प्रधानमंत्री मोदी ने कल मध्यप्रदेश के किसानों को संबोधित करते हुए बार-बार दुहराया कि न मंडी समाप्त होगी, न एमएसपी। क्यों प्रधानमंत्री की बातों पर विश्वास करना चाहिए?

?कृषि कानून 2020 से पहले मोदी सरकार ने किसानों के लिए क्या-क्या किया

  1. MSP को 1 ‘1/2 गुना किया ।
  2. MSP पर खरीद को बढ़वाया
  3. MSP खरीद के पैसे सीधे खाते में ट्रांसफर करवाये
  4. सॉइल हेल्थ कार्ड बनावाए
  5. किसान निधि योजना से 6-6 हजार रु डलवाये खाते में
  6. कृषि बीमा योजना लाये ।
  7. खेती की उर्वरा शक्ति बरकरार रखने के लिये नीम कोटिन यूरिया पर जोर दिया

इस बिल में ऐसा क्या है,
जो इसका विरोध हो रहा:-

और इस से पहले की सरकारों में बने कानून में ऐसा क्या था, जिसका विरोध भी नही हुआ और किसान की हालत भी खराब थी
MSP भी आधी थी।
MSP पर फसल भी कम खरीदी जाती थी।
किसानों की हालत बदतर थी फिर भी
कभी विरोध नहीं हुआ।

नए बिल में ऐसा क्या है,
तो आइए समझते हैं
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि से संबंधित तीनों बिलों को :-

?गुरुवार 17 सितंबर को लोकसभा में दो बिल

  1. कृषक उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020
  2. कृषक (सशक्‍तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 लोक सभा से पारित हुआ,
    जबकि एक
  3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक पहले ही लोकसभा से पारित हो चुका था।

?पहला बिल

कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश (Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Act, 2020)

?कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020, राज्य सरकारों को मंडियों के बाहर की गई कृषि उपज की बिक्री और खरीद पर टैक्स
(बाजार शुल्क =3%
ग्रामीण विकास शुल्क =3%
आढ़तिया विकास शुल्क =2.5%)

लगाने से रोकता है। यह टैक्स बिचौलियों/एजेंटों के पास जाता है और किसानों को लाभकारी मूल्य पर अपनी उपज बेचने की स्वतंत्रता देता है।

?इस बदलाव के जरिए किसानों और व्यापारियों को किसानों की उपज की बिक्री और खरीद से संबंधित आजादी मिलेगी, जिससे अच्छा माहौल पैदा होगा और दाम भी बेहतर मिलेंगे।

? इस अध्यादेश से किसान अपनी उपज देश में कहीं भी, किसी भी व्यक्ति या संस्था को बेच सकते हैं।

? इस अध्यादेश में कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और खरीदने की व्यवस्था निर्मित करना है। इसके जरिये सरकार एक देश, एक बाजार की नीति पर आगे बढ़ रही है।

?विरोध का मुख्य कारण :-

अगर किसान मंडी के बाहर फसल बेचता है तो
एजेंटों का कमीशन नही बनेगा।

और अगर किसान के गृह राज्य में फसल या सब्जियों के दाम अच्छे नही मिल रहे हैं तो वह देश के किसी भी राज्य में अपनी फसल बेच सकता है
बिना रोक-टोक के ।

?इसलिये दलालों/एजेंटों द्वारा भ्रम फैलाया गया कि सरकार कानून लाकर मंडी व्यवस्था खत्म करना चाहती है।
जबकि ऐसा कुछ नही है इस बिल में।
व्यवस्था वही है सिर्फ किसानों के लिये मंडी के अलावा और भी विकल्प खोले गए हैं।

?(2) आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन :-

पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और कालाबाज़ारी करते थे, उसको रोकने के लिए Essential Commodity Act 1955 बनाया गया था
जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गयी थी।

?अब नये विधेयक आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटा दिया गया है।

? इन वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपदा या अकाल जैसी विशेष परिस्थितियों के अलावा स्टॉक की सीमा नहीं लगेगी। इस पर सरकार का मानना है कि अब देश में कृषि उत्पादों को लक्ष्य से कहीं ज्यादा उत्पादित किया जा रहा है।

किसानों को कोल्ड स्टोरेज, गोदामों, खाद्य प्रसंस्करण और निवेश की कमी के कारण बेहतर मूल्य नहीं मिल पाता है।

?(3) मूल्य आश्वासन पर किसान (संरक्षण एवं सशक्तिकरण) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश

यह कदम फसल की बुवाई से पहले किसान को अपनी फसल को तय मानकों और तय कीमत के अनुसार बेचने का अनुबंध (एग्रीमेंट) करने की सुविधा प्रदान करता है।

? इस अध्यादेश में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की बात है। इससे किसान का जोखिम कम होगा। दूसरे, खरीदार ढूंढ़ने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ेगा। सरकार का तर्क है कि यह अध्यादेश किसानों को शोषण के भय के बिना समानता के आधार पर बड़े एवं खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने में सक्षम बनाएगा।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कहते हैं कि इससे बाजार की अनिश्चितता का जोखिम किसानों पर नहीं रहेगा और किसानों की आय में सुधार होगा।

आइए समझते हैं
कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग क्या है?

