हम सबको पता है कि अभी तक जो भी सरकारें आई उसमें से किसी भी सरकार ने सनातन धर्म का ज्ञान वेदों का ज्ञान उपनिषदों का ज्ञान यहां तक की रामायण और महाभारत को भी अपने बच्चों को पढ़ाना मुनासिब नहीं समझा।
अब सबसे ज्यादा मुश्किल है हमारे बच्चों को अभी चल रही शिक्षण व्यवस्था से ऋषि परंपरा की शिक्षा की ओर लाना है । सबसे ज्यादा मुश्किल वही है की अब तक 70 साल की कांग्रेेस की गुलामी के दौर में भारत के पहले शिक्षण प्रधान लघुमति को ही बनाया गया। उसी के कारण भारत में आजादी के बाद शिक्षाा मैं जो बदलाव होना चाहिए था वह नहीं हो पाया। वह सरकार में ऐसेे प्रधानमंत्री जो एक्सीडेंटल हिंदूू थे ना तो उसे मंदिरों में रस था ना तो वैदिक शिक्षा में रस था । जातिवाद के नाम पर वोट बैंक के खातिर सिर्फ और सिर्फ लघुमति का विस्तार बढ़ता ही चला गया। अपने ही मुल्क में रहता हिंदू दिन प्रतिदिन सिकुड़ता हुआ देश एक बार फिर 1947 की और चला गया। यह इतिहास सिर्फ कांग्रेस के शासनकाल दरमियान का ही है ।उससे पहले का इतिहास अंग्रेजों द्वारा शिक्षण प्रथा को सुधार करने के बहाने इतिहास को ही बदल दिया गया।
अब हम वैदिक सनातन की और जाने का मार्ग तब ही प्रशस्त कर सकते हैं जब हमें कम से कम वेदों पुराण की पुस्तक की उपलब्धि हो सके । मंदिरों हमें ऐसी पुस्तक उपलब्ध करने के लिए ऐसी पुस्तकें पढ़ाने के लिए गुरुकुल की तरह काम करेंगे, तभी हम वेदों की ओर प्रयाण कर सकेंगे
जैसा कि मैंने बताया की मस्जिदों में इमाम को पगार देकर जो अजाने की जाती है उससे कहीं ज्यादा अच्छा है कि उसी पैसे का सदुपयोग सब की शिक्षा में किया जाना चाहिए और सनातन हिंदू मंदिरों को जो भी अनुदान मिलता है उस पर सरकार का कोई हक नहीं होना चाहिए । क्योंकि अगर किसी भी मस्जिद पर सरकार की कोई भी अंकुश नहीं है तो, जबकि भारत सेक्यूलर देश हैं मंदिरों पर भी सरकार का कोई अंकुश नहीं होना चाहिए।
भारत के हर एक मंदिर में अनुदान होने वाली धनराशि से सभी हिंदू व्यक्तियों को वैदिक शिक्षा पाने का हक और किसी भी भूखे हिंदू को भूखा सोना ना पड़े इसके लिए खाने की व्यवस्था हर एक हिंदू मंदिर का फर्ज बने । तब जाकर हम वैदिक शिक्षा भी पा सकेंगे और भूखे प्रवासी हिंदू को खाना भी खिला सकेंगे।
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