कांग्रेस के सबसे वफ़ादार और वरिष्ठ सदस्य गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार को कांग्रेस छोड़ दी। उन्होंने पार्टी के सभी पदों और सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
Congress leader Ghulam Nabi Azad severs all ties with Congress Party pic.twitter.com/RuVvRqGSj5
— ANI (@ANI) August 26, 2022
अपना इस्तीफा उन्होंने अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजा। 5 पन्नों के अपने इस्तीफे में उन्होंने लिखा “दुर्भाग्य से पार्टी में जब राहुल गांधी की एंट्री हुई और जनवरी 2013 में जब आपने उनको पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया, तब उन्होंने पार्टी के सलाहकार तंत्र को पूरी तरह से तबाह कर दिया। आजाद यहीं नहीं रुके, उन्होंने कहा “राहुल की एंट्री के बाद सभी सीनियर और अनुभवी नेताओं को साइडलाइन कर दिया गया और गैरअनुभवी चापलूसों का नया ग्रुप खड़ा हो गया और यही पार्टी को चलाने लगा।”
"Unfortunately after entry of Shri Rahul Gandhi into politics & particularly after January 2013 when he was appointed as VP by you, the entire consultative mechanism which existed earlier was demolished by him," says GN Azad in his resignation letter to Sonia Gandhi pic.twitter.com/20mbQsscSZ
— ANI (@ANI) August 26, 2022
गुलाम नबी आजाद ने राहुल गांधी पर हमला करते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी ने बीजेपी और राज्य स्तर पर क्षेत्रीय दलों से हार मान ली है। उन्होंने कहा, “यह सब इसलिए हुआ क्योंकि पिछले 8 वर्षों में नेतृत्व ने पार्टी के शीर्ष पर एक गैर-गंभीर व्यक्ति को थोपने की कोशिश की है।” इतना ही नहीं कांग्रेस पर हमला करते हुए उन्होंने कहा है कि कांग्रेस रिमोट कंट्रोल से चल रही है। राहुल गांधी के PA और गार्ड पार्टी में फैसले ले रहे हैं। सलाह मशवरा करने की परंपरा पूरी तरह से खत्म हो गई है।
दरअसल आजाद कई दिनों से हाईकमान के कुछ फैसलों से नाराज चल रहे थे। इसी महीने 16 अगस्त को कांग्रेस ने आजाद को जम्मू-कश्मीर प्रदेश कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाया था, लेकिन आजाद ने अध्यक्ष बनाए जाने के 2 घंटे बाद ही पद से इस्तीफा दे दिया था। आजाद ने कहा था कि ये मेरा डिमोशन है। 73 साल के आजाद अपनी सियासत के आखिरी पड़ाव पर फिर प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालना चाह रहे थे, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने उनकी बजाय 47 साल के विकार रसूल वानी को ये जिम्मेदारी दे दी। वानी गुलाम नबी आजाद के बेहद करीबी हैं। वे बानिहाल से विधायक रह चुके हैं। आजाद को यह फैसला पसंद नहीं आया था.
देखा जाए तो कांग्रेस में युवा नेताओं के आगे अनुभवी और वरिष्ठ नेताओं को साइडलाइन करने का खेल खेला जा रहा है जो कांग्रेस के अंत की स्क्रिप्ट लिख रहा है. गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के सदस्य होते हुए भी न केवल राष्ट्रवाद के पक्षधर बने रहे बल्कि पीएम नरेंद्र मोदी की नीतियों से भी काफी प्रभावित थे. उन्होंने पीएम मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा थी कि उन्हें गर्व है कि पीएम अन्य नेताओं की तरह नहीं है, और जमीन से जुड़े हुए नेता हैं। वहीं दूसरी तरफ आजाद के राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने वाले दिन उन्हें विदाई देते हुए PM नरेंद्र मोदी भावुक हो गए थे। 2021 में मोदी सरकार ने गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण सम्मान दिया था। जो कांग्रेस के कई नेताओं को पंसद नहीं आया था नेताओं ने सुझाव दिया था कि आजाद को यह सम्मान नहीं लेना चाहिए।
दरअसल कांग्रेस का इतिहास रहा है कि कैसे पार्टी में परिवार के दखल के लिए बाहरी नेताओं को या तो गुलाम बना लिया जाए या फिर उन्हें साइड लाइन किया जाए। लेकिन गुलाम नबी आजाद अपनी पार्टी की लाइन से ठीक इतर राष्ट्रवाद को बढ़ावा देते रहे और अपना रुख स्पष्ट करते हुए कभी भी राष्ट्र हित से कोई समझौता नहीं किया। वैसे भी जब से वे नरेंद्र मोदी की राष्ट्रवादी नीतियों के पक्षधर बने , तभी से ये कयास लगाए जा रहे थे कि वे जल्द ही कांग्रेस को टाटा करेंगे.
गुलाम नबीं आजाद के कांग्रेस छोड़ते ही कई सियासी अटकलें भी शुरू हो गई है. वहीं ऐसे में कांग्रेस की तरफ से आजाद के इस्तीफे के बाद क्या प्रतिक्रिया आती है ये भी देखना दिलचस्प रहेगा.
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