कल एक कोंग्रेसी नेता ने भगवान् श्रीराम पर न केवल अभद्र टिपण्णी की बल्कि अपनी बात को ऊपर रखने के लिए कुतर्क दिया

ये कुतर्क पहले तो ये सिद्ध करता है की कांग्रेसी, आपिये और वामपंथी एक ही विचारधारा से जन्मे तीन वर्णसंकर प्रजातियां हैं। अब आइये आते हैं मुद्दे पर, जब भी कोई आपके समक्ष ये तर्क रखे तो उस से 3 प्रश्न अवश्य करिये मेरा दावा है की वो इनका उत्तर नहीं दे पायेगा: 1. क्या वो श्रीराम के अस्तित्व को स्वीकारते हैं? क्यूंकि वो इस पूरे इतिहास को ही काल्पनिक मानते और बताते हैं, तो शम्बूक भी काल्पनिक हुआ? 2. श्रीराम जातिवादी थे तो निषादराज उनके सबसे प्रिय मित्र कैसे हुए? उन्होंने निषादराज को यज्ञ में अपने समक्ष क्यों बिठाया? 3. श्रीराम ने शबरी के साथ भेदभाव क्यों नहीं किया उनके जूठे बेर कैसे खा लिये ?

अब आते हैं इस प्रसंग पर जिसे वाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड से लिया गया है, जब आप रामायण को पढ़ेंगे तो आप पाएंगे की रामचरितमानस वाल्मीकि रामायण का अनुवाद है, पर रामचरितमानस का उत्तरकाण्ड और वाल्मीकि रामायण का उत्तरकाण्ड बिलकुल अलग है पर ये कैसे संभव है? अगर आप संस्कृत व्याकरण को अच्छी तरह समझते हैं तो जैसे ही आप लंकाकाण्ड के बाद उत्तरकाण्ड पढ़ेंगे आपको लेखनशैली में, शब्दों के चयन में स्पष्ट अंतर समझ आ जायेगा। रामचिरमानस का उत्तरकाण्ड इसके विपरीत बिलकुल अलग है।

रामकथा पर सबसे प्रामाणिक शोध करने वाले फादर कामिल बुल्के का स्पष्ट मत है कि ‘वाल्मीकि रामायण का ‘उत्तरकांड’ मूल रामायण के बहुत बाद की पूर्णत: प्रक्षिप्त रचना है।’ (रामकथा उत्पत्ति विकास- हिन्दी परिषद, हिन्दी विभाग प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रथम संस्करण 1950)
लेखक के शोधानुसार ‘वाल्मीकि रामायण’ ही राम पर लिखा गया पहला ग्रंथ है, जो निश्चित रूप से बौद्ध धर्म के अभ्युदय के पूर्व लिखा गया था अत: यह समस्त विकृतियों से अछूता था। यह रामायण युद्धकांड के बाद समाप्त हो जाती है। इसमें केवल 6 ही कांड थे, लेकिन बाद में मूल रामायण के साथ बौद्ध काल में छेड़खानी की गई और कई श्लोकों के पाठों में भेद किया गया और बाद में रामायण को नए स्वरूप में उत्तरकांड को जोड़कर प्रस्तुत किया गया।
बौद्ध और जैन धर्म के अभ्युदय काल में नए धर्मों की प्रतिष्ठा और श्रेष्ठता को प्रतिपा‍दित करने के लिए हिन्दुओं के कई धर्मग्रंथों के साथ इसी तरह का हेर-फेर किया गया। इसी के चलते रामायण में भी कई विसंगतियां जोड़ दी गईं। बाद में इन विसंगतियों का ही अनुसरण किया गया। कालिदास, भवभूति जैसे कवि सहित अनेक भाषाओं के रचनाकारों सहित ‘रामचरित मानस’ के रचयिता ने भी भ्रमित होकर उत्तरकांड को लव-कुश कांड के नाम से लिखा। इस तरह राम की बदनामी का विस्तार हुआ।

सीता परित्याग और अग्निपरीक्षा सहित सीता की भूमि समाधि जैसी बाते विक्षेप मात्र हैं, विपिन किशोर सिन्हा ने एक छोटी शोध पुस्तिका लिखी है जिसका नाम है- ‘राम ने सीता-परित्याग कभी किया ही नहीं।’ यह किताब संस्कृति शोध एवं प्रकाशन वाराणसी ने प्रकाशित की है। इस किताब में वे सारे तथ्‍य मौजूद हैं, जो यह बताते हैं कि राम ने कभी सीता का परित्याग नहीं किया। न ही सीता ने कभी अग्निपरीक्षा दी।

वास्तव में शम्बूक वध नरेन्द्र कोहली द्वारा रचित नाटक है। नरेंद्र कोहली का जन्म 6 जनवरी 1940 संयुक्त पंजाब के सियालकोट नगर, भारत मे हुआ था जो अब पाकिस्तान मे है। प्रारम्भिक शिक्षा लाहौर मे आरम्भ हुई और भारत विभाजन के पश्चात परिवार के जमशेदपुर चले आने पर वहीं आगे बढ़ी। दिलचस्प है कि प्रारम्भिक अवस्था में हिन्दी के इस सर्वकालिक श्रेष्ठ रचनाकार की शिक्षा का माध्यम हिन्दी न होकर उर्दू था। हिन्दी विषय उन्हें दसवीं कक्षा की परीक्षा के बाद ही मिल पाया। ये पूरा प्रकरण एक वामपंथी के खुराफाती दिमाग की उपज मात्र है, शिक्षा क्षेत्र में अपने दबदबे के कारण इन्होने इसका फायदा उठाया और हमारे धर्मग्रंथों में विक्षेप डाले ताकि समाज उन्हें पढ़कर भ्रमित हो।

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