ये किसी भी छोटे परिवार से लेकर बड़े समाज और फिर अब तो देश विदेश तक में होने लगा है इस दुनिया में कुछ लोग अपनी जाया के पेट से ही किम जोंग बन कर निकलते हैं , दुनिया की ऐसी कोई बात , कोई घटना , कोई नई पुरानी योजना , मतलब और बेमतलब भी , समय और असमय भी सिर्फ और सिर्फ प्रतिकूल और नकारात्मक खाँचे में फिट होकर हमेशा ही उलटी बातें कहेंगे। अंदाजे अनुमान भी लगाएंगे तो वही 2012 में क़यामत आ जाएगी , दुनिया हवा हो जाएगी , अरे चाहते तो जमाने से हैं कुछ ताकतें और विचार कि सब कुछ ख़त्म हो जाए , मगर होता नहीं है न।

इधर देश में पिछले छ बरस से तो देश और दुनिया को भारत और भारतीयों के ताकत का उनके एक हो जाने पर परमाणु शक्ति जैसी ताकत सरीखा हो जाने को अब तो दुनिया ने जाकर पहचाना है जब उसकी छाती पर बैठ कर बोलना पड़ा कि शरीफ हैं बुजदिल कायर न कभी थे और कितने ही और युग बीत जाएंगे , ये धरती ही दुनिया में अपनी तरह की अकेली है। जहां दुनिया के हर धर्म ने अपनी जड़ों को तलाशा और सत्य सनातन ने देवताओं तक को यहां जन्म लेने योग्य भूमि लगी तो फिर उस हिन्दुस्तान की तो असल में हर बात निराली है दुनिया से।

पिछले कुछ समय से जबसे प्रचंड बहुमत से एक नहीं बल्कि दो दो बार और ,अगले कई बार तक के लिए देश और दुनिया को बहुत अच्छी तरह से बता दिया की अब इस देश में सिर्फ वो होगा जो हिन्दुस्तान में होना चाहिए , देश पहले बाकी सब बाद में। लोगों ने त्यागियों और सन्यासियों के हाथ में शासन की बागडोर थमा दी। क्रान्ति की ज्वाला को अब एक वेग मिल गया था। सरकार ने फैसले लेने शुरू किए।

इधर फैसले लिए गए उधर इसके ठीक तुरंत बाद बरनोल से लेकर हाजमोला तक की खपत बहुत भारी हो गई , स्वाभाविक ही था , आसान थोड़ी होता है पूरे पचास साल तक दुनिया की सबसे तेज़ , परिश्रमी और प्रखर आबादी को सिर्फ सिर्फ राशन कार्ड के बहाने गरीबी की क़िस्त बांटते रहना। दिक्क्त असल में फैसलों और कानूनों से नहीं है दिक्कत ये है कि ये सरकार इतनी जिद्दी और अड़ियल है कि उन कानूनों को शब्दशः पालन भी करवाएगी। और यहीं से सबकी केंचुली उतरनी शुरू हो जाती है।

सबको सुशासन चाहिए , बेईमानी ख़त्म हो जाए , घपले घोटाले ख़त्म , पाकिस्तान बांग्लादेश से हर साल कुछ सूअर उठ कर देश के किसी भी कोने में बम बारूद लिए आ घुसते थे , पिछले छह साल में किसी नागरिक का बाल भी बांका हुआ , फ़ौज ने पड़ोसियों के घर में घुस घुस कर वो मार लगाई है की पाक के खच्चर