इस देश को जितना ख़तरा विदेशी शत्रुओं , पकिस्तान और चीन जैसे देशों से रहा है उससे अधिक तो अपने देश के अंदर बैठे कुछ नकारात्मक ,अवसरवादी और स्वार्थी लोगों की राष्ट्रविरोधी सोच और उनके द्वारा लगातार रचे जा रहे षड्यंत्रों से भी है।
आज पंजाब के सिक्ख किसान , एक साथ संगठित और उग्र होकर , इस कोरोना काल के सबसे जरूरी नियम सामाजिक दूरी की पूरी धज्जियां उड़ाते हुए जिस तरह से दिल्ली को घेर कर हिंसक प्रदर्शन कर उपद्रव की कोशिश कर रहे हैं और उनके भेष धर धर के सारे वामी काँगी खालिस्तान समर्थक , दंगाई मानसिकता वाले मुग़ल एक बार फिर से राज्य , सरकार और देश को अस्थिर और अशांत करने की साजिश कर रहे हैं वो न सिर्फ अफसोसनाक है बल्कि बहुत खतरनाक भी है।
प्रदर्शन , विरोध , आलोचना सबका अधिकार है और इस देश में ये सालों से रहा भी है , एक समय आन्दोलनों में तख्तियाँ लेकर , और दीवारों सड़कों पर लिख कर विरोध दर्ज़ किया जाता था लेकिन अब जबकि विभिन्न साधनों से एक साधारण सा व्यक्ति भी सीधे प्रधानमंत्री तक से संवाद कर सकता है ऐसे में वे बातचीत तो दूर सड़कों पर अपनी ही पुलिस और फ़ौज के लिए लाठी पत्थर लिए खड़े हैं तो ये कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
इससे अलग एक जरूरी बात ये भी है कि आज पंजाब के हज़ारों सिक्ख उस कानून जिसे उनकी राज्य की कांग्रेस सरकार ने पहले ही न मानने और लागू किए जाने का फरमान जारी कर दिया है उसके विरोध में खड़े ये लोग तब कहाँ थे ?
***1984 : में जब इंदिरा गाँधी की ह्त्या के बाद सिक्खों का नरसंहार इसी कांग्रेस के नेताओं और उनके द्वारा उकसाई भीड़ ने किया था। आज तक इन दंगों के पीड़ितों और इनके दोषियों दोनों में से किसी को भी न्याय के दरवाज़े के चक्कर काटने से फुर्सत नहीं मिली है। सज्जन कुमार ,जगदीश टाइटलर , एच के एल भगत सरीखे बड़े नामों के विरूद्ध क्यों कभी नहीं ऐसे आंदोलन किए गए ?
***पाकिस्तानी सरकार द्वारा सिक्खों की प्रताड़ना के मामले के विरूद्ध कभी ऐसे जान आंदोलन का खड़ा होना तो दूर उलटा कभी नवजोत सिंह सिद्धू सरीखे खिलाड़ी राजनेता अपने मित्र इमरान खान से यारी निभाते नज़र आते हैं तो कभी ऐसे आंदोलन के बहाने खालिस्तानी समर्थक इमरान खान को अपना दोस्त और मोदी को अपना दुश्मन बता कर उनकी ह्त्या करने की धमकी देते हैं।
**पिछले दो दशकों से पंजाब के युवा जहां ड्रग्स के बढ़ते जाल में फंस कर अपनी जान संपत्ति सबको गँवा रहे हैं वहीँ पंजाब की युवतियों को NRI द्वारा विवाह करके विदेश ले जाने के बाद उनके साथ हो रहे दुर्व्यवहार के विरुद्ध ऐसा कोई व्यापक विरोध कभी देखने को नहीं मिला।
**चलिए ये सब न सही , मगर कृषि और किसानों से सीधे जुड़े मुद्दे -पंजाब के खेतों में रासयनिक उर्वरकों के बेतहाशा प्रयोग से पंजाब के एक बहुत बड़े क्षेत्र में जमीन के साथ लोगों के कैंसर ग्रस्त होने की लाइलाज बन चुकी बीमारी के विरुद्ध ही कभी इतना पुरज़ोर विरोध किया होता तो आज हालात उतने बदतर नहीं होते जितने होते हैं। ज्ञात हो की, पंजाब से कैंसर ग्रस्त किसानों के लिए प्रतिदिन चलाई जाने वाली रेल का नाम ही कैंसर ट्रेन रख दिया गया है।
इन सबको देख कर सिर्फ यही लगता है कि असल में ये न तो विरोध है , न ही ये किसी कानून के विरुद्ध किया जा रहा है और न ही इनमें शामिल लोगों को किसान कहा जा सकता है। आपको क्या लगता है ??
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