90 के दशक में कश्मीर में रहने वाले हिंदुओं को किस बेरहमी से मारा गया था उस जुल्म के कुछ ही अंश हमने फिल्म “द कश्मीर फाइल्स” में देखी है. लेकिन जो हुआ था वो इससे कहीं ज्यादा भयानक और खौफनाक था. इस फिल्म ने कश्मीरी पंडितों की पीड़ा और इस्लामिक कट्टरपंथियों के अत्याचार को बत्तीस सालों से अंजान देश के सामने लाकर रख दिया. लेकिन बात सिर्फ 90 के दशक की ही नहीं थी। धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर हिंदुओं के लिए नरक बन गया था। खुले तौर पर वहां एक नहीं, बल्कि कई नरसंहारों को अंजाम दिया गया। ऐसा ही एक दास्तां नदीमर्ग नरसंहार की है। जिसके बारे में जानकर आपकी रुह कांप उठेगी.
दरअसल जम्मू-कश्मीर HC ने एक दशक पहले बंद हो चुके नदीमर्ग नरसंहार केस की फाइल दोबारा खोलने का आदेश दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2003 में लश्कर के आतंकवादियों ने पुलवामा जिले में 24 कश्मीरी पंडितों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. नदीमर्ग में हुए कश्मीरों पंडितों के नरसंहार मामले में 2003 में जैनापोरा, शोपियां में धारा 302, 450, 395, 307, 120-बी, 326, 427 आरपीसी, 7/27 आर्म्स एक्ट और धारा 30 के तहत मामला दर्ज किया गया था. जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट 15 सितंबर, 2022 को केस में अगली सुनवाई करेगा.
नदीमर्ग नरसंहार भारतीय इतिहास की सबसे खौफनाक घटनाओं में से एक है जिसमें लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने 24 हिंदू कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी थी। फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ के आखिरी में एक साथ 24 कश्मीरी पंडितों को खड़ा करके गोली मारने का जो सीन दिखाया गया है वही था नदीमर्ग नरसंहार। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले के नदीमर्ग गांव में जिस समय 24 चिताओं को मुखाग्नि दी जा रही थी तो वहां बस कश्मीरी पंडितों के रोने चीखने की आवाज ही सुनाई दे रही थी। ये वो दृश्य था जिसे देखकर पूरी दुनिया के हिंदुओं का कलेजा छलनी हो गया था।
दरअसल 23 मार्च, 2003 के दिन शाम ढलते ही जब अंधेरा होना शुरू हुआ तब सात पाकिस्तानी आतंकवादी नदीमर्ग गांव में घुसे और हिंदुओं को उनके नाम से पुकार कर घर से बाहर बुलाया। बाहर बुलाकर महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया और सबके सामने उनके कपड़े फाड़े गये। बाद में सबको चिनार के पेड़ के नीचे इकट्ठा कर सभी को गोली मार दी गयी। जिन लोगों को गोली मारी गयी उनमें 70 साल की बुजुर्ग महिला, 2 साल का मासूम बच्चा और एक दिव्यांग तक शामिल था। 11 महिलाओं, 11 पुरुषों और 2 बच्चों पर आतंकवादियों ने बेहद नजदीक से गोली चलाई थी ताकि मरने वाले अपनी मौत को नजदीक से देख सकें। इसके बाद आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों के घरों को लूटा था और महिलाओं के गहने भी अपने साथ ले गये थे। न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार ने इस घटना का जिम्मेदार ‘मुस्लिम आतंकवादियों’ बताया। अमेरिका के स्टेट्स डिपार्टमेंट ने भी इसे धर्म आधारित नरसंहार माना था। इस पूरे प्रकरण में तत्कालीन राज्य सरकार की भूमिका संदेह के घेरे में रही थी क्योंकि बताया गया था कि नरसंहार से पहले उस इलाके की सुरक्षा में लगी पुलिस को हटा लिया गया था। 30 सुरक्षाकर्मियों की जगह मात्र 5 ही सुरक्षाकर्मी ड्यूटी पर थे और उन्होंने भी नरसंहार रोकने के लिए कोई हस्तक्षेप नहीं किया था।
जाहिर तौर पर कश्मीर फाइल्स फिल्म ने समूचे वामपंथी और सेक्यूलर बिरादरी के प्रोपेगेंडा को एक पल में खत्म कर दिया था. उसके बाद भी देश की विपक्षी पार्टियां पूछती हैं कहां हुआ था हिंदुओं पर अत्याचार ? कुछ विपक्षी दलों के नेताओं के मुताबिक फिल्म में सिर्फ काल्पनिक चीजें दिखाई गई थी. सच तो ये है कि उनकी आंखों पर तुष्टीकरण का चश्मा लगा है इसलिए वो भयानक मंजर उन्हें कभी नहीं दिखाई देगा . उनका काम सिर्फ मजाक उड़ाना था.
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