बचपन की वो बारिश…
घास पे पानी की बूंदों को एकटक देखा करते थे। गीली रेत पे घरौंदे भी तो बनाया करते थे।
घास पे पानी की बूंदों को एकटक देखा करते थे। गीली रेत पे घरौंदे भी तो बनाया करते थे।
बचपन की वो बारिश…
कितना कुछ लेकर आती थी।
हम बच्चो को कितना खुश कर जाती थी।
उस बारिश में….
मिलकर हम सब आंगन में नाचा करते थे।
संग दादी के हम भी चिड़ियों को दाना देते थे।
घास पे पानी की बूंदों को एकटक देखा करते थे।
गीली रेत पे घरौंदे भी तो बनाया करते थे।
मां के हाथ के बने पकौड़े और चीले
झटपट चट कर जाया करते थे।
छज्जे पर सारा दिन बस घर घर खेला करते थे।
साबुन पानी के बुलबुले मस्ती से उड़ाया करते थे।
सुन्दर रंग – बिरंगी छतरियां दोस्तों संग लहराया करते थे।
भीगे रास्तों पर पैरो से पानी के छींटे उड़ाया करते थे।
परन्तु अफसोस, अब हमे बारिश का इंतज़ार नहीं।
बारिश तो वही है, पर अब हम बड़े हो गए हैं।
अब हम बारिश के बूंदों संग नाच नहीं पाते।
इसीलिए शायद अब बारिश उतनीअच्छी नहीं लगती…
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