पुरुष की सफलता के पीछे नारी का हाथ होता है,यह कई बार चर्चा का विषय रहता है। हमेशा यह सुनने में आता है नारी ही पुरुष की सफलता की सीढ़ी है| यह चरितार्थ है एक सफल पुरुष के पीछे एक नारी होती है ।आज इसी बात की दूसरे पहलु पर विचार करने का मौका मिला एक नारी की उन्नति के पीछे एक पुरुष का उतना ही हाथ होता है जितना एक नारी का पुरुष के प्रति होता है। नारी, पुरुष एक सिक्के के दो पहलू है। भगवान ने जब सृष्टि रचना की तब एक पुरुष और एक स्त्री को पृथ्वी पर भेजा संसार बसाने को। प्रभु ने दोनों को क्यों भेजा क्या एक से संसार की रचना नही हो सकती ? नहीं तभी तो नारी और पुरुष एक दूसरे के बगैर अधूरे हैं। संसार के विस्तार के लिए एक दुसरे का साथ जरूरी| यु समझे गाड़ी और चालक का संबन्ध है नारी एवं पुरुष का। चालक के बिना गाड़ी अपने गंतव्य स्थान तक पहुंच नहीं सकती।ऐसे ही एक दुसरे के साहयता से एक दुसरे के सहयोग से ही पुरुष नारी सफलता की बुलन्दी छु सकते हैं। नारी कई रूपों से पुरुष के साथ होती है, जैसे बेटी,बहन,पत्नी एवं माता। पुरुष भी भिन्न भिन्न रूपों में नारी की सफलता में अपनी भूमिका निभा रहे हैं; जैसे पिता, भाई, पति और बेटा बनकर।
अब मैं उस पुरुष की बात करना चाहती हूँ जिनके जीवन का एक मात्र लक्ष्य ही संतान की खुशी है। जब घर में संतान का जन्म होता है तब माँ की प्यार भरी गोद के साथ पुरुष का स्नेह भरा हाथ का स्पर्श भी बहुत अनिवार्य होता है ।यहां मैं संतान के रूप में कन्या संतान की उल्लेख कर रही हूँ। बालिका के सिर पर जिस पुरुष का हाथ सदेव होता है वह एक पिता है। पिता का होना बालिका के जीवन में अति आवश्यक है। पिता पालनहार है। पिता परिवार की वह छतरी है जिनके तले बेटी हर खुशी पा लेती है। बेटी अपने आप को सुरक्षित महसूस करती है। पिता हर मुश्किल से समझोता करके बेटी को अच्छी संस्कार, ऊंची शिक्षा तथा बेहतरीन परवरिश देने की भरपूर कोशिश करता है। पिता खुद अनपढ़ हो पर बेटी को विद्या का महत्व समझाता है। पिता की उँगली पकड़कर विद्यालय में सफलता की पहली कदम रखती है। पिता से ही पुत्री को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है । पिता चाहे निर्धन हो पर अपनी पुत्री के लिए अज्छा से अच्छा वर तलाश करने की कोशिश करता है। पिता अपनी बेटी की खुशी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देता है। औरत का सुखमय जीवन सुनहरा भविष्य निर्माण में जिस पुरुष का योगदान है, वह एक पुत्री के पिता है।
कन्या के जीवन में और एक दूसरे पुरुष का पदार्पण होता है, जिसे एक लड़की राखी के बंधन में बांधकर भाई के रूप में स्वीकार करति है। भाई छोटा हो या बड़ा अपनी बहन को दुनिय की हर बुराई से सुरक्षित रखता है। भाई बहन की रक्षा कवज की तरह हर पल पास रहता है।बहन की दुंख दर्द में भाई पिता की तरह सहायक बनता है। बहन को दुनिया के भले बुरे राह से परिचित कराने में भाई अहम भूमिका निभाता है। जबतक बेटी पिता के घर रहती है जीवन के हर फेसले पर भाई को भागीदार बनाती है। भाई बहन का प्यार अनोखा ही होता है,जहां थोरी नोंक झोंक चलती रहती है । पर पिता के अनुपस्थिति में भाई में ही पिता का स्नेह ढ़ुढति है। बाहरी दुनिया को सही तरीके से जानना, समझना, परखना नारी की जीवन की एक महत्वपूर्ण कड़ी है।बचपन का सही मार्गदर्शन ही सफल भविष्य बनाने की नींव है। एक लड़की को बचपन में परेशानी से मुक्त कराने वाला भरोसा एक भाई का साथ है।
जब एक लड़की शादी कर अपने पति के साथ ससुराल आती है वहां भी पुरुष का सहयोग उसे ससुराल के नये माहोल, रिस्तेदारो को समझने में सहयोग करता है। एक नारी पुरुष वैवाहिक जीवन के पवित्र बंधन में बंध कर पति पत्नी बन गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते हैं। औरत अपने धीरज, प्यार, समर्पण से परिवार को सींच कर सफल गृहणी बनने की कोशिश करती है। पति पत्नी दोनों एक-दूसरे के विचारों का आदान-प्रदान करते हैं और एक स्वस्थ सफल रिश्ता निभाते हैं। इस कर्म में पुरुष हर प्रकार से नारी को अपना सहयोग प्रदान करता है। आज के समय में महिला घर बाहर दोनो सम्भाल रही है। आज के दौर में नारी भी धन उपार्जन कर पुरुष का हाथ बटा रही है।