हाँ ,आपने बिलकुल ठीक पढ़ा है ,विश्व में सिर्फ एक और इकलौता धर्म -सनातन हिन्दू धर्म है | इनके अलावा ईसाई ,बौद्ध ,जैन ,सिक्ख ,मुस्लिम ,यहूदी ,पारसी आदि सभी पंथ हैं |

हां , ये हो सकता है की गैर सनातनियों को ये सुनकर थोड़ा सा आश्चर्य जरूर होगा -क्या दुनिया में सिर्फ एक ही इकलौता धर्म है -और वो है सनातन हिन्दू धर्म |

आइए पहले ये समझते हैं कि आखिर इन दोनों में फर्क क्या है ??

धर्म विशाल समुद्र है और उनके पंथ , समुद्र में समाने वाली नदियाँ।सरलता से समझा जाए तो सनातन ही सार है ,सनातन ही समुद्र है ,सनातन ही शाश्वत है | हर काल , भर भेद , हर युग ,हर बंधन से , हर व्याख्या से बहुत ऊपर |

थोडा सा विस्तार से समझते हैं | चिर शाश्वत सनातन धर्म के अलावा अन्य सभी पंथों/ सम्प्रदायों /मजहबों का जन्मदाता /प्रतिपादित करने वाला कोई न कोई व्यक्ति रहा है | वहीँ दूसरी तरफ इन सभी सम्प्रदायों /पंथों की कोई न कोई एक विशेष किताब , कुरआन , बाइबल , आदि हैं जिसका अनुसरण इनके अनुयायियों के लिए अनिवार्य किया गया है |

अब तुलनात्मक रूप से ज़रा हिन्दू धर्म को भी इन कसौटियों पर देखा जाए | सूर्य, चन्द्र ,धरती , नदियाँ ,पहाड़ , वन ,पशु ,पक्षी ,मत्थ-मंदिर , मूर्तियाँ , यानि प्रकृति का जड़ अथवा चेतन कोई कण ऐसा नहीं है जहां सनातन ईश्वर का निवास नहीं मानता समझता हो |

आदि अनादिकाल से व्याप्त शिव की पूजा से लेकर माँ संतोषी जो आधुनिक काल में संतोष और समृद्धि के दिवि के रूप में पूजी जाने लगी हैं , तक सैकड़ों हज़ारों ईष्ट देवी देवताओं तक को श्रद्धापूर्वक पूजने की परंपरा व जीवनशैली है सनातन |

आपने कभी गौर किया है कि एक हिन्दू ही वो है जो – चाहे मंदिर के सामने से गुजरे आ गुरूद्वारे के सामने से या फिर किसी मजार की बगल से अपने आप उसके दोनों हाथ ऊपर और मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है |

एक सनातन संस्कृति ही ऐसी है जो गंगा और गाय तक ओ अपनी जन्दायिनी माँ की तरह पूजता अहै | ये सनातनी हिन्दू के ही स्वाभाविक संस्कार हैं जो बात बात पर इस धरा को भी माथे से लगाकर भारत माता की जय का जयघोष कर देता है | दुर्लभ सोने चांदी जेवरात से सज्जित प्रभु के दर्शन और पूजा भी उसी भावना और प्रेम से करता है जितने आदर से वो किसी पीपल के वृक्ष ने नीचे बैठे शिव भोले भंडारी को |

शायद ये वाक्य आपको न्यूनतम शब्दों में समझ दे

पंथों ने आपसी प्रतिस्पर्धा में धर्म के मूल का ही विनाश कर दिया है और आज के अज्ञानी जीव पंथों को ही धर्म समझने की भूल कर बैठे है।धर्म ईश्वर द्वारा श्रृष्टि के आरंभ में दिया गया ज्ञान होता है जो कि वेद है।और पंथ मजहब संप्रदाय आदि मनुष्य द्वारा श्रृष्टि के बीच में चलाया गया होता है।

धर्म सार्वभौमिक सार्वाकालिक और सार्वजनिन होता है जबकि पंथ मजहब रिलीजन एक समुदाय के लिए ।धर्म मनुष्य को मनुष्य से जोड़ता है जबकि संप्रदाय पंथ मजहब मनुष्य को मनुष्य से अलग करता है।

हिन्दू धर्म समूह का मानना है कि सारे संसार में धर्म केवल एक ही है , शाश्वत सनातन धर्म। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से जो धर्म चला आ रहा है , उसी का नाम सनातन धर्म है। इसके अतिरिक्त सब पन्थ , मजहब , रिलीजन मात्र है। हिन्दुओं की धार्मिक पुस्तक वेद,अरण्यक,उपनिषद,श्रीमदभगवत गीता,रामायण,पुराण, महाभारत आदि हैं। वेद विशुद्ध अध्यात्मिक और वैज्ञानिक ग्रंथ हैं।

वेद पश्चिमी धर्म की परिभाषा तथा पंथ, संप्रदाय के विश्वास तथा दर्शन से परे शाश्वत सत्य ज्ञान सागर हैं। वेदों की रचना मानव को सत्य ज्ञान से परिचित कराने के लिए की गई है। वेद पंथ, संप्रदाय, मजहब, रिलीजन आदि का प्रतिनिधित्व न करके मानव के लिए हैं।

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