बोध कथाओं का हमारे जीवन पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ता है | अक्सर देखा और सुना जाता है कि छोटी छोटी बोध कथाएँ हमारे जीवन पर वो प्रभाव डालती हैं जो बड़े बड़े किताब और ग्रन्थ भी नहीँ डाल पाते |

अपनी नानी दादी से हम सबने ऐसे कहानियाँ गर्मियों की शाम और सर्दियों की गुनगुनी धूप में उनकी गोद में बैठ कर जरूर सुनी होंगी | हलके फुल्के अंदाज़ में उनकी सुनाई ये कहानी बच्चों में संस्कृति और संस्कार के बीज डाला करती थी |पढ़िए :-


देवों में सबसे श्रेष्ठ देवऋषि  नारद जी  का स्थान माना जाता रहा है | कहा जाता है कि जब प्रभु श्री हरि विष्णु ने अपनी मनपसंद वीणा देव ऋषि को दी थी तो साथ ही यह शर्त भी रख दी थी कि वे  उससे  सिर्फ नारायण नारायण का ही जाप करेंगे | उसका प्रभाव यह  पडा कि  देवर्षि नारद के  मन में कहीं न कहीं दंभ  का भाव उत्पन्न हो गया |

उनका अहम्  स्वाभाविक भी था जिसे स्वयं  नारायण ने  यह आदेश दिया कि वह हमेशा अपने मुख से  श्री नारायण को  ही याद करते रहेंगे | लेकिन यह भाव इस कारण से उत्पन्न हुआ था क्योंकि नारद स्वयं  को विश्व  प्रभु का सबसे बड़ा भक्त समझने लगे थे | ईश्वर को नारद मुनि का यह भाव ज्ञात होते ज्यादा देर  नहीं लगी |


किंतु ईश्वर जो भी करते हैँ उसके पीछे कोई ना कोई कारण अवश्य होता है |   नारद पूरी सृष्टि का भ्रमण करके आते और विष्णु के समक्ष खड़े होते तो उन्हें इस बात की उम्मीद रहती कि प्रभु जब भी अपने भक्तों में से सर्वश्रेष्ठ  भक्त  का  उल्लेख  करेंगे  नि;संदेह  वह नाम  नारद  मुनि का ही होगा |

किन्तु उन्हें बहुत निराशा हाथ लगती जब वे पाते कि प्रभु देवर्षि नारद का नाम न लेकर अपने भक्त एक गरीब पुजारी का नाम लेकर उन्हें अपना सबसे बड़ा भक्त बताते थे | एक दिन नारद मुनि ने निश्चय किया कि वे उस पुजारी की परिक्षा लेकर देखेंगे |

देवर्षि नारद मुनि देवलोक से सीधे उस पुजारी की कुटिया में पहुंचे | पुजारी रोज़ की तरह अपने प्रभु की पूजा के लिए जंगल से चुन कर लाए गए फूल फल नैवेद्य आदि रख संभाल रहा था | जैसे ही देवर्षि ने “नारायण नारायण ” का जाप किया रविदास ने सर उठाकर ऊपर देखा |

“ओह देवर्षि नारद | भक्त का प्रणाम स्वीकार करें | मेरे प्रभु श्री हरि कैसे हैं ?”

नारद कुटिल मुस्कान से साथ बोले ” अच्छे हैं जब मैं देवलोक से चला था तो वे सुई में से हाथी निकाल रहे थे | “

गरीब पुजारी ने आनंद से कहा , ” जय श्री हरि , प्रभु की लीला अपरम्पार ” |

यह सुन कर नारद मुनि जोर से ठठा कर हँसे और बोले , ” तुम्हें तो प्रभु अपना सबसे बड़ा भक्त मानते हैं किन्तु तुममें तो ज़रा सी भी तर्क बुद्धि नहीं है , कहीं सुई में से भी हाथी निकल सकता है ?? “

अब मुस्कुराने की बारी गरीब पुजारी की थी | उन्होंने सामने बरगद के वृक्ष से पक कर गिरे एक फल को उठाया और उसे हाथों से मसल दिया , एक कण के बराबर बीज अपनी हथेली पर रख कर पूछा , मुनिवर क्या ये बीज सुई से बड़ा है ?? “

“नहीं ये तो अति सूक्ष्म है , सुई तो इससे कहीं अधिक बड़ी होती है ” मुनिवर ने हैरान होकर उत्तर दिया |

पुजारी ने कहा , ” मुनिवर अब उधर देखिये इस बरगद के वृक्ष के नीचे एक नहीं बीस हाथी विश्राम कर रहे हैं तो यदि प्रभु बरगद के एक सूक्ष्म बीज (जो कि सुई से भी कहीं छोटा है ) को मिट्टी में दबाने के बाद उसे इतना विशाल कर सकते हैं तो प्रभु के लिए क्या असंभव है |

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