नेहरू और शैख अब्दुल्ला की कुटिल चालों को ध्वस्त करने में धारा 370 का हटाना सबसे महत्वपूर्ण कदम हो सकता है,लेकिन घोर विपरीत परिस्थितियों में जम्मू कश्मीर के भारतीय संघ में पूर्ण विलय के शिल्पियों में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तरह पंडित प्रेमनाथ डोगरा की उल्लेखनीय भूमिका को स्मरण करना आवश्यक है! जनसंख्या और क्षेत्रफल कम होने के बावजूद कश्मीर को जम्मू और लद्दाख संभाग से अधिक सीटें (गुलाम कश्मीर 25, कश्मीर 43, जम्मू 30 एवं लद्दाख 2) देकर मुसलमानों के हाथों प्रभुत्व हमेशा हमेशा के लिए सुनिश्चित करने की साजिश रची गई। हद तो तब हो गई जब कश्मीर संभाग की सभी 43 सीटों पर नेशनल कांफ्रेंस के प्रत्याशी निर्विरोध विजयी घोषित कर दिए गए और जम्मू संभाग की 13 सीटों पर प्रजा परिषद् प्रत्याशियों के नामांकन रद् कर नेशनल कान्फ्रेंस के प्रत्याशियों की निर्विरोध जीत सुनिश्चित की गई। इस अंधेरगर्दी और अराजकता का विरोध करते हुए प्रजा परिषद् चुनावों से हट गई और नेशनल कांफ्रेस ने बिना किसी चुनाव के संविधान सभा की सभी 75 सीटें जीतने का कीर्तिमान बनाया। इसे भारत के इतिहास में ‘बिना लड़े चुनाव जीतने की नेशनल कांफ्रेंस पद्धति’ के नाम से जाना जाता है। प्रजा परिषद् ने लोकतंत्र की इस निर्मम हत्या के खिलाफ सड़कों पर बड़ा आंदोलन खड़ा करके जम्मू-कश्मीर में चल रहे अन्याय एवं अधिनायकवाद की ओर तत्‍कालीन नेहरू सरकार का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया लेकिन नेहरू तो…! अपने विदेशी आकाओं और साम्यवादी मित्र-देशों की शह पाकर अब्दुल्ला का अलगाववाद,अधिनायक वाद और मुस्लिम वाद बेकाबू होता जा रहा था! शेख अपनी पार्टी के झंडे को राष्ट्रीयध्वज से ज्यादा महत्व देने लगा और उसे सरकारी कार्यक्रमों तक में फहराने लगा। श्याम प्रसाद मुखर्जी ने अपना बलिदान देकर एक देश में दो निशान,दो विधान और दो प्रधान के खिलाफ नेहरू को निर्णय लेने पर मजबूर किया!
डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की गिरफ्तारी और रहस्यमय मृत्यु आदि घटनाएं शेख अब्दुल्ला के अलोकतांत्रिक व्यवहार की पराकाष्ठा थीं। वे नेशनल कान्फ्रेंस की निजी सेना के बलबूते जम्मू-कश्मीर को निजी जागीर बनाना चाहते थे। पंडित प्रेमनाथ डोगरा और प्रजा परिषद् ने उनके मंसूबों पर न सिर्फ पानी फेरा, बल्कि उनका पर्दाफाश भी किया और अंततः नेहरू को अपने चहेते शेख अब्दुल्ला को 8 अगस्त,1953 को बर्खास्त करते हुए गिरफ़्तार करना पड़ा पंडित प्रेमनाथ डोगरा ने हरिजन सेवा मंडल, सनातन धर्म सभा, ब्राह्मण मुख्य मंडल और डोगरा सदर सभा जैसी सामाजिक संस्थाओं की स्थापना करते हुए सामाजिक सौहार्द्र और समरसता के लिए भी उल्लेखनीय कार्य किया। उनका निधन 21 मार्च, 1972 को हुआ। प्रजा परिषद् का घोषणा-पत्र स्वातंत भारत को एक रखने का ऐतिहासिक दस्तावेज है, और उसका महत्व भी निर्विवाद है। इस दस्तावेज के बिंदुओं पर ठीक से काम कर पंडित प्रेमनाथ डोगरा के अखंड भारत सपनों को साकार किया जा सकता है और उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है!
-गंगा सिंह

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