जिहाद का ज़िक्र आने पर ‘भगवद्गीता’ से तुलना करने वालों को कान पकड़ कर ये लेख पढ़ाइए..
भगवान कृष्ण यहां पर जिस धर्म की बात कर रहे हैं वो रिलीजन नहीं बल्कि ड्यूटी है..क्षत्रिय के कर्तव्य की बात कर रहे हैं..
भगवान कृष्ण यहां पर जिस धर्म की बात कर रहे हैं वो रिलीजन नहीं बल्कि ड्यूटी है..क्षत्रिय के कर्तव्य की बात कर रहे हैं..
जिहाद की तुलना भगवद्गीता से क्यों की ?
अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि |
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि || ३३ ||
कुछ दिन पहले एबीपी न्यूज़ देख रहा था..हामिद अंसारी ने राष्ट्रवाद को कोरोना से भी गंभीर महामारी बताया था..उसी पर रूबिका लियाकत चर्चा कर रही थी..इसी दौरान संघ विचारक संगीत रागी ने कट्टर इस्लाम को आतंकवाद का जनक कहा तो रुबिका लियाकत नाराज़ हो गई..उसके अंदर का मुसलमान जाग गया..इस्लाम का बचाव करते हुए उसने जिहाद की तुलना भगवद्गीता से कर दी..कुछ दिन पहले अज़ान की आवाज के लिए उसने डिबेट रोक दी थी..और भी कई बातें थी..कमेंट बॉक्स में वीडियो का लिंक है
कुछ हफ्ते पहले यानी फ्रांस में जब एक मुसलमान ने चर्च में तीन लोगों का गला रेत दिया था तब सेक्युलर वेबसाइट द प्रिंट (शेखर गुप्ता की) में एक ‘जिहादी’ पत्रकार ने लिखा था कि अगर कुरान में मरने-मारने की बात लिखी है तो दूसरे धर्मों के धर्मग्रंथ में भी ये बात है..फिर इसे जस्टिफाई करने के लिए उसने भगवद्गीता, बाइबिल, तोरा, गुरु ग्रंथ साहिब का जिक्र किया है..मैं कुरान के बारे में नहीं जानता लेकिन लेखिका ने कहा है तो मान लेना चाहिए कि कुरान में मरने-मारने की बात है..इसी तरह मुझे बाइबिल, तोरा और गुरु ग्रंथ साहब के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है और आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर ज्ञान नहीं देना चाहिए..इसलिए मैं फिलहाल खुद को भगवद्गीता तक ही सीमित रखता हूं..द प्रिंट की लेखिका ने अपनी बात साबित करने के लिए भगवद्गीता के अध्याय 2 के श्लोक नंबर 33 का उदाहरण दिया था…
अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि |
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि || ३३ ||
यानी जेहादी पत्रकार ने इस श्लोक की व्याख्या अपने हिसाब से कर दी…मतलब कुछ और था..उसने कुछ औऱ मतलब निकाल दिया..
1- पहली कमी तो यही है कि जिस तरह मुसलमानों के लिए कुरान है..ईसाइयों के लिए बाइबिल है..सिखों के लिए गुरु ग्रंथ साहिब है…हिंदुओं के लिए भगवद्गीता वैसी नहीं है..बल्कि भगवद्गीता तो धर्मग्रंथ ही नहीं है..भगवद्गीता तो Way Of Life है..जीवन का रास्ता है..हिंदू धर्म की यही खासियत है कि इसे किसी एक किताब, किसी एक पैगबंर…किसी एक भगवान तक सीमित नहीं किया जा सकता..हिंदू धर्म दूसरे धर्मों की तरह जड़ नहीं है..सनातन है..करोड़ों देवता..हजारों धर्मग्रंथ..जिसकी जैसी श्रद्धा..वैसी उसकी पूजा पद्धति..हिंदू धर्म में ये नहीं माना जाता कि 1400 साल पहले कोई आसमानी किताब लिख दी गई तो उसका कहा अंतिम हो जाता है..कोई बाइबिल या कोई गुरु ग्रंथ साहिब लिख दी गई तो वही अंतिम सत्य है…जो जड़ हो जाता है वो सड़ जाता है..जो सड़न आजकल इस्लम में दिख रही है
2- अब आते हैं भगवद्गीता के श्लोक पर..जिस श्लोक को कुरान में लिखी गई खून-खराबे की बात को जस्टिफाई करने के यूज किया गया है..
अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि |
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि || ३३ ||
इस श्लोक का अर्थ है
“किन्तु यदि तुम युद्ध करने के स्वधर्म को सम्पन्न नहीं करते तो तुम्हें निश्चित रूप से अपने कर्तव्य की अपेक्षा करने का पाप लगेगा और तुम योद्धा के रूप में भी अपना यश खो दोगे”
अब इस जेहादी पत्रकार को ये नहीं पता कि यहां पर भगवान कृष्ण अपने उपदेश में अर्जुन को जिस धर्म का पालन करने को कह रहे हैं..वो क्षत्रिय धर्म है..ना कि हिंदू धर्म..पांडव किसी मुसलमान या ईसाई से नहीं लड़ रहे थे..वो अपने ही भाइयों (कौरवों) से लड़ रहे थे..जो अन्याय के प्रतीक है..इसलिए आर्टिकल में लिखी गई ये बात तो खारिज हो जाती है कि भगवद्गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन से धर्म (हिंदू) की रक्षा के लिए कह रहे थे..लड़ने वाले दोनों ही सानतनी धर्मी थे..क्षत्रिय थे..जिन लोगों को पता ना हो उन्हें बता दूं कि भगवद्गीता के उपदेश तब दिए गए थे जब कुरुक्षेत्र में अपने ही बंधु-बाधंवों, तातश्री (भीष्म पितामाह) और गुरु (द्रोणाचार्य) को देखकर अर्जुन लड़ने से इनकार कर रहे थे..तब अर्जुन को उसका धर्म याद दिलाने के लिए भगवान कृष्ण ने वो श्लोक कहा जिसका जिक्र कुरान की हिंसा को जस्टिफाई करने के लिए किया गया है..उस श्लोक का शाब्दिक अर्थ क्या है..ये मैं आपको ऊपर बता चुका हूं..लेकिन इसके बहुत गहरे अर्थ हैं
चूंकि मैं भगवद्गीता पढ़ता रहता हूं इसलिए इस श्लोक का पूरा अर्थ बताता हूं संदर्भ के साथ
अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि |
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि || ३३ ||
चूंकि मैं भगवद्गीता पढ़ता रहता हूं इसलिए इस श्लोक का पूरा अर्थ बताता हूं संदर्भ के साथ..भगवान कृष्ण कहते हैं
“अगर तुम अपने धर्म के बारे में भी सोच रहे हो पार्थ..तब भी तुम्हें युद्ध ही करना चाहिए..क्योंकि अधर्म और अन्याय के खिलाफ अस्त्र-शस्त्र उठाना ही एक क्षत्रिय का धर्म है..और आज अधर्म शस्त्र उठाए धर्म के विरुद्ध खड़ा है..इसलिए हे पार्थ क्षत्रिय धर्म का पालन करो..क्षत्रिय धर्म ही तुम्हारा धर्म है इसलिए उस धर्म का पालन करो..अधर्म के विरुद्ध शस्त्र उठाना ही क्षत्रिय धर्म है..अन्याय और अनीति के विरूद्ध शस्त्र उठाना ही क्षत्रिय धर्म है..और अगर इस निर्णायक घड़ी में तुमने सत्य के पक्ष में और असत्य के विरोध में शस्त्र नहीं उठाए तो तुम्हारे धर्म के साथ-साथ तुम्हारी उज्जवल कीर्ति भी नष्ट हो जाएगी..और अगर ऐसा हुआ तो केवल तुम्हारे विरोधी ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण समाज तुम्हें कलंकित और कापुरूष कहेंगी..आने वाली पीढ़िया तुम्हें कायर औऱ पापी मानेंगी..इसलिए पार्थ जीवन और मृत्यु..विजय और पराजय में उलझे बगैर शस्त्र उठाओ और युद्ध करो”
यानी भगवान कृष्ण यहां पर जिस धर्म की बात कर रहे हैं वो रिलीजन नहीं बल्कि ड्यूटी है..क्षत्रिय के कर्तव्य की बात कर रहे हैं..
मैं आमतौर पर जिहादी पत्रकार जैसे शब्द यूज नहीं करता लेकिन यहां पर लेखिका ने जिस कुटिल नीयत से भगवद्गीता के श्लोक के मनमाफिक व्याख्या की..कुरान में कही गई खून-खराबे की बात को जस्टिफाई करने की कोशिश की..उसी वजह से मैंने उसे जिहादी पत्रकार कहा..भगवद्गीता किस संदर्भ में कही गई..ये बात करीब-करीब हर भारतवासी जानता है..जो हिंदू नहीं है वो भी..फिर भी इसे गलत तरीके से पेश किया गया..क्योंकि जिहादी पत्रकार को जिहाद का बचाव करना था
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रुबिका लियकत के शो का वीडियो लिंक
https://youtu.be/F7eyWWemJ8A