निमीअपनी शादी के एल्बम को देख रही थी। अचानक एक फोटो में उसकी नजर आकर थम गई। टकटकी बांधे अपनी ही दुल्हन बनी फोटो को देख रही थी। अचानक दौड़कर आयने के सामने खड़ी हो गई। 40साल उम्र वाली निमी खुद को आयने में देख रही थी,हाथ में थी 25साल वाली निमी की फोटो।कितना अंतर दोनों में ,जब आयना धुंधला दिखने लगा तब उसे अपनी आंखों में नमी महसूस हुई। शादी के15साल के वैवाहिक जीवन का हिसाब मिलाने की कोशिश करने लगी।बीते समय के हर एक सुख दुःख के पल उसकी स्मृतिपटल में चक्कर काट रहे थे। उच्च शिक्षा प्राप्त की थी मिनी ने। M.B.Aहोने के वाबजूद भी अपने दादी के दिए संस्कारों को कभी भूली नहीं थी।
संयुक्त परिवार में पली बड़ी,दादा – दादी ,तीन चाचा-चाची,सभी का एक ही आंगन में रहना।यूं तो मिनीका एक छोटा भाई बिनय है।पर मिनी अपने चाचा के बच्चों को कभी कजन नहीं समझी। मिनी बचपन से ही अपने पिता के बड़ा बेटा होने का फर्ज, परिवार को एक मजबूत सुत्र में बांधने के तौर तरीके से भलीभाँति अवगत थी।एक सुलझे भरे पूरे परिवार की लड़की होने का गर्व महसूस करती थी।
मिनी अपने परिवार की सबसे बड़ी औलाद थी।पापा- मम्मी के साथ पूरे परिवार की लाडली थी। मोबाइल के रिंग के बजने से मिनी अतीत के सपनों से जागी।
मिनी की सहेली सुजाता का फोन था,पुछ रही थी मन्दिर जाने के लिए।
मिनी ने हाँ कहा और तैयार हो मन्दिर के लिए निकल पड़ी।
मिनी से मेरी मुलाकात कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव पर मन्दिर में हुई थी। बहुत ही प्यारा भजन गा रही थी।भजन में एसी कसक थी जैसे लग रहा था वह गा नहीं रहीं है , अपनी दिल की बिरह कन्हैया को सुना रही है।
भजन संध्या के समाप्ति पश्चात् जब मन्दीर से बाहर निकली मैं भी उसके साथ चल पड़ी।
मैंने कहा आप बहुत मीठा गाती हो, कहां से सीखा ?
धीमी आवाज़ में बोली हालातों से।
मैं कुछ समझ नहीं पाई जिज्ञासु नजरों से उसे देख रही थी।
उसने कहा मैं रोज आती हुं अपने मनकी बातें भजन के द्वारा कान्हा जी को सुनाने। मिनी ने जाते हुए ओटो को आवाज लगाई और जल्दी से बोली चलो।
मैं ओर कुछ पूछती पर मौका ही नहीं मिला।
मैं अब हर दिन मन्दिर जाती और मिनी के भजन में खो जाती।भजन के बाद हम दोनों मन्दीर के बगीचे में लगी बेंच में बैठ थोड़ी बातें भी कर लेते।अब मिनी और मैं एक दुसरे से अपनी मन की बातों का भीआदान-प्रदान करने लगे।
आज मिनी मन्दीर के बाहर लगी बेंच में चुपचाप बैठी थी। मैं मिनी के पास जाकर बोली क्या बात है , आज भजन नहीं सुनाओगी ?
उदास स्वर में बोली
नहीं आंटी आज मन नहीं कर रहा
कोई बात है क्या ?
मिनी अपना समझ कर बोल सकती हो,बेटा दर्द बताने से मिटता नहीं पर थोड़ा हल्का हो जाता है। आंटी मेरी शादी एक पढ़ें लिखे बिजनेस मैन के साथ हुई है। मेरे पति बनारस में अपना कपड़े का व्यवसा करते हैं। मेरी शादी घर वालों ने ही तय की थी। मेरा ससुराल ओर मायका दोनों ही कोलकाता में है। शादी के बाद पति के साथ बनारस आना पड़ा। मेरे पति महेन्द्र अपनी दुकान चले जाते तब मैं अकेली हो जाती।महेंद्र के रजामंदी से मैंने एक कंपनी में एकाउंटेंट के काम पर 11amसे 4pm
जाना शुरू कर दिया था,
हम दोनों खुश थे।पर कभी कभी महेंद्र कुछ अजीब शक़ भरा प्रश्न पुछते हैं,मैं हैरान हो जाती यह कैसे सवाल है?
एक बार महेंद्र ने पूछा
तुम्हारे साथ लड़के भी
काम करते होंगे?
महेंद्र आफिस में लड़के-लड़कियाँ दोनो ही काम करते हैं,यह कैसी बात करते हो आप?
क्या आपके दुकान में औरतें साड़ी लेने नहीं आती?
इस तरह दोनों में थोड़ी बहस हो जाती।
इस बीच महेंद्र और मैं एक बेटी के माता-पिता बन गये।घर बाहर दोनों सम्भालना थोड़ा मुश्किल होने लगा।मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी।शादीके ५ साल बाद से ही मुझे यह शंका हो गई थी, महेंद्र दिमागी मरीज़ है। काफी बार मैंने सोचा सारी बातें मम्मी को बताऊँ पर पापा की तबीयत की वज़ह से चुप रही। आंटी अब तो पापा, दादा-दादी नहीं रहे। मैं अपनी बात बताकर मम्मी ओर घरवालों को परेशान करना नहीं चाहती थी।बर्दाश्त की भी सीमा है।अब महेंद्र अपनी 8 साल की बेटी को पुछता है, पापा आफिस जाने के बाद तेरी मम्मी कहाँ जाती है,घर में कौन आता है मम्मी से मिलने ?
अब तो आंटी हद हो गई।
मैं मायके जा रही हूँ। मैं अपनी बेटी को इस तरह के माहोल में अच्छी परवरिश नहीं दे पाऊंगी।
आंटी सात फेरो का पवित्र बंधन, विश्वास एवं प्यार से बना रिश्ता, अविश्वास के कठघरे में खड़ा है ।
देखो बेटा मैंने दुनिया देखी है।जल्दवाजी में कुछ गलत फैसला मत ले ना।
नहीं आंटी मैं 10साल से मानसिक , शारीरिक अत्याचार सह रही हूँ और नहीं।जिस रिश्ते की नींव इतनी खोखली हो उस रिश्ते को ज्यादा नहीं खिंचना ही सही है। अब तो हम दोनों में बोल चाल भी 7,8 महीनों से बन्द है। मैं पढ़ी लिखी हुं। इज्ज़त से जीऊंगी, अपने वैवाहिक जीवन को जिंदा रखने के लिए चरित्र पर दाग़ लगने नहीं
दूँगी। मैं शांत बैठी मिनी को जाते देख रही थी।
इस दौरानcovid 19 ने विश्व की शांति छीन ली।
मेरे पास न तो मिनी का पता तथा न ही नम्बर ।
मिनी की याद मेरे मन से निकल ही नहीं पाई मुझे अपनी बेवकुफी पर गुस्सा आता,मिनी से मोबाइल नंबर क्यों नहीं मांगी? आज ७ महिनों बाद मैं मन्दीर आई। पुजारी ने कहां मांजी आप इस उम्र में क्यो मंदिर आई? बाहर निकलना मना है। मैंने अपने मास्क की तरफ इशारा करते हुए समझाया पुरे इंतजाम के साथ आई हुं।
मिनी भजन गाती थी उसका नंबर है ?
ठाकुर जी की कृपा से पुजारी जी से नंबर मिला
हेलो मिनी, मैं मंदिर वाली आंटी बोल रही हुं
कैसी हो?
बस चल रहा है ।
क्या सोचा तुम लोगो ने?
मम्मी को मैंने बता दिया इतने घिनोने इल्ज़ाम के बाद मैं महेंद्र के साथ नहीं रहुंगी।
समाज के वरीष्ट लोगों को भी मेरे मायके वालों ने सारी बातें बताई, मुझे कुछ नहीं चाहिए आंटी बस महेंद्र से छुटकारा चाहिए।
शायद अभी भी सभी को पढ़ी लिखि अन्याय सहन करने वाली बहू चाहिए।
मिनी और भी कुछ बोल रही थी।
मुझे मिनी और महेंद्र दोनों के जीवन की वास्तविकता नहीं मालूम। कोन सही है? इस पहलू पर भी कोई वक्तव्य नहीं रख रही हुं। पर यह सोचने पर विवश हूँ एक शिक्षित ,समाज के प्रतिष्ठित संयुक्त परिवार में रहने वाली लड़की ने साथ नहीं रहने का फैसला किया है तो क्या बात हो सकती है❓
शादी के 15 साल बाद जिसके मायकेवाले अपनी बेटी के घर तोड़ने के निर्णय पर साथ दे रहे हैं इस बात को मैं नज़रंदाज़ नहीं कर पाई।
सोचने पर मजबूर हो गई।
मिनी जैसे कितनी लड़कियां होंगी जिसे पढ़ी लिखी हो कर भी समाज एवं परिवार का साथ नहीं मिलने से घुट-घुट कर जी रहीं हैं।

