राष्ट्रपति ट्रम्प की हार का प्रिडिक्शन लगभग सभी ने कर दिया है पर उनके कैम्पेन ने कई लॉ सूट फ़ाइल किए हैं इसलिए शायद अंतिम घोषणा आने में थोड़ा समय लगे । इस बीच प्रेसिडेंट इलेक्ट जो बाइडन और वाइस प्रेसिडेंट इलेक्ट कमला हैरिस ने राष्ट्र के नाम सम्बोधन भी कर दिया है । इसके साथ ट्रम्प प्रशासन की दौरान हुए कुछ फ़ैसलों के संशोधन और कुछ के बदले जाने के क़यास लगने शुरू हो गए हैं :
इज़रायल-फ़िलिस्तीन विवाद :
ट्रम्प प्रशासन का स्टैंड साफ़ तौर पर इज़रायल के साथ था । अमेरिका की पॉलिसी राष्ट्रपति ट्रम्प ने बदल दी थी और अपनी एम्बसी को टेल-अवीव से जेरूसलम शिफ़्ट किया था । २०१८ के बाद फ़िलिस्तीन के साथ US के राजनैयिक सम्बंध पूरी तरह ख़त्म हैं । बाइडन प्रशासन में इसमें काफ़ी बदलाव आने की सम्भावना जतायी जा रही है । Washington Post की खबर के मुताबिक़ बहुत सम्भव है की एम्बसी वापस टेल-अवीव ना आए पर शायद पूर्वी जेरूसलम में अमेरिकी एम्बसी खोली जा सकती है साथ ही फ़िलिस्तीन मिशन को Washington में भी खोला जा सकता है । ये अमेरिका को ट्रम्प से पहले के स्टैंड को बदल देगा ।
वीज़ा और शरणार्थी कार्यक्रम में बदलाव :
वीज़ा नियमों में ढील दिए जाने की सम्भावना है । ग्रीन कार्ड की वार्षिक संख्या में इज़ाफ़ा हो सकता है । इससे जहां एक ओर वीज़ा की प्रॉसेस थोड़ी बदल सकती है जिसे ट्रम्प प्रशासन ने थोड़ा कड़ा किया था अमेरिकी लोगों की नौकरी बचाने के लिए । साथ ही इसका असर अमेरिका में नौकरी कर रहे प्रवासियों के भत्ते पर भी पड़ सकता है जिसमें कम्पेटिटिव बनाने के लिए बढ़ोतरी की गयी है । करोना से प्रभावित इकॉनमी इसे और बुरा बना सकती है ।
साथ ही शरणार्थी प्रोग्राम में ३५००० की बढ़ोतरी की सम्भावना है जिसमें उनके अमेरिका में बसने और नागरिकता दिए जाने के प्रावधान होंगे । यूरोप जिस तरीक़े से शरणार्थियों के साथ आयी समस्याओं से जूझ रहा है , उसको देखते हुए ये कदम देखने वाला होगा अगर लिया जाता है तो ।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनायज़ेशन में अमेरिका की वापसी :
करोना महामारी के चलते अमेरिका और WHO में तनातनी इतनी बढ़ गयी थी कि ट्रम्प प्रशासन ने WHO को दी जाने वाली सहायता बंद कर दी थी । इसके भी अब बदल जाने की पूरी सम्भावना है । इसका असर WHO के ढाँचे पर पड़ेगा ।
भारत के अंदरूनी मामलों पर असर :
ट्रम्प प्रशासन ने भारत के अंदरूनी फ़ैसलों पर दख़लंदाज़ी ना करने की नीति अपनायी थी । ३७० हटाने की बात हो या CAA की , दोनों पर UN में चीनी – पाकिस्तानी प्रस्तावों को गिराने में अमेरिका ने मदद की थी । बाइडन और हैरिस के बयान इसके उलट कश्मीर को तथाकथित मानवतावादी दृष्टिकोण देने वाले हैं । जिसका सीधा मतलब होगा इज़रायल फ़िलिस्तीन की तरह ही अमेरिका दोनों देशों में से किसी के साथ नहीं आएगा । अब सारा दारोमदार एस जयशंकर और अजीत दोवाल के ऊपर है कि वो कैसे हैंडल करते हैं । साथ ही चीन के साथ ट्रम्प प्रशासन बीते काफ़ी समय से हमलावर था जिसका फ़ायदा भारत को मिल सकता था , अब इसके भी बदलने की सम्भावना है ।
वैसे तो ये सब सम्भावित बदलाव ही हैं पर कैम्पेन में जिस तरह से बाइडन और हैरिस ने अपने बयान दिए हैं , उससे ये बहुत सम्भव है कि ये लागू हो जाएँ । दुनिया में इन फ़ैसलों का बहुत असर पड़ेगा !! भारतीय राजनीति में भी लेफ़्ट-तथाकथित लिबरल – कांग्रेसियों के सुर भी बदलेंगे !!!
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