देश के इतिहास में कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री ज्योति बसु को सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाले व्यक्ति के तौर पर याद रखा जाता है मगर आज हम आपको एक दूसरी वजह भी बताते हैं जिस वजह को वामपंथी और कांग्रेसी दोनों मिलकर छिपा लेते हैं । दरअसल 1979 में ज्योति बसु के मुख्यमंत्री रहते हुए पश्चिम बंगाल में जलियांवाला बाग से भी बड़ा नरसंहार हुआ था जिसमें तकरीबन 3000 के करीब दलित हिंदू बंगाली शरणार्थी पुलिस की गोली का शिकार हुए थे । आजाद भारत में पुलिस की तरफ से किया गया अब तक का सबसे बड़ा नरसंहार है ।पश्चिम बंगाल की एक जगह है जहाँ गंगा की दो धाराएँ हुगली और पद्मा समंदर में जाकर मिलती हैं। यहीं है एक सुनसान सा दलदली द्वीप मरीचझापी। इसी जगह पर तत्कालीन ज्योति बसु की वामपंथी सरकार ने हजारों हिन्दू शरणार्थियों को सिर्फ इसीलिए मार दिया था क्योंकि उन्होंने भारत के विभाजन के खिलाफ मतदान किया था।

1979 में तत्कालीन ज्योति बसु सरकार की पुलिस व सीपीएम काडरों ने बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थियों के ऊपर जिस निर्ममता से गोलियाँ बरसाईं उसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं मिलती। जान बचाने के लिए दर्जनों लोग समुद्र में कूद गए थे। अब तक इस बात का कहीं कोई ठोस आँकड़ा नहीं मिलता कि उस मरीचझापी नरसंहार में कुल कितने लोगों की मौत हुई थी। प्रत्यक्षदर्शियों का अनुमान है कि इस दौरान 3000 से ज्यादा लोग मारे गए

बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) से बाद में आने कारण लोगों को नागरिकता नहीं दी जा रही थी। 1971 के युद्ध के दौरान एक करोड़ से अधिक हिन्दू शरणार्थी भारत आए जिनमें अधिकतर नाम शूद्र अर्थात दलित समुदाय से थे। उन्हें भारत सरकार ने कैम्पों में रखा और नागरिकता नहीं दी। पश्चिम बंगाल के दलदली सुंदरबन डेल्टा में मरीचझापी नामक द्वीप पर बांग्लादेश से भागे करीब 40,000 शरणार्थी एकत्रित हो चुके थे।

बांग्लादेश से आए शरणार्थियों में ज्यादातर बेहद गरीब परिवारों और दलित समुदाय से आते थे। गरीबों, दलितों, वंचितों और मजदूर वर्ग की पार्टी होने का दावा करने वाले वामपंथी दलों ने सत्ता में आने पर शरणार्थियों को नागरिकता देने का वादा किया।

1977 में सरकार आने के बाद वामपंथी दल ने इस बात को दोहराया भी। इसके बाद छत्तीसगढ़, दंडकारण्य, असम और अन्य क्षेत्रों में रहने वाले बांग्लादेशी हिंदुओं ने बंगाल की तरफ पलायन किया। लेकिन किसी तरह की सहायता ना होते देख उन्होंने सुनसान दलदली द्वीप मरीचझापी में अपना ठिकाना बनाया। इस द्वीप पर शरणार्थी दलित हिंदुओं ने अपना खुद का स्कूल खोला यहां उन्होंने खेती शुरू की और अपने इलाज के लिए छोटा अस्पताल भी बनाया मगर कम्युनिस्ट सरकार बंगाल विभाजन के खिलाफ उनके द्वारा किए गए मतदान से खासी नाराज थी और इसका बदला उन्होंने इस तरह निकाला… 40,000 लोगों पर हजारों पुलिसकर्मियों ने दिनदहाड़े ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं और इस नरसंहार में तकरीबन 3000 के करीब लोग मार दिए गए।

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