अगर कोई मजहब लगातार कट्टरता का जुमला अपने समर्थकों को सिखाएगा तो मरने वाला भी और मारने वाला भी एक ही मजहब का कहलाएगा। अक्सर इस्लाम की कट्टरता के पंजे अपनी चादर से बाहर पैर फैलाते हैं और मानवता को लहूलुहान करने का काम करते हैं । अफगानिस्‍तान में जारी हिंसा के बीच तालिबान की क्रूरता का एक बहुत ही खौफनाक वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में नजर आ रहा है कि गोलियां खत्‍म होने के बाद अफगान कमांडो ने तालिबान के सामने आत्‍मसमर्पण कर दिया। इसके बाद आतंकियों ने ‘अल्‍लाह हू अकबर’ का नारा लगाते हुए उन पर गोलियों की बारिश कर दी। अफगान सेना के सभी निहत्‍थे 22 कमांडो इस निर्मम हत्‍या के शिकार हो गए।

सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक यह हत्‍याकांड अफगानिस्‍तान के फरयाब प्रांत के दौलताबाद इलाके में 16 जून को अंजाम दिया गया। तालिबान की बढ़त को देखते हुए सरकार ने अमेरिका के प्रशिक्षित कमांडो की टीम को भेजा था ताकि इलाके पर फिर से कब्‍जा किया जा सके। इसमें एक रिटायर जनरल का बेटा भी था। इस टीम को जब तालिबान ने घेर लिया तो उन्‍होंने हवाई सहायता मांगी लेकिन उन्‍हें यह नहीं मिली।


बड़ा सवाल उठता है कि आखिर किस हक से इस्लाम को ‘पीस ऑफ रिलीजन’ कहा जाता है आखिर देश के तमाम मौलाना और इस्लामिक देश इस हमले की निंदा क्यों नहीं करते हैं? आखिर यह कौन लोग हैं जो तालिबान को सामरिक मदद मुहैया कराते हैं, आखिर कौन लोग हैं जो इस तरह की निर्मम हत्याओं पर भी चुप रह जाते हैं।

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