आज मैं एक ऐसे इंसान की सच्चाई बताऊंगा जिसे हमारे देश के तथाकथित विद्वान लोगों ने और इतिहासकारों ने देशभक्त मान लिया हैं । आज भी इस देश के पाठ्यक्रम का वह हिस्सा हैं । एक वहशी दरिंदे की औकात से नही बल्कि एक महान राष्ट्रभक्त की औकात से ।

इस व्यक्ति के द्वारा किए गए कार्यों को अगर देशभक्ति का हिस्सा माना जाता हैं तो थूं हैं ऐसी देशभक्ति पर । अगर नही हैं तो थूं हैं उन लोगों पर जिन्होंने उसे देशभक्त की संज्ञा दी ।

जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ – टीपू सुल्तान की । जी वही टीपू सुल्तान जो मैसूर का राजा था और जिसे अंग्रजो से संघर्ष करने वाला देशभक्त बताया जाता हैं । यह वही टीपू सुल्तान था जिसके शब्द थे कि –

” यदि सारी दुनिया भी मुझे दे दी जाए तो मैं हिन्दू मंदिरों का विध्वंस करने से नही रुकूँगा “

ये विचार आपको टीपू सुल्तान पर सरदार के एम पाणिक्कर द्वारा लिखी हुई किताब फ्रीडम स्ट्रगल इन केरल से मिल सकते हैं ।

अब जिसके मन के विचार ही ऐसे हो तो क्या आप मान सकते हैं कि उसने एक भी हिन्दू मंदिर का विध्वंस नही किया होगा । टीपू सुल्तान ने कितने हिन्दू मंदिरों को जमींदोज किया हैं इसका वर्णन द मैसूर गजेटियर , हिस्ट्री ऑफ केरल और हिस्ट्री ऑफ कोचीन से मिलता हैं । जिंसमे बताया गया हैं कि टीपू सुल्तान ने दक्षिण भारत मे 800 से अधिक हिन्दू मंदिरों को नष्ट कर दिया था ।

  1. टीपू सुल्तान ने त्रिचुर और कर्वन्नूर नदी के बीच मे स्तिथ सभी मंदिरों को तोड़ दिया था । हिंदुओ की आस्था का एक भी केंद्र नही छोड़ा था ।
  2. 1786 में टीपू सुल्तान ने अपनी फौज को आदेश दिया कि प्रसिद्ध पेरूमनन मंदिर की सभी मूर्तियों को नष्ट कर दिया जाए ।
  3. ट्रिएंगोट , थ्रिचैम्बरम , थिरुमवाया , थिरबन्नुर , कालीकट थाली , हेम्बिका , पालघाट का जैन मंदिर , मम्मियुर , परम्बालाती , पेम्मायान्दू थिरवनजिकुलम अनेक ऐसे मंदिर हैं जिन्हें टीपू सुल्तान ने सिर्फ इस्लाम को बढ़ावा देने और धर्मान्तरण की पराकाष्ठा तक पहुंचने के लिए किया ताकि वह भी इस्लाम के सर्वोच्च पद ” गजी ” को प्राप्त कर सके ।

गाजी वह होता हैं जिसने काफिरों का खून बहाया हो और इस्लाम को बढ़ाने में अपना सम्पूर्ण सहयोग दिया हो । यही उसके जीवन का परम लक्ष्य था कि उसे गाजी की उपाधि से नवाजा जाए ।

जब किसी शासक की सोच सिर्फ गाजी बनने की हो तो वह कैसे एक राष्ट्रभक्त हो सकता हैं ? कैसे वह एक प्रजापालक राजा हो सकता हैं ? कैसे वह हिन्दू हितैषी हो सकता हैं ? जबकि हमारे परमज्ञानी इतिहासकारों ने उसे हिंदुओ का हितैषी और सद्भाव को बढ़ाने वाला बताया हैं ।

टीपू सुल्तान ने अपने शासन काल मे हजारों लाखों की संख्या में हिन्दुओ का खून बहाकर हिन्दू हितैषी होने की उपाधि को प्राप्त किया हैं ।

सच मे टीपू सुल्तान किस मानसिकता का शासक था , उसके जीवन का लक्ष्य क्या था और क्या उसने अपने शासन काल मे किया हैं इसका वर्णन एक प्रसिद्ध इतिहासकार ए श्रीघर मेनन के शब्दों में

