आज कल टीवी चैनलों पर रामायण पुनः प्रसारित हो रहा है और लोग अपने पूरे परिवार के साथ रामायण देख रहे है जिसमें बहुत सी बातें सीखने और अनुकरण करने योग्य है और कई ऐसे पहलू है जिनके बारे में जानना और बात करना बेहद जरूरी है।

आइये बात करते है कुछ ऐसे पहलुओं पर जिसको हमेशा से ही तथ्यों से दूर रखा गया या यूं कहें कि किसी को जानने नही दिया गया कि रामायण असली अर्थ क्या है रामायण के बारे में हमें जानना क्यों जरूरी है।

आजकल लोगों में नास्तिकता न जानें क्यों घर कर रही है और आपको जानकर ताज्जुब होगा की नास्तिकों में सबसे आगे हिंदू है वो हिन्दू जिनकी सँस्कृति संस्कारों का लोहा पूरा विश्व मानता है।

वही हिन्दू जिनके आराध्यय श्री राम , श्री कृष्णा जैसे देव और देवियां है आज उसी हिन्दू समाज के कुछ तथा कथित लोग समाज में नास्तिकता के बीज बोने के पुरज़ोर प्रयास कर रहें है।

यदि आप उन तथा कथित नास्तिकों से बात करें और उनको समझाने की कोशिष करें तो उनका जवाब आता है
“I don’t believe in bhagwan or God and all this” just don’t try to impose your believe to us or me.

ये उन नई पीढ़ी के अंग्रेज हिंदुओ की आवाज में है जो आज कल ज़्यादा ही मॉडर्न हो रहे है जो चर्च जाने को शान समझते है परंतु मंदिर जाना और पूजा पाठ करना उन्हें ढोंग से कम नहीं लगता।

पहले यह सोच लिया जाता था कि ये सब कुछ मॉडर्न लोग है शहरों वाली नई सोच है समय आने पर सब की सोच बदल जाएगी परंतु इनकी संख्या में थोड़ी सी वृद्धि पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों में भी होने लगी है।

अब कुछ तो लोग नास्तिकता की और अग्रसर हो ही रहे है और बची कुची कसर अन्य धर्म के प्रचारक पूरी कर देते है जिनका धंधा जोरों पर है धर्म परिवर्तन और हिन्दू धर्म को नीचा दिखाने का ।

हिंदुओ की संस्कृति को अगर सबसे ज्यादा क्षति कहीं से पहुँच रही है तो उसके जिम्मेदार स्वयं कुछ बुद्धिजीवी हिंदू ही है।

खैर हमारा सनातन धर्म बहुत प्रबल है बहुत सुदृढ और समृद्ध है, ईश्वर में आस्था रखने वाले असंख्य लोग है जो आज भी ईश्वर भक्ति में रमे हुए है ।

परन्तु एक बात है जो बार बार विचलित करती है कि यह नास्तिकता आयी कहां से ईश्वर को न मानने वाले लोग आए कहाँ से जबकि हम सबने यह देखा है कि हर युग में देव और दानव सभी ईश्वर भक्ति में लीन थे।
दानवों के बेशक कर्म उच्च नही थे बेशक वो दुराचारी थे परंतु भगवान से दूरी नही थी आस्था से कोई बैर नही था ।

रावण और उसके पुत्र दैत्य थे और देवताओं के दुश्मन भी परन्तु अपनी ईश्वर भक्ति का लोहा मनवा के ही उन्होंने वरदान पाये थे।
राक्षसों के कुल देवता और कुल देवी भी थी मतलब साफ है कि दानव हो या देव भगवान की आवश्यकता सभी को होती है ।

बाकी बुरे कर्मों का परिणाम आपके समक्ष है जो बोया जाएगा फल भी वैसा ही काटा जाएगा।

जब देव और दानव सब को भगवान की जरूरत थी फिर हम तो एक साधारण जीव है फिर इतना इतराना क्यों ?

कुछ तो ऐसा हुआ है जो खुल के सामने शायद नही आ पाया या फिर बहुत सी बातें है जिसे लोगों की पहुँच से दूर रखा गया जो आज हिंदुओ में मतभेद का कारण बना हुआ है।

गौर करने वाली बात
सिर्फ हिन्दू धर्म में ही क्यों एक दम से इतनी प्रथाएं या यूं कहें कि कुप्रथाएं आ गई ।
एक कारण तो साफ है मुगल सल्तनत और कुछ हद तक शायद अंग्रेजी हुकूमत जिसके कारण ये सब उतपन्न हुआ :-

सती प्रथा
घूंघट प्रथा
दहेज प्रथा
बाल विवाह

और भी अन्य कई सारी प्रथाएं सिर्फ हिंदुओ की भवनाओं के साथ खिलवाड़ करने और सनातन धर्म की छवि को धूमिल करने के लिए किया गया था ।

हमारा समाज आज कई भागों में बट चुका है जिसके मूल कारण बहुत सारे हो सकते है ।
परन्तु यह समय है फिर एक बार उसी राह पर वापस लौटने की जहाँ से हमारे पूर्वजों ने शुरुआत की थी समय है सब भेदभाव भूल के फिर से उस केवट को गले लगाने का जिसे आज कुछ लोग भरमा रहें है ।
हमारे सनातन धर्म ने कभी भेदभाव नही सिखाया फिर ये सब कुछ हुआ कैसे इतना परिवर्तन इतना मतभेद सिर्फ हिन्दुओ में ही कैसे और क्यों आया ?

कुछ प्रश्नों के उत्तर अभी भी ढूंढने बाकी है हर बार सिर्फ हिंदुओ की भवनाओं के साथ ही खिलवाड़ क्यों?

समय की मांग अभी यह है कि हम सब एकजुट होकर भारत को पुनः विश्व गुरु बनाने की राह पर अग्रसर हो और हमारी गरिमा की विजय पताका समस्त विश्व पर फहराए ।

सनातन धर्म अजर है अमर है जिसका कोई आदि नही है और न ही अंत है ।

हमारी संस्कृति और सभ्यताओं पर हमें गर्व है और धर्म की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है ।

धर्मो रक्षति रक्षितः

धर्म की जय हो
अधर्म का नाश हो

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