके हैं वो आदिवासियों के मिलने वाले आरक्षण का लाभ क्यों लेंगे ? जब उन लोगों ने आदिवासी संस्कृति ही छोड़ दी है तो फिर आरक्षण का लालच क्यों ?

कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं से समझिए कि आखिर आदिवासियों का ये डीलिस्टिंग आंदोलन है क्या…..

डीलिस्टिंग का मतलब है अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोग जिनका धर्म परिवर्तन हो चुका है जो अब भी डंके की चोट पर अनुसूचित जनजाति वर्ग के आरक्षण का लाभ लेते हैं, ऐसे लोगों को डीलिस्टिंग करके आरक्षण से वंचित किया जाए,और आरक्षण का लाभ केवल अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों को ही मिले….

इस मांग के लिए देश भर में “डीलिस्टिंग आंदोलन” चलाया जा रहा है. महारैली निकाली जा रही हैं. अब तक हम यही देखते आए हैं कि मिशनरी संस्थाओं पर धर्मान्तरण कराने का आरोप लगता था और वो इसे सिरे से खारिज देते थे. शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं देने की आड़ में अपना धर्मान्तरण का खेल छिपा लेते थे. लेकिन अब “डीलिस्टिंग आंदोलन” की वजह से मिशनरियों में अफरा-तफरी मची हुई है .

साभार-ट्वीटर

इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ के जशपुर में धर्मान्तरण का धंधा चलाने वाली मिशनरी संस्थाओं ने “डीलिस्टिंग-आंदोलन” के विरोध में 28 मई को रैली का आयोजन किया है. इस रैली के जरिये कन्वर्ट हो चुके लोग “आरक्षण से वंचित न करो” की भीख मांगेंगे.

दरअसल ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि धर्मांतरित जनजाति के लोगों की डीलिस्टिंग को लेकर देश भर में आंदोलन चल रहे हैं, लेकिन मेन स्ट्रीम मीडिया में इसकी कहीं कोई चर्चा नहीं है.

 

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