” हिन्दू लोग विशेषकर नायर लोग और सरदार लोग जिन्होंने इस्लामिक आक्रमणकारियों का प्रतिशोध किया था , वो लोग टीपू सुल्तान के क्रोध के प्रमुख भाजक बने । सैंकडों नायर महिलाओं और बच्चो को भगा लिया गया और श्री रंगपट्टनम ले जाया गया…. हमारे ब्राह्मणों , क्षत्रियों , हिंदुओं और अन्य सम्मानीय वर्गों के लोगों को बलात इस्लाम मे दीक्षित कर लिया गया , या उनके पैतृक घरों से उन्हें भगा दिया गया ।”

जब शब्दो मे इतना दर्द हैं तो उस समय के हिन्दू समाज ने कितना अत्याचार सहा होगा । शर्म आनी चाहिए उन हिन्दू लोगों को जो इस अत्याचारी शासक की जन्म जयंती मनाते हैं और इसे राष्ट्रभक्त और हिन्दू हितैषी बताते नही थकते हैं ।

उन लोगों की आत्मा भी जब आज के वातावरण को देखती होगी तो चीत्कार उठती होगी कि हमारे साथ अन्याय करने वाले लोगो को ही हमारे वंशज अपना सबसे बड़ा हितैषी मानकर उसे सर आंखों पर बैठाए हुए हैं और उन्हें भुला दिया गया हैं ।

ये तो एक छोटी सी झलक थी टीपू के क्रूरतम कारनामों की अब मैं आपको उसके द्वारा अपने सरदारों को लिखे कुछ पत्रों के अंश सुनाता हूँ । मुझे पूरा विश्वास हैं कि अगर तुम्हारी रक्त शिराओं में सच मे कृष्ण और राम का खून बह रहा हैं तो तुम्हारी आंखे लाल हो उठेगी तुम्हारा मन विद्रोह करने लगेगा ।

22 मार्च 1788 को टीपू सुल्तान ने कालीकट में अपने एक सरदार अब्दुल कादिर को पत्र लिखा कि

” 12000 से अधिक हिन्दुओ को इस्लाम मे धर्मांतरित किया गया हैं । उनमें से अधिकतर नंबूदिरी थे । इस उपलब्धि का हिंदुओं के प्रति व्यापक प्रचार किया जाए । स्थानीय हिंदुओं को आपके पास लाया जाए और उन्हें इस्लाम मे धर्मांतरित किया जाए । किसी भी नम्बूदिरी को छोड़ा नही जाए । “

ऐसा ही एक पत्र 14 दिसम्बर 1788 को कालीकट के सेना नायक को लिखा जिंसमे उसने आदेश दिया कि

” मैं तुम्हारे पास मीर हुसैन अली के साथ अपने दो अनुयायी भेज रहा हूँ । उनके साथ तुम भी सभी हिंदुओं को बंदी बना लेना और उनका वध कर देना । मेरा आदेश हैं कि बीस वर्ष से कम आयु के लोगो को कारावास में डाल देना और शेष में से पांच हजार को पेड़ से लटकाकर कत्ल कर देना । “

अभी रुकिए एक और पत्र के अंश पढ़िए और फिर कहिए हिन्दू हितैषी और राष्ट्रभक्त सुल्तान ।

टीपू सुल्तान ने 11 जनवरी 1790 में एक पत्र बदरुल खान को लिखा और कहा कि ” उसने मालाबार में चार लाख हिन्दुओ को इस्लाम मे दीक्षित किया हैं और यह उसके लिए गर्वोक्ति की बात हैं । जिन्होंने इस्लाम कबूल किया उन्हें गले लगाया गया और जो अपने ही धर्म पर अड़े रहे उनके गले काट दिए गए । “

इस ढोंगी और अत्याचारी सुल्तान के रक्त रंजित कारनामो का वर्णन करते करते मेरी लेखनी ने लिखना बन्द कर दिया हैं । कितना लिखा जाए उस व्यक्ति के बारे में जिसका आदि , मध्य और अंत सिर्फ एक ही चीज से लिखा गया हैं – रक्त … रक्त….रक्त….।

आज मैं आपके सामने कोई प्रश्न खड़े नही करूँगा और ना ही आपको कोई आदेश दूंगा । आप समझदार और स्वविवेकी हैं उठिए और अपने इतिहास को पढ़िए और ढूंढिए अपना संघर्षपूर्ण इतिहास और उखाड़ फेंकिये उन सभी अत्याचारियों को हमारे दिमाग , इतिहास और दैनिक जीवन से जो सिर्फ और सिर्फ रक्त बहाना जानते थे और विचार कीजिए

” अपना अस्तित्व बचाने को हमने क्या – क्या न जुल्म सहे ?
सभ्यता , संस्कृति बचाने को यहाँ कितने खूनी दरिया बहे ?
कभी काबुल कटा तो कभी सिंध , रंगून ढाका कटा
इस घटने और कटने से हम आज विश्व मे कितने रहे ? “

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