सनातन वैदिक ज्ञान की शिक्षा के अनुसार मनुष्य जीवन का उददेश्य है, चेतना के स्तर में वृद्धि करना और आत्मा का उदेश्य है, चेतना के उच्चतम स्तर को प्राप्त करना।
प्रत्येक मनुष्य में उपस्थित आत्मा कई जन्मों से चेतना के उच्चतम स्तर को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील है, जो कि कभी-कभी पथभ्रष्ट होकर अपने लक्ष्य से भटक जाती है, जिसके कारण मनुष्य एक निरूद्देश्य जीवन व्यतीत कर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, जैसा कि वर्तमान समय के अधिकांश मनुष्यों के साथ है। इस प्रकार की पथभ्रष्ट आत्मा ही विभिन्न निम्न योनियों में भटकती रहती है।
ऐसी आत्माऐं धीरे-धीरे अपनी चेतना में पुनः अभिवृद्धि करते हुए मनुष्य जीवन हेतु वांछित चेतना को प्राप्त करती हैं। मुनष्य जीवन में ही चेतना के स्तर को सर्वाधिक बढ़ाया जा सकता है एवं संत-महात्माओं के अनुसार दर्शित विभिन्न मार्गों पर अग्रसर होकर चेतना के उच्चतम स्तर को प्राप्त भी किया जा सकता है।
प्रायः यह देखा जाता है कि दो मनुष्यों की सोच कभी भी एक समान नहीं होती, क्योंकि वे दोनों चेतना के अलग-अलग स्तरों पर होते हैं। इसलिए कई बार सामने वाले के बार-बार समझाने पर कोई बात किसी को समझ नहीं आ पाती। अतः यह चेतना ही है जो प्रत्येक मनुष्य का वर्तमान एवं भविष्य तय करती है। यदि एक मनुष्य सांसारिक आडंबरों में फंस कर अपनी चेतना खो देता है तो फिर उसे जीवन निरर्थक लगने लगता है। दूसरी तरफ कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं जो अपना जीवन इसी सोच में व्यतीत कर देते हैं कि मेरे जीवन का उद्देश्य लौकिक सांसारिकता से हटकर क्या है ?
अतः चेतना ही व्यक्ति को जीवन के परमउद्देश्य की ओर ले जाकर अनंत चेतना में विलीन करा सकती, जिसे मोक्ष/परमानंद/परमशांति आदि नामों से पुकारा जाता है।

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