साहस और मूर्खता में बस बाल भर का अंतर होता है । निमिष मात्र पहले जो साहस होता है अगले ही पल मूर्खता में भी ढल सकता है अगर विवेक का साथ ना हो तो। श्री अजीत भारती के प्रकरण में यह बात अक्षरशः सही साबित होती है । श्री भारती ने भारतीय न्याय व्यवस्था पर आरोप लगाए और क्या जोरदार लगाए हैं … लगाना भी चाहिए। परंतु गलती वही हुई कि कोई प्रतिज्ञा करे कि ये काम न कर पाया तो अपनी जान दे दूंगा। आधुनिक विचारक जाति व्यवस्था को एक कुरीति मानते हैं परंतु इस बात को भूल जाते हैं इसी जाति व्यवस्था ने मुगलों के कालखंड तक सनातन की अविरल धारा को गंगा से सरस्वती नहीं होने दिया । इसी जाति व्यवस्था ने शायद छुआछूत बढ़ाया हो परंतु किसी भी पेट को रोटी की कमी महसूस नहीं होने दी है । जाति व्यवस्था वास्तव में भारतीय सामाजिक व्यवस्था के द्वारा प्रदान की गई वह आरक्षण व्यवस्था थी जिसमें किसी को किसी से चिढ़ नहीं थी। सब के पास एक व्यवस्थित संरचना के के अनुसार एक रोजगार था । हर किसी को अपनी आजीविका के बाइस साल यह सोचना नहीं पड़ता था कि भरण पोषण के लिए करना क्या है। परंतु आज सरकारी आरक्षण के लिए जाति आवश्यक है और दलित विमर्श के लिए भी जाति आवश्यक यहां तक की बलात् शील हरण जैसी वीभत्स घटनाओं के लिए भी राजनैतिक समर्थन चाहिए तो जाति आवश्यक । परंतु जैसे ही सामाजिक समरसता की बात हुई तो जाति की चर्चा के साथ ही पूरा सिस्टम मनुवादी। जो भी व्यवस्था रोजगार देगी वहां पर जाति व्यवस्था दिखाई देगी। छोटे से ऑफिस को देखिए, पंसारी की दुकान को देखिए याशहरों में खुलते हुए मॉल को देखिए, सरकारी ऑफिस को देखिए हर जगह वही हायरार्की यानी ऊंच नीच ।
इसका मतलब है कि जाति व्यवस्था को निरस्त करने से पहले आपके पास जाति विहीन व्यवस्था का एक पूरा रोड मैप होना चाहिए तभी आप जाति को नकारने की घोषणा करें । वही गलती अजीत भारती ने की है। उन्होंने न्याय व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह तो उठा दिया परंतु अगर व्यवस्था में दोष है तो न्याय पाने कहां जाएंगे मीडिया हाउस के पास। क्या रवीश कुमार, सुधीर चौधरी , रजत शर्मा , तरुण तेजपाल ,श्वेता सिंह , प्रणय राय जैसे पत्रकार अब न्याय व्यवस्था में न्यायधीश की कुर्सी संभालेंगे।
आपने दूध में मक्खी दिखा कर लोगों को दूध का वहिष्कार करने के लिए व्यवस्था तो कर दिया दूध को फेकने के लिए व्यवस्था कर दिया लेकिन मां अपने बच्चे को क्या पिलाए, यूट्यूब पर आपका वीडियो। कास्टिंग काउच कहां नहीं होता है । नेता हो या अभिनेता, पुलिस हो या सैनिक हर जगह आदर्श के सफेद रैपर के पीछे वही सड़ांध होती है। सैनिटाइजर और टॉयलेट क्लीनर बेचने वाले विज्ञापन में बताते हैं कि आपको पता है कि आपके किचन में रखे हुए गैस स्टोव के नाॅब पर टॉयलेट सीट से ज्यादा कीटाणु होते हैं । ये आप जानते हैं उनका उद्देश्य सिर्फ अपना सैनिटाइजर या टॉयलेट क्लीनर बेचना होता है पर जाने अनजाने कोई आपके अन्तर्मन में अपने रसोईघर के प्रति भी घृणा उत्पन्न कर देते हैं ।
जाने अनजाने ही सही अजीत भारती जी ने वही काम कर दिया है । लोग जब भी व्यवस्था से आजिज होते हैं तो न्यायालय की शरण में जाते हैं पर अजीत भारती के इस वीडियो के बाद तो बस यही शेर दुहरा पाएंगे कि
अब तो घबरा ये कहते हैं कि मर जाएंगे ,
मर के भी चैन न पाया तो कहां जाएंगे।।
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