अब जबकि हिन्दुओं , सनातन , शिव , समाज , और क़ानून व्यवस्था तक को अपमानित करने वाले विवादित वेब धारावाहिक “ताँडव ” पर पूरे देश भर में दर्जन भर से भी अधिक मुक़दमे दर्ज़ कराए जा चुके हैं और अभिव्यक्ति के नाम पर लोगों में वैमन्सयता और द्वेष का विष बोने वाले घुटनों के बल बैठ कर माफी मांगने का वही पुराना प्रपंच करने में लग गए हैं तो ये स्पष्ट कर देना बहुत आवश्यक हो जाता है कि , माफी देना या किसी को भी क्षमा करना तभी न्यायोचित होता है जब कोई भूल हुई हो या किसी से अनजाने में कोई गलती हो गई हो।

किन्तु क़ानून में “mens rea ” यानी ईरादा ,मंशा ,उद्देश्य ही वो बुनियाद होती है जिसकी कसौटी पर किए गए कृत्य को कस कर परखा जाता है कि कारित किया जाता है वो बिना किसी उद्देश्य के , बिना किसी साजिश ,योजना और दुर्भावना के हो गया है तो भूल है गलती है और यदि जानबूझ कर देश को , पुलिस प्रशासन सरकार धर्म सबको अपमानित करने सबको दोषित साबित करने , मिथ्यारोपों और गढे गए झूठों के सहारे किसी विशेष एजेंडे को अन्जाम तक पहुँचाने के लिए किया गया है तो ये समाज सरकार ,शासन सबके विरूद्ध किया गया अपराध है।

अब दूसरी जरुरी बात , कोई भी अपराध यदि किसी से मजबूरीवश , किसी परिस्थितिवश , या फिर अनजाने में अज्ञानता में हो गया है तो एक पल के लिए क़ानून अपने विधिक पक्षों से झुक कर मानवीय सम्वेदनाओं के आधार पर देख सुन भी सकता है , मगर कोई रसूखदार , समाज को प्रभावित करने की क्षमता रखने वाला , समाज के अग्रणी वर्ग का ,जनप्रतिनिधि , कलाकार , शासक , खिलाडी ,अभिनेता आदि में से कोई भी यदि जान बूझकर किसी गंभीर अपराध को करता है तो कानून की नज़र में वो अधिक बड़ी सज़ा का हकदार होता है।

“तांडव ” -आदि देव महादेव की पवित्र नृत्यभंगिमा को अपने वाहियात , पूर्वाग्रह से ग्रस्त , अश्लील , हिंसक और तमाम बुरी बातों को जबरन एक कथानक का रूप देकर समाज के बीच आपसी घृणा , जातिवादी अलगाव , पुलिस शासन को दमनकारी और पक्षपाती दिखाने के लिए वेब धारावाहिक के नाम पर टीवी और मोबाइल में जो जहर सबके मन मस्तिष्क में बोया जा रहा है वो निसंदेह ही एक घृणित और गंभीर अपराध है। इसलिए इस टीम का सिर्फ ये भर कह देना कि इस अपराध को करने की इनकी कोई मंशा नहीं थी इसे ये खुद भी कभी साबित नहीं कर पाएंगे।

इस टीम के अली अब्बास ज़फर ने नागरिकता संसोधन क़ानून के विरोध की आड़ में दिल्ली और देश भर को दंगों के आग में झोंक देने वाले उमर खालिद और शरजील इमाम जैसे आरोपियों की रिहाई के लिए अलग से बड़ी मुहीम चला रखी है। सैफ अली खान इससे पहले भी सार्वजनिक स्थान पर मार पीट करने , शूटिंग के दौरान प्रतिबंधित पशु के शिकार आदि जैसे कई आपराधिक मामलों के गुनाहगार रहे हैं यानि इनमें से कोई भी अदालत की नज़र में खुद को मासूम ,निर्दोष और बिना उद्देश्य के किया गया अपराध नहीं साबित कर पाएगा।

“तांडव” और इन जैसे तमाम वेब धारावाहिकों को यदि भारत के मौजूदा कानूनों के उल्लंघन की धाराओं में बाँधा जाए तो एक एक पर सैकड़ों मुक़दमे दर्ज़ हो सकते हैं और इन सबको बार बार जेल की हवा खानी पड़ सकती है। स्टैंडअप में फूहड़ हास्य के नाम पर सनातन ,हिन्दू देवी देवताओं को निशाना बना कर उनका अपमान करने वालों को तो पिछले ही दिनों अपने अपराधों का दंड मिलना शुरू भी हो गया है।

दूसरी तरफ “ताँडव ” को अपमानित किए जाने के इस प्रयास का पुरज़ोर विरोध किए जाने से , सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और सम्बंधित विभाग/अधिकारियों का ध्यान OTT प्लेटफॉर्म्स पर किसी भी सरकारी नियंत्रण या सेंसरशिप के अभाव के कारण लगातार किए जा रहे ऐसे अपराध और एक सोचे समझे षड्यंत्र की ओर भी खींचा है और सूत्रों की माने तो सरकार इस दिशा में कानून निर्माण हेतु बनाए जाने वाले मसौदे पर काम शुरू कर चुकी है।

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