आज शिक्षित बेटा हो या बेटी दोनों ही बाहरी दुनिया से भलीभांति परिचित हैं।
जब एक लड़का उच्च शिक्षा प्राप्त लड़की का चयन करता हैं , उसे यह भी ज्ञात रहता है ,यह लड़की भी बाहर काम करने जाएगी, आफिस में काम के सिलसिले में पुरुषों से बातचीत भी करेगी। जिस लड़के को यह मंजूर नहीं उसे कतई हक़ नहीं है मिनी की तरह एक लड़की की जिंदगी से खेलने का।
बेटा हो या बेटी दोनों को ही किताबी ज्ञान के साथ
परिवार में बुजुर्गों की अहमियत, दाम्पत्य जीवन में विश्वास, धैर्य सहनशीलता का महत्व का ज्ञात होना भी आवश्यक है। पति-पत्नी के आपसी झगड़े तलाक तक पहुंच जाते हैं इसका असर सबसे ज्यादा उनके संतान पर पड़ता है। जब बच्चे को माता-पिता में से किसी एक के प्यार से वंचित रहना पड़ता है।
जीवन में कभी कभी हालातों के आगे हमें घुटना टेकना पड़ता है।

मेरे प्यारे पाठकों ,
मिनी ने मुझसे भारी स्वर से पूछा मैं क्या करूं?
एक प्रश्न मेरा आपलोग से है
क्या आज भी नारी हर इल्ज़ाम सहती रहे?
विकसित एवं शिक्षित होते हुए भी अपने को बदनाम होते देखते रहे?
हर युग में क्या नारी ही अग्नि परीक्षा देती रहे?
क्या हमें मिनी का साथ देना चाहिए ?
आप अपनी राय मिनी को comment में जरुर लिखे।

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