अफगानिस्तान में जिस तरह से रॉयटर के फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी की गोली मारकर हत्या कर दी गई है उसी के बाद से तमाम लिबरल गैंग सोशल मीडिया पर शोर शराबा मचा रहा है। लिबरल गैंग के दोगलेपन का बड़ा उदाहरण ये है कि दानिश सिद्दीकी की हत्या पर मातम मना रहे हैं, किसने ट्वीट किया किसने नहीं किया इसका हिसाब लगा रहे हैं, रोहित सरदाना के फैंस को लानत भेज रहे हैं… मगर जिसने गोली मारी है, उसका नाम नहीं ले रहे हैं।


मरहूम फोटोग्राफर दानिश सिद्दीकी जिस सीएए-एनआरसी प्रोटेस्ट को कवर करते थे उसमें नारा लगता था कि ‘तेरा मेरा रिश्ता क्या ला इलाहा इलल्लाह’… अब उसी ला इलाहा इलल्लाह कहने वालों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी है ऐसे में अब कहा जाना चाहिए गोली मारने वालों से गोली खाने वालों का रिश्ता क्या ला इलाहा इलल्लाह..!


बड़ा सवाल उठता है कि आखिर यह लिबरल गैंग बंदूक की गोली को तो दोष दे रहा है मगर जिन हाथों ने गोली चलाई है उनका नाम लेने से क्यों डर रहा है। सीधे-सीधे तालिबान का नाम लेने में इन लोगों की जीभ क्यों हिचक रही है ? जाहिर है इस वाकये ने इन लोगों की मौका परस्ती और कट्टरता को बेनकाब कर दिया है… बात बात पर मोदी , बीजेपी ,आरएसएस, संघ ,फासिस्ट ,तानाशाह जैसे जुमले हवा में उछालने वाले इन लोगों की क्रांतिकारी जुबान को तालिबान का नाम लेने से कौन रोक रहा है , क्या अब शाहीन बाग के लोग नहीं कहेंगे—
मरने और मारने वाले का रिश्ता क्याला इलाहा इल्लिल्लाह

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