पिछले कुछ वर्षों में विपक्ष द्वारा प्रायोजित हिंसक विरोध प्रदर्शनों और दंगे फसाद के समय भी जिस तरह से पुलिस ,प्रशासन और सुरक्षा एजेन्डियों ने धैर्य का परिचय देते हुए , अपने ऊपर हुए प्राणघातक हमलों के बावजूद कोई प्रक्रियात्मक कार्यवाही न किए जाने को लेकर लोगों के मन में एक जिज्ञासा और हैरानी जरूर होती है।

यह सवाल इसलिए भी बार -बार उठाया जाता है क्यंकि इतने सब्र के साथ देश , समाज ,सेना के प्रति लगातार षड्यंत्र करने की नीति उस प्रशासक से अपेक्षित नहीं जिनकी छवि को 1992 के गुजरात प्रकरण के बाद हुई कट्टरता से अक्सर जोड़ा जाता है।

पिछले वर्ष भी सिर्फ अनुमान और आशंकाओं को आधार बनाकर देश के अलग अलग हिस्सों को दंगों की आग में झोंके जाने के बाद अब किसान आंदोलन के नाम पर गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय अवसर पर लालकिले की प्राचीर पर चढ़कर राष्ट्र ध्वज के साथ जिस तरह का व्यवहार किया गया , पुलिस और सुरक्षा बलों के सिपाहियों को निशाना बना कर उन्हें मारने का प्रयास किया गया।

इन सबके बावजूद भी दिल्ली पुलिस ने कोई हिंसक प्रतिक्रिया तो दूर ,उलटा दंगाइयों से ही अनुनय विनय करके अपनी जान व प्रतिष्ठा की रक्षा की। अब सवाल ये उठता है की आखिर पुलिस फ़ौज शासन सभी इनके प्रति नरम रवैया क्यों अपनाए रहे ??

असल में ये मोदी सरकार की संवाद से समाधान नीति के अनुकूल आचरण व व्यवहार था। सरकार भलीभाँति ये समझ रही है की कोरोना ामहामारी जैसे असाधारण समय और आपदा में जब विश्व के तमाम विकसित और सुविधा संपन्न राष्ट्र इस बिमारी से त्रस्त होकर निराश हताश ते , भारत-पकिस्तान जैसे एशियाई देशों में अनगिनत मौतों का अनुमान लगाया जा रहा था।

ऐसे में भी भारत हर मोर्चे पर खुद को प्रमाणित करता रहा। वैक्सीन निर्माण तक में भारत विश्व के अनेक देशों के सामने तारणहार बन कर खड़ा हुआ है। अब जबकि भारत विष गुरु के दायित्वबोध की ओर अग्रसर है तो फिर सरकार नीतियों कानूनों फैसलों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे इन लोगों पर दमनकारी शक्ति का प्रयोग सरकार को आखिरी विकल्प लगा।

दूसरी तरफ सरकार ये बात बहुत अच्छी तरह से समझ रही थी की इस तथाकथित आंदोलन का कोई उद्देश्य नहीं है कम से कम से किसान ,कृषि , देश समाज के हित से जुड़ा हुआ तो कतई नहीं। इसलिए बहुत जल्द ये खुद एक दूसरे पर आरोप लगाएंगे और निराशा में खुद अपनी ओछी असलियत दुनिया के सामने ले आएँगे। और वही सब कुछ हुआ।

माननीय न्यायायलय ने जब अपने निर्णय में दिल्ली पुलिस को विधि सम्मत कार्यवाही करने की बात कह रही थी तो फिर पुलिस प्रशासन का उस समय तक नरम रुख बरता जाना ही अपेक्षित था जब तक की इस ानोडलं-प्रदर्शन के बहाने राज्य व् सरकार के विरूद्ध अपराध कारित करके उन्हें विधिक कार्यवाहियों हेतु बाध्य नहीं कर दिया गया। अब एजेंसियाँ , कानून के दिशा निर्देशों के अनुरूप ही कार्यवाही कर रही हैं।

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.