महमूद ग़ज़नवी को किस तरह दी थी महादेव ने सजा…क्या आपको पता है? जी हां, सोमनाथ मंदिर तोड़ने वाले लुटेरे को उसके दुष्कर्म की सजा महादेव ने दी थी। महमूद ग़ज़नवी मध्य अफ़ग़ानिस्तान में केन्द्रित गज़नवी वंश का एक महत्वपूर्ण शासक था जो पूर्वी ईरान भूमि में साम्राज्य विस्तार के लिए जाना जाता है।

महमूद बचपन से भारतवर्ष की अपार समृद्धि और धन-दौलत के विषय में सुनता रहा था। महमूद भारत की दौलत को लूटकर मालामाल होने के स्वप्न देखा करता था। उसने 17 बार भारत पर आक्रमण किया और यहां की अपार सम्पत्ति को वह लूट कर ग़ज़नी ले गया था। आक्रमणों का यह सिलसिला 1001 ई. से आरंभ हुआ।महमूद इतना विध्वंसकारी शासक था कि लोग उसे मूर्तिभंजक कहने लगे थे।

महमूद का सबसे बड़ा आक्रमण 1026 ई. में काठियावाड़ के सोमनाथ मंदिर पर था। देश की पश्चिमी सीमा पर प्राचीन कुशस्थली और वर्तमान सौराष्ट्र (गुजरात) के काठियावाड़ में सागर तट पर सोमनाथ महादेव का प्राचीन मंदिर है। स्कंद पुराण में इसका उल्लेख मिलता है। चालुक्य वंश का भीम प्रथम उस समय काठियावाड़ का शासक था। महमूद के आक्रमण की सूचना मिलते ही वह भाग खड़ा हुआ।विध्वंसकारी महमूद ने सोमनाथ मंदिर का शिवलिंग तोड़ डाला। मंदिर को ध्वस्त किया। हज़ारों पुजारी मौत के घाट उतार दिए और वह मंदिर का सोना और भारी ख़ज़ाना लूटकर ले गया। अकेले सोमनाथ से उसे अब तक की सभी लूटों से अधिक धन मिला था। उसका अंतिम आक्रमण 1027 ई. में हुआ। उसने पंजाब को अपने राज्य में मिला लिया था और लाहौर का नाम बदलकर महमूदपुर कर दिया था। महमूद के इन आक्रमणों से भारत के राजवंश दुर्बल हो गए और बाद के वर्षों में मुस्लिम आक्रमणों के लिए यहां का द्वार खुल गया।

महमूद ने बेशक अपनी तलवार के बल पर मासूम पुजारियों की हत्या की, उन्हें कत्ल किया, शिवलिंग पर प्रहार किया….मगर शांत शाश्वत शिव ने अपने तरीके से महमूद को उसकी करनी की सजा दी। कहा जाता है कि 1027 में सोमनाथ पर आक्रमण करने के पश्चात ही महमूद को असाध्य बीमारियों ने घेर लिया था और महमूद को रात में सोते वक्त कत्ल किए गए पुजारी सपने में दिखते थे। अपनी करनी का दंड पाते हुए अपने अंतिम काल में महमूद गज़नवी असाध्य रोगों से पीड़ित होकर असहनीय कष्ट पाता रहा था। महमूद से सम्बंधित दस्तावेजों के मुताबिक महमूद को सपने में कई बार सोमनाथ मंदिर दिखता था और सपने में कत्ल किए गए पुजारी उसे दिखते थे। अपने दुष्कर्मों को याद कर उसे घोर मानसिक क्लेश था। वह शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से ग्रसित था। आखिरकार उसकी मृत्यु सन 1030, अप्रैल 30 ग़ज़नी में हुई।

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