नमस्कार:
आज 6 दिसंबर है,1992 में आज ही के दिन रामभक्तों ने बाबरी ढांचा गिराकर #राममंदिर के निर्माण की आधारशिला रख दी थी। इस आंदोलन में वीरगति को प्राप्त हुए सभी कारसेवकों को नमन!
6 दिसंबर सन् 1992 जब पूरी दुनिया ने खुली आखों से इतिहास बनते देखा था,

एक धक्का और दो, बाबरी तोड़ दो…”, अयोध्या का आसमान चीरते ये नारे, हिन्दुत्व के माथे पर लगे इस कलंक को पर चोट करतीं कुदालों की ठक-ठक, सरकारी दफ़्तरों में चोंगे पर रखे हुए फोनों का लगातार घरघराना और ऊंचे स्वर में जय श्री राम के उद्घोष.

दरअसल घटनाओं के जिस लंबे सिलसिले की परिणति छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के रूप में हुई वह 1949 तक जाता है।

यह विवाद 23 दिसंबर 1949 को शुरू हुआ. सवेरे बाबरी मस्जिद का दरवाजा खुला तो उसके भीतर राम के बाल रूप यानी राम लला की मूर्ति रखी थी. एक पक्ष ने कहा कि रामलला प्रकट हुए हैं. दूसरे पक्ष का दावा था कि किसी ने रात में चुपचाप बाबरी मस्जिद में घुसकर यह मूर्ति वहां रख दी थी. अगले दिन मस्जिद में हजारों की भीड़ जमा हो गई. तनाव बढ़ने लगा.

जब जवाहरलाल नेहरू को इस विवाद का पता चला तो उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविन्द वल्लभ पंत को पत्र लिखकर यथास्थिति कायम करने का आदेश दिया. पंत हिंदूवादी सोच के नेता थे. वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर अपनी किताब ‘बियॉन्ड द लाइन्स’ में इसका जिक्र किया है. उनके मुताबिक नेहरू ने लिखा कि ‘पूरे उत्तर प्रदेश का माहौल बद से बदतर होता जा रहा है और यकीनन उत्तर प्रदेश अब अपना घर नहीं लगता. कोई भी साक्ष्य इस बात को प्रमाणित नहीं करता कि वहां कभी मंदिर था.’ पंत ने नेहरू के ख़त का जवाब नहीं दिया. उन्होंने मूर्तियां तो नहीं हटवाईं लेकिन, परिसर पर ताला जड़वा दिया.

इसके बाद तत्कालीन कांग्रेसी सरकार हिन्दू संगठनों का एकजुट होकर विरोध करने के कारण अप्रत्यक्ष रूप से लगातार अड़चनें पैदा करती रही और इसी कड़ी में जब 25 सितंबर 1990 को आडवाणी ने सोमनाथ से अपनी रथ यात्रा शुरू की तो इस पर भी कांग्रेस की धर्म-निरपेक्षता के मायने बदल गये और हिन्दुओं के प्रति कांग्रेस का उदासीन रवैया पूरे देश ने देखा। आगे बढ़ने के साथ सांप्रदायिक तनाव भी बढ़ता गया . आडवाणी के साथ विश्व हिंदू परिषद और अन्य हिंदू संगठनों के समर्थक चल रहे थे. शहर दर शहर राम मंदिर के निर्माण का आह्वान करते हुए नारे गूंजने लगे. रथ यात्रा बिहार पहुंचते ही मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने इसे रोक लिया. उधर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने कार सेवकों को अयोध्या में घुसते ही रोक लिया और वापस भेज दिया. पर, फिर भी कुछ कारसेवक विवादित स्थल तक पहुंच गए और तोड़ फोड़ शुरू कर दी. पुलिस ने उन पर बल प्रयोग किया. कई लोग मारे गए. देश भर में दंगे फैल गए. वीपी सिंह सरकार चुपचाप खड़ी तमाशा देखती रही और रथ यात्रा रक्त यात्रा में बदल गयी.