हमने हर दो महीने में किसानों की फसल खराब होने या मंडी में अच्छे दाम नही मिलने की स्थिति में सड़क पर टमाटर या अन्य सब्जियों को फेंकते देखा होगा।
यह क्यों और किसलिए होता है? टमाटर के उदाहरण से समझते हैं। किसान मेहनत कर टमाटर की खेती करता है। जब वे टमाटर पक कर मंडी तक आते हैं तो कई बार ज्यादा उत्पादन के कारण मंडी में दलाल टमाटर की बोली 2-5 रु किलो लगाते हैं, जो किसानों को मंजूर नही होती। और कुछ सब्जियाँ ऐसी होती हैं, जिन्हें कोल्ड स्टोरेज की कमी की वजह से किसानों को मजबूरन बेचना पड़ता है।
इसलिए किसान ऐसी फसलों को औने-पौने दाम में बेचने को मजबूर होता है या गुस्से में सड़क पर फेंक कर अपने गुस्से का इजहार करता है।

मगर कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग किसानों को नया विकल्प देगा। जैसे
टमाटर की आवश्यकता ‘टमाटो सॉस’ या चिप्स बनाने वाली कंपनियों को आलू की पड़ती है।

कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग में किसान सीधे टमाटो सॉस ओर चिप्स कंपनियों से करार कर लेगा और अपने खर्च का हिसाब-किताब लगा कर कॉन्ट्रेक्ट में भाव तय कर लेगा। जो फसल के बाद उसे मिलने हैं,
इससे किसान दलालों/एजेंटों से बच कर या फसल की औने-पौने दामो पे बेचने , फसल के नुकसान के भय इत्यादि से वह बच सकता है।
कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग में कंपनियाँ किसानों को उन्नत तकनीक से खेती करने का सहारा देती हैं, क्योंकि कंपनी को भी बेहतर फसल चाहिए।

?अन्य बातें :-

  1. इस अध्यादेश की धारा 4 में कहा गया है कि किसान को पैसा तीन कार्य दिवस में दिया जाएगा
  2. किसान तथा व्यापारी के बीच किसी स्थिति में विवाद हुआ तो:- ?

“विवाद सुलझाने के लिए 30 दिन के अंदर समझौता मंडल में जाना होगा। वहाँ न सुलझा तो धारा 13 के अनुसार एसडीएम के यहाँ मुकदमा करना होगा।
एसडीएम के आदेश की अपील जिला अधिकारी के यहाँ होगी । और अब सरकार इसे सिविल कोर्ट में भी ले जाने का प्रावधान करने को तैयार है।

? विरोध सिर्फ सबसे ज्यादा पंजाब में ही क्यों हो रहा है क्योंकि देश में सबसे ज्यादा आढ़तियो की संख्या 28000 (एजेंट)पंजाब में हैं
अगर किसान मंडियों से बाहर फसल बेचता है तो सबसे ज्यादा नुकसान इन एजेंटो को कमिशन का होगा। और पंजाब में ये एजेंट ताक़तवर हैं और इन पर दो राजनीतिक घरानों का कब्ज़ा है।

ओर सबसे ज्यादा भ्रम इस बात का फैलाया जा रहा है कि सरकार
MSP ओर APMC(मंडी व्यवस्था) खत्म कर रही है।
ये दोनों ही बातें झूठ हैं, क्योंकि सरकार भी किसानों को आश्वस्त कर चुकी है, प्रधानमंत्री भी इसे बार-बार दुहरा चुके हैं और इस बिल में MSP ओर APMC को खत्म करने का कहीं जिक्र तक नहीं है ।

अब किसानों को सोचना चाहिए कि इस बिल के बाद भी
उनके पास खरीद मूल्य MSP ओर मंडी में बेचने की व्यवस्था तो पहले जैसी ही रहेगी। मगर इन बिलों से उन्हें अपनी आय बढ़ाने के लिये नए विकल्प भी मिलने वाले हैं।

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