देश की आजादी से ठीक एक साल पहले 16 अगस्त 1946 को कलकत्ता में हुए सांप्रदायिक दंगों ने बंगाल की धरती को लाल कर दिया था। उस समय हजारों लाखों की संख्या में हिंदुओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था तो न जाने कितनी ही हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं सामने आयी थी. मुस्लिम लीग ने इस दिन को डायरेक्ट एक्शन डे के तौर पर मनाने का ऐलान किया, और ये सब हो रहा था मुस्लिम लीग और मोहम्मद अली जिन्ना के अलग राष्ट्र के पागलपन की वजह से !
पाकिस्तान के सपने को पूरा ना होता देख बौखलाए मोहम्मद अली जिन्ना और उसके सिपहसालारों ने बंगाल में हिंदुओं के खून की होली खेली। इतिहास के पन्नों को पलटे तो मालूम होता है कि इन दंगों की शुरूआत पूर्वी बंगाल के नोआखाली जिले से हुई थी और 72 घंटों तक चले इन दंगों में तकरीबन 6 हजार से ज्यादा हिंदुओं को काट डाला गया था और 20 हजार से अधिक गंभीर रूप से घायल हुए और लाखों बेघर हो गए।
दरअसल डायरेक्ट एक्शन डे हिन्दू नरसंहार की पृष्ठभूमि में पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का पाकिस्तान को लेकर उतावलापन था, जो 1946 आते आते पागलपन की हद तक पहुंच चुका था। जैसे जैसे भारत की आजादी का समय नजदीक आता जा रहा था, जिन्ना के पाकिस्तान का सपना भी टूटता नजर आ रहा था। तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व ने पाकिस्तान की मांग को सिरे से खारिज कर दिया था। 1946 में जब भारत में आजादी की लहर दौड़ने लगी तो अंग्रेजों को भी लगने लगा था कि अब वे बहुत ज्यादा समय तक भारत में शासन नहीं कर पाएंगे। ऐसे में अंग्रेजों ने भारत में सत्ता हस्तांतरण की तैयारियां शुरू कर दी। इसके लिए ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लिमेंट एटली ने एक 3 सदस्यीय दल, जिसे कैबिनेट मिशन कहा गया, भारत भेजा। कैबिनेट मिशन का मकसद था भारत में सत्ता हस्तांतरण की अंतिम योजना को आकार देना। इस उद्देश्य के लिए कैबिनेट मिशन ने तत्कालीन भारत की दो बड़ी पार्टियों कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं की एक बैठक बुलाई जिसमें भारत की आजादी के संबंध में चर्चा की गई। बैठक में तय किया गया कि एक भारतीय गणराज्य की स्थापना की जाएगी और उसके बाद सत्ता का हस्तांतरण किया जाएगा।
इस बैठक के बाद से ही मोहम्मद अली जिन्ना ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया और उत्तर-पश्चिमी और पूर्वी भाग में एक स्वायत्त मुस्लिम राष्ट्र की मांग कर दी। जाहिर है तत्कालीन कांग्रेस के नेताओं, जिनमें सरदार वल्लभ भाई पटेल भी शामिल थे, ने जिन्ना की इस मांग को ठुकरा दिया। अपनी मांग ठुकराए जाने की बौखलाहट में जिन्ना ने संविधान सभा का बहिष्कार कर दिया और मुस्लिमों को भड़काने में लग गए। इसके लिए उसने अपने मुंबई स्थित आवास पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और डायरेक्ट एक्शन की घोषणा कर दी। जिन्ना ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मुस्लिम लीग एक अलग इस्लामिक मुल्क ‘पाकिस्तान’ के लिए संघर्ष की तैयारी कर रहा है। अगर मुस्लिमों को उनके मनमुताबिक पाकिस्तान नहीं मिला तो वे डायरेक्ट एक्शन को अंजाम देंगे। जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन के लिए 16 अगस्त का दिन मुकर्रर कर दिया।