साल 1991 में केंद्र में नरसिम्हा राव के नेतृत्व कांग्रेस सरकार बनी. जानकारों की मानें तो भाजपा को अहसास था कि कांग्रेस मंदिर मुद्दे पर खुलकर विरोध में नहीं उतरेगी, सो उसके हौसले बढ़े हुए थे. उसी समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के हाथ से सत्ता निकलकर भाजपा के पास आ गई थी. कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने. उन्होंने 1991 में विवादित परिसर के आसपास की ज़मीन को राम मंदिर न्यास के हवाले कर दिया. यह वही ज़मीन है जिसका ज़िक्र ऊपर किया गया है. सरकार ने पर्यटन को बढ़ावा देने के बहाने 2.77 एकड़ ज़मीन अपने कब्ज़े में ली और राम मंदिर समर्थक दलों ने इस पर हलचल शुरू कर दी.

इस सब हलचल के दौरान विश्व हिंदू परिषद ने छह दिसंबर 1992 को विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण करने का ऐलान कर दिया. हज़ारों कार सेवक एक बार फिर अयोध्या की ओर चल पड़े. उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार होने की वजह से हिन्दू संगठनों के हौसले आसमान छू रहे थे. केंद्र ने कल्याण सिंह को दिल्ली तलब किया और ताकीद की कि इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट को हल करने दिया जाए. कहते हैं कि आत्मविश्वास के अतिरेक से लबरेज़ कल्याण सिंह ने प्रधानमंत्री से कहा कि इस मुद्दे का सिर्फ़ एक ही हल है- विवादित ढांचे को हिंदुओं के हवाले कर दिया जाए.

इसके बाद वो समय आया बाबरी मस्जिद विध्वंस कर हिन्दुत्व की पुनर्स्थापना के लिए उस आखिरी धक्के का जब कल्याण सिंह ने आदेश जारी कर दिया कि अयोध्या आने वाले कार सेवकों की ख़ातिरदारी सरकारी खर्च पर की जाए.’ उधर, गृह मंत्रालय ने 20,000 अर्धसैनिक बलों को अयोध्या भेज दिया. वे आए तो सही पर उन्होंने डेरा शहर से कुछ दूर डाला. यह दूरी एक घंटे की थी. दूसरी तरफ़, लगभग एक लाख कर सेवक अयोध्या आ टिके थे. इसके अलावा दिल्ली से अयोध्या रवाना होने से एक रात पहले आडवाणी ने प्रेस कांफ्रेस में कहा कि वे भी नहीं जानते कि छह दिसंबर को क्या होने वाला है. उनका कहना था, ‘मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि कार सेवा ज़रूर होगी.

मंदिर वहीं बनायेंगे’, ‘एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो’ के नारों से अयोध्या गूंजने लगी थी. अर्ध सैनिक बल अब भी शहर से एक घंटे की दूरी पर थे. उन्हें बुलाया ही नहीं गया. परिसर की रखवाली के लिए रैपिड एक्शन फोर्स के जवान तैनात थे. कार सेवकों का हुजूम परिसर की ओर बढ़ रहा था. भाजपा के नेता- लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, साध्वी ऋतम्भरा, उमा भारती, वीएचपी के अशोक सिंघल- सब परिसर के नज़दीक जमा थे.

तभी एक कारसेवक मस्जिद के गुम्बद पर चढ़ गया और उसकी देखा-देखी कई और भी. तभी हिन्दुत्व विरोधी तत्वों की सांसे रुक गयी थीं, जिस शहर ने विभाजन के वक़्त भी दंगा नहीं देखा था उस शहर का आसमान भी जय श्री राम के गगनभेदी नारों से गूंज रहा था. देखते-देखते अयोध्या के माथे पर लगे इस कलंक को मिटा दिया गया और साथ ही दफ़न हो गई तत्कालीन कांग्रेसी सरकार की झूठी धर्मनिरपेक्षता जिसकी आड़ लेकर वह हमारी संस्कृति और परंपराओं का पतन करके राजनीति करती आ रही थी।

जय जय श्री राम

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