नाविका,TRP की लड़ाई में तुम क्यों कूद गई.
रोना तो उनका था जो TRP के लिए तड़प रहे थे,TIMES NOW बीच में कहाँ से आ गया.
ये लड़ाई सिर्फ TRP की लड़ाई नहीं थी बल्कि सत्य और असत्य की थी,यह लड़ाई एक एजेंडे की थी,इसमें हाथरस का षड़यंत्र घुसा हुआ है,एक गिद्ध की नाक बचाने के लिए,एक युवराज को 1001 वीं बार लांच करने की थी.
यह लड़ाई सुशान्त सिंह की मृत्यु की थी जिसके लिए न्याय दिलाने की लड़ाई तुम्हारा चॅनेल भी लड़ रहा था.
नाविका,हम टाइम्स नाओ अरनब के समय से देखते आ रहे हैं और विश्वास करो किसी ने हमें पैसे नहीं दिए,आज भी हम रिपब्लिक के बाद टाइम्स नाउ देखते हैं,क्या आप 500 न सही 250 देते हैं.
जो लेगेसी टाइम्स नाउ की आज है वह अरनब की ही है.कोई बात नहीं जो आंतरिक प्रतिद्व्न्दिता से तुम लड़ाई में कूद गई लेकिन एक बार भी नहीं सोचा कि अगर पुलिस का बयान पत्थर की लकीर है तो फिर अपने सुशान्त सिंह मामले में पुलिस की कहानी पर प्रश्न उठाए??
आपके अलावा किसी को भी पुलिस के इस रवैए पर आश्चर्य नहीं था,सभी कभी न कभी इसी हादसे के इंतज़ार में थे,मुंबई पुलिस/प्रशासन की आँख की किरकिरी है अरनब ,अगर वह भी पालघर के साधुओं की निर्मम हत्या की अनदेखी करता तो सारे मंत्री संतरी ,कप्तान सप्तान सब जी हजूरी करते।
आप क्या इस सरकार को नहीं जानती? ये वे ही लोग हैं जिन्होंने मालेगांव में आतंकियों को भगाकर कर्नल पुरोहित,साध्वी प्रज्ञा ठाकुर,कैप्टेन उपाध्याय को एक एजेंडे के तहत नौ साल तक बगैर चार्ज शीट के जेल में सड़ाया ,सोनिया सेना के सिपहसालार और ज़ाकिर नाईक के बगलगीर हिन्दू आतंकवाद को उछालने वाले दिग्गी जैसे शातिर दिमाग को क्यों भूल गई ?
जो आतंकियों को भगाकर हिन्दुओं को फंसा सकते हैं वे FIR में इंडिया टुडे की जगह रिपब्लिक को क्यों नहीं फंसा सकते,उनकी चल ही यह है कि TRP का मामला दिखाकर मीडिया को आपस में लड़ाकर अरनब को कर्नल पुरोहित या साध्वी प्रज्ञा क्यों नहीं बना सकते।
उम्मीद है आपको इनकी चाल पता चल ही गई होगी,और जहां तक किसी के बयान लेने की बात है आज मुंबई में किसकी हिम्मत है जो पुलिस/प्रशासन के दबाव में न हो.
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Very well written. Times now must be the chief strategist behind this. In the right wing news industry it is the biggest loser to republic.