शुरुआत में तो किसी को नहीं पता चल पा रहा था कि जिन्ना का डायरेक्ट एक्शन है क्या? लेकिन 16 अगस्त 1946 आते आते तस्वीर साफ होने लगी थी। जिन्ना ने पूरे देश में डायरेक्ट एक्शन की धमकी दी थी, लेकिन मुस्लिम बहुल बंगाल जहां मुस्लिम लीग की सरकार थी वहां जिन्ना के राक्षसी मंसूबे डायरेक्ट एक्शन की सबसे साफ तस्वीर सामने आई। बंगाल के कोलकाता और अन्य इलाकों में हिंदुओं की हत्याएं होने लगी. हजारों महिलाओं का बलात्कार और जबरन धर्मांतरण किया गया। डायरेक्ट एक्शन से जुड़ी रिपोर्ट्स के मुताबिक उस दिन नमाज के लिए इकट्ठा हुए मुस्लिमों की तादाद लाखों में थी। ये मुसलमान ट्रकों में भर भरकर कोलकाता और आसपास के इलाकों में लाए गए थे और इनके पास भारी मात्रा में हथियार भी थे।
नमाज के बाद स्थानीय कट्टरपंथी मुस्लिम नेता ख्वाजा नजीमउद्दीन के भाषण के बाद इस हिंसक भीड़ ने हिंदुओं के घरों और दुकानों को जला दिया और उनकी संपत्ति को लूट लिया गया। शाम होते होते इन सभी इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया और सेना की तैनाती कर दी गई। इससे लगा कि हालत सामान्य हो जाएंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अगले दिन 17 अगस्त को मुस्लिम भीड़ ने और अधिक तीव्रता से हमला किया। 17 अगस्त को मुस्लिम दंगाइयों ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी। हिंदुओं को चुन चुन कर मारा जाने लगा। हजारों हिंदुओं को धारदार हथियारों से काट डाला गया। हिन्दू महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम दिया गया और उनका जबरन धर्मांतरण किया गया। शर्मनाक बात ये है कि इनमें से अधिकांश हिन्दू महिलाओं का उनके परिवार वालों के सामने ही बलात्कार किया गया। हिंदुओं को अपमानित करने के लिए उनसे जबरन गौहत्या करवाई गई और उन्हें गौमांस खाने पर मजबूर किया गया।जिन्ना के पागलपन और इस्लामिक कट्टरपंथ का ये नंगा नाच 20 अगस्त तक चलता रहा.
वहीं कलकत्ता के मेयर और कलकत्ता मुस्लिम लीग के सचिव एसएन उस्मान ने बांग्ला भाषा में लिखे हुए पम्पलेट बांटे थे जिनमें लिखा हुआ था,
“काफेर! तोदेर धोंगशेर आर देरी नेई। सार्बिक होत्याकांडो घोतबे”, जिसका मतलब था, “काफिरों! तुम्हारा अंत अब ज्यादा दूर नहीं है। अब हत्याकांड होगा।”
इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा अंजाम दिया गया यह हिन्दू नरसंहार इतना क्रूर था कि आज तक पता नहीं चल पाया है कि उस दौरान वास्तव में कितने हिन्दू मारे गए थे। इस घटना की वीभत्सता को देखते हुए इसे ‘द ग्रेट कलकत्ता किलिंग’ भी कहा जाता है। पंद्रह दिन तक तो बाकी दुनिया को इस नरसंहार की कानोकान खबर तक नहीं पहुंची। इसे नियति की विडंबना ही कहेंगे कि जिन मुसलमानों ने यह बर्बर कृत्य किया, दरअसल नोआखाली के वे गरीब, अशिक्षित, बहकाए हुए मुसलमान मुश्किल से पचास वर्ष पूर्व के धर्म-परिवर्तित हिंदू थे।
सौजन्य-hindufiles, quora
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