हर क्षेत्र में नारी पुरुष के बराबर काम कर रही है। पुरुष के सहयोग से ही नारी यह मुकाम हासिल कर रही है। नारी बाहर की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बना रही है। इस बदलाव में नारी का साथ देने वाला एक पुरुष है। आज पुरुष घर के कामों में बच्चों के देखभाल में मां की तरह भुमिका निभाता है। एक मित्र की तरह सलाहकार बन परिवार के संग आगे बढ़ने का मौका देता है। दाम्पत्य जीवन में पति के सहयोग के बगैर एक नारी किसी भी तरह सफल नहीं हो सकती । पुरुष की शक्ति नारी है तो नारी की उन्नति की सिढ़ी एक पुरुष ही ।
मां बनने के बाद ही एक नारी अपने को पुर्ण समझती है। औरत अपने रक्त से सींच कर गर्भ में सन्तान का पालन करती है। औरत की ढलती उम्र में, जब शरीर का हर एक अंग शिथिल होने पर एक प्यार भरा मजबूत हाथ जो मां को थाम लेता है वह एक पुरुष, एक बेटा ही है।बुढ़ापे के खालीपन में बेटे का साथ ही नारी को जीने की नई उम्मीद से भर देता है। पुत्र का कन्धा एक मां की अंतिम यात्रा में सहायक बनता है।
पहले भी नारी पुरुष दोनों ही थे,पर नारी को अपने बारे में सोचने का मौका ही नहीं मिला। नारी घर के काम तक सिमित थी और पुरुष बाहर के कामों में। पुरुष के आमदनी पर ही संसार का गुजारा चलता था| नारी हर सदस्य की जरूरतों का ध्यान में रखते हुए परिवार को अच्छे से संवारने की कोशिश में लगी रहती थी। पहले भी कुछ महिला उच्च शिक्षा ग्रहण करती थी पर उसका उपयोग घर के कामों में एवं अपने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देने तक ही सीमित रखती थी। नारी अन्नपूर्णा थी तो पुरुष अन्नदाता बनकर परिवार में औरत की सहायता करते थे। नारी को हमेशा से ही पुरुष का सहयोग मिला है बस सोचने और समझने का फर्क है। पुराने समय मे बाल बिबाह की प्रथा थी। दुर्भाग्यवश जब नारी विधवा हो जाती तब उससे जीने का हक छीन लिया जाता था। पति के साथ जिन्दा जलाया जाता। इस सतिप्रथा के नियमो को पालन हेतु असंख्य नारी ने अपनी कुर्बानी दी। बाल बिबाह में एक बच्ची लड़की अपने बारे मे सोचने मे असमर्थ थी। ऐसा भी होता था गुड्डे-गुड़ियों के खेलने की उर्म मे लड़की पति को खो देती थी।वह लड़की विधवा के नाम से जानी जाती थी।बच्ची लड़की को ज्ञात ही नहीं होता विधवा किसे कहते, पति पत्नी के सम्बन्ध ,ससुराल,रिश्ते नाते से वह अपरिचित रहती है। आज हम नारी इस रुढ़ी वादियों से बच पाये कुछ माहापुरूषो के आन्दोलन से। राजाराम मोहन राय, स्वामीबीबेकानन्द जैसे महान व्यक्तियों ने इस के विरोध मे आवाज उठाई, यह वह पुरुष है जिनके संघर्ष ने ही बाल विवाह ,सतिप्रथा पर रोक लगाई। नारी को शिक्षित करने का प्रयास किया।उन पुरुषों के सहयोग के कारण आज नारी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है। समाज के बड़े-बड़े पद मे नारी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इतिहास रानी लक्ष्मीबाई की याद दिलाती है,अपना राज्य बचाने के लिए जीवन की अंतिम श्वास तक फिरंगियों के संग लड़ी थी। इस महान नारी को युद्ध कोशलता की शिक्षा बचपन से ही पिता के नेतृत्व मे मिली थी। स्वाधीन भारत निर्माण में सरोजिनी नायडू के साथ देने वाले भी पुरुष थे। अन्तंरीक्ष को छूने वाली कल्पना चावला को भी समर्थ बनाने में उनके पिता का साथ था। नारी आज अपनी मर्यादा का ध्यान रखते हुए सफलता के शिखर छू रही है। नारी को प्रतिष्ठित करने मे प्रत्यक्ष या अप्रतक्ष्य किसी पुरुष का हाथ है। हमने शास्त्र में देखा माता पार्वती को आदिशक्ती गुणों का ज्ञात भगवान शिव ही करवाते है। माता अपने पति की साहयता से अपनी शक्ति को पहचान पाई, और असुरों का संहार किया। हम मनुष्य ही नही देवी देवता भी एक दूसरे के सहयोग से ही पुर्ण है। हम औरत को यह स्वीकारने मे गर्व होना चाहिए उर्म के हर पड़ाव में नारी की ऊंची उड़ान मे पुरुष का साथ एवं योगदान रहा है ।
कुल मिलाकर यह ही कहना चाहूँगी,
नारी तू शक्तिशाली, है तू महान,
तू ही गृह लक्ष्मी, तू ही जननी,
त्याग की मूरत, ममता की देवी,
तूपुरुष से ही शोभायमान।
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