शायद भारतीय राजनीति में यह पहली बार हुआ है कि किसी सत्ताधारी पार्टी के विधायकों ने हिंदुत्व के नाम पर बग़ावत कर के उद्धव ठाकरे सरकार को धराशाई कर बड़ा सा घाव दे दिया है। अभी तक तो सेक्यूलरिज्म की हिप्पोक्रेसी के नाम पर सरकार से समर्थन वापसी या समर्थन देने की बात होती रही है। वैसे शरद पवार और कांग्रेस की राय बनी है कि उद्धव ठाकरे विधान सभा के फ्लोर पर ही सरकार की लड़ाई लड़ें।
उद्धव ठाकरे ने इन की राय मानते हुए विधान सभा के फ्लोर पर अपनी इज्जत का फालूदा बनाना स्वीकार कर लिया है। बाक़ी उत्तर भारतीयों को मुंबई में अकसर मार देने और मुंबई से भगा देने वाले बाल ठाकरे नाम के गुंडे के कुपुत्र उद्धव ठाकरे की धुलाई देखना भी दिलचस्प होगा। उद्धव ठाकरे और शरद पवार समेत कांग्रेस को लगता है कि एकनाथ शिंदे और उन के जैसे विधायकों का मुंबई आने पर ह्रदय परिवर्तन हो जाएगा।
राजनीति में कुछ भी मुमकिन है। वैसे भाजपा इस लड़ाई को अब जितना लंबा चलाएगी , उस का उतना ही ज़्यादा नुकसान होगा। अगर दो-तीन दिन में आर या पार नहीं हुआ तो भाजपा का बहुत ज़्यादा नुकसान होगा। बागी विधायकों का हृदय परिवर्तन भी हो सकता है ,शरद पवार ने शिवसेना के बाग़ी विधायकों को धमकी देते हुए कड़ी चेतावनी भी दे दी है , कि बागी विधायकों को क़ीमत चुकानी पड़ेगी। बताइए कि बागी विधायक शिवसेना के और चेतावनी शरद पवार दे रहे हैं। वैसे बेहतर तो यह होगा कि महाराष्ट्र विधान सभा भंग कर चुनाव हो जाए। सब से बेहतर विकल्प यही है। लोकतांत्रिक भी। जो भी हो , उद्धव ठाकरे पार्टी , प्रतिष्ठा , और सरकार तीनों गंवा चुके हैं।
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