इजरायल और फिलिस्तीन के बीच झड़प की खबरें आ रही है तो ऐसे में भारत में बैठे तमाम लिबरल बुद्धिजीवी फलस्तीन के पक्ष में आवाजें उठा रहे हैं। पिछले 2 दिनों से पुलिसकर्मियों और इजरायल सुरक्षाकर्मियों के बीच अल अक्सा मस्जिद परिसर में झड़प हुई है जिसमें लगभग 200 फलस्तीनी और तीस इजरायल पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। फलस्तीन और इजरायल के बीच चल रही इन झड़पों के चलते भारत में बैठे तमाम लिबरल नक्सली वामपंथी बुद्धिजीवियों के पेट में मरोड़े उठनी शुरू हो गई और उन्होंने सोशल मीडिया पर फलस्तीन के पक्ष में आवाजें उठानी शुरू कर दी।
हैरानी की बात यह है कि शनिवार के दिन काबुल में एक जबरदस्त बम विस्फोट हुआ जिसमें तकरीबन 80 लोगों की मौत हुई इनमें से ज्यादातर स्कूल की लड़कियां थीं जिनके बम विस्फोट में परखच्चे उड़ गए। लड़कियों के शव भी उनके मां-बाप को नहीं मिल सके और मां-बाप ने कॉपी पेन और बस्ता देखकर अपने बच्चों की पहचान की। पूरी दुनिया ने इस हमले में स्कूली लड़कियों के मारे जाने पर निंदा की मगर भारत में बैठे हुए इन वामपंथी लिबरल बुद्धिजीवियों के मुंह से अफगानिस्तान बम विस्फोट की आलोचना में दो शब्द नहीं निकले।
अब आप समझिए की दो घटनाएं होती हैं फिलिस्तीन और इजराइल के बीच झड़प जिसमें चंद लोग घायल होते हैं और उसे लेकर सोशल मीडिया पर ऐसा हौव्वा बनाया जाता है कि मानो इजराइल इस संसार को तबाह कर रहा है और लोकतंत्र की हत्या कर रहा है , तो वहीं दूसरी तरफ अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में जबरदस्त बम विस्फोट में 80 के करीब लोग मारे जाते हैं जिनमें ज्यादातर स्कूल की लड़कियां हैं लेकिन दोगलेपन के जहर से पीड़ित नक्सली वामपंथी लिबरल बुद्धिजीवियों के मुंह से कट्टरपंथी सुन्नी संगठन की आलोचना में शब्द नहीं निकले, इससे इनका दोगलापन जाहिर होता है।
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