मकर संक्रान्ति भारत का एक प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है।

शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है।
जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है-

माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥

मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष १४ जनवरी को ही पड़ता है।

भारत के भिन्न-भिन्न राज्यों में यह पर्व अलग-अलग नामों से जाना जाता है ।

(१) राजस्थान, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, गोवा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, उड़ीसा, सिक्किम और पश्चिम बंगाल में “मकर संक्रांति” के नाम से।
(२) गुजरात और राजस्थान में “उत्तरायण” के नाम से।
(३) हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में “माघी” के नाम से।
(४) पंजाब में “लोहड़ी” के नाम से।
(५) तमिलनाडु में “पोंगल” के नाम से।
(६) असम घाटी में “भोगली बिहू या माघ बिहू” के नाम से।
(७) कश्मीर घाटी में “शिशिर संक्राट” के नाम से।
(८) केरल में “मकर विलक्कू” के नाम से।
(९) उत्तरप्रदेश बिहार में “खिचड़ी” के नाम से।

इस प्रकार से यह पर्व हमारे भारत के सभी राज्यों को जोड़ते हुए धूम-धाम से मनाया जाता है ।

और सिर्फ भारत में ही नहीं, यह भारत के अलावा अन्य कई विदेशी देशों में अलग अलग नामों से मनाया जाता है ।

जैसे कि –
(१) नेपाल में “माघ संक्रांति” के नाम से।
(२) थाईलैंड में “सोंगक्रान” के नाम से।
(३) लाओस में “पाई मा लाओ” के नाम से।
(४) म्यांमार “थिंग्यान” के नाम से।
(५) कंबोडिया “मोह सोंगक्रान” के नाम से ।

इस प्रकार यह पर्व “विश्वपटल” पर मनाया जाने वाला “सर्वोच्च” पर्व है।

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.