किसान पिज़्ज़ा बिलकुल खा सकते हैं मगर उस आंदोलन में नहीं, जो आंदोलन बेसिक ज़रूरतों को पूरा करने के नाम पर हो रहा है!
क्या मैं शराब पी सकता हूँ और क्या मैं गाड़ी चलते हुए शराब पी सकता हूँ ? दोनों सवालों के अलग जवाब होंगे !!!
क्या मैं शराब पी सकता हूँ और क्या मैं गाड़ी चलते हुए शराब पी सकता हूँ ? दोनों सवालों के अलग जवाब होंगे !!!
हाय , तो अब क्या किसान पिज़्ज़ा भी नहीं खा सकता ?
किसी भी सभ्य समाज में इस सवाल का जवाब “ना” नहीं हो सकता । किसान हो या कोई और , बिलकुल पिज़्ज़ा या कोई और खाद्य पदार्थ खा सकता है और कोई उसे रोक नहीं सकता ।
सवाल पिज़्ज़ा या बर्गर या सरसों के सास और मक्के की रोटी का नहीं है । सवाल situation या परिस्थिति का होता है ।
मसलन क्या मैं शराब नहीं पी सकता ? क्यूँ नहीं पी सकता अगर किड्नी सुरक्षित हैं और अगर मैं ख़रीद सकता हूँ तो बिलकुल पी सकता हूँ । पर परिस्थिति अलग अलग हो सकती है और उसके हिसाब से इस सवाल का जवाब । अब जैसे , क्या मैं कार चलाते हुए शराब पी सकता हूँ ? सवाल में परिस्थिति जुड़ते ही आप इस सवाल के जवाब को बदल देंगे । गाड़ी चलाते समय शराब की मनाही है । ये नियम भी है और हद से ज़्यादा ख़तरनाक ।
पर ये तो नियम क़ानून की बात हो गयी । एक फ़िल्म आयी थी : A Wednesday । उसमें अपने दोनों जाँबाज़ अफ़सरों को बंदूक़ देकर अनुपम खेर कामयाब होने की प्रार्थना करते हैं और बोलते हैं कि शाम को आना और We Will have drinks together !! जब चार आतंकियों को लेकर ऑफ़िसर जा रहे होते हैं तब वो गाड़ी नहीं चला रहे होते , तो वो क्या वहाँ शराब नहीं पी सकते ? टेक्निक्ली पी सकते हैं पर लाजिक्ली नहीं क्यूँकि उद्देश्य दूसरा है ।
शराब तो बहुत वाहियात सी बात हो गयी , क्या वो अफसर खाना नहीं खा सकते जो आतंकियों को ले जा रहे हैं या मैं गाड़ी चलाते हुए बर्गर नहीं खा सकता ? इसका जवाब है हाँ खा सकते हैं क्यूंकि खाना बेसिक ज़रुरत है । पर जो भी वो खाएँ वो उनके उद्देश्य के आड़े नहीं आना चाहिए । अब आप आतंकियों को ले जाते या कार चलते ५६ भोग तो नहीं ही खाएंगे ? और अगर खाएंगे तो सवाल आपसे उन ऑफिसर्स या मुझसे भी पूछा जायेगा जो भी सरोकार रखता होगा।
ठीक वही कहानी पिज़्ज़ा और किसान को लेकर है। किसान पिज़्ज़ा बिलकुल खा सकते हैं बशर्ते उसे उनके उस आंदोलन का हिस्सा ना बता दिया जाए जो आंदोलन बेसिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हो रहा है । जैसे शाहीन बाग जाने वाले कुछ नमूने ट्विटर पर बिरयानी का टेस्ट बताते थे । पिज़्ज़ा, बिरयानी , जिम , प्रोटीन शेक : ये सब हिंदुस्तान में आज भी luxury हैं और हर कोई इन्हें afford नहीं कर सकता । इस तरीक़े की बिरयानी और पिज़्ज़ा से दिक़्क़त आएगी और वो भी तब जब आप बाक़ी लोगों का रास्ता रोके बैठे हैं और आम इंसान अपनी दिन की मिनमम ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पा रहा है ।
सवाल बस इस बात का ही है की जब प्रदर्शन अपने सर्वाइवल के लिए है तो ये लक्ज़री कैसे और कहाँ से आ रही हैं ? क्या इनको उपलब्ध करने वालों के अपने निहित स्वार्थ तो नहीं हैं ?
बाक़ी अगर प्रदर्शन करता हुआ या ना करता हुआ कोई भी ज़रूरतमंद दिखे तो उसे रोटी ज़रूर पूछ लें । भूख में तो चने भी मखाने लगते हैं तो रोटी तो बहुत बढ़कर ही लगेगी !! और मुझे नहीं लगता की इस देश का कोई भी सभ्य आदमी किसी किसान और उसके किसी भी खाने के बीच भी आएगा !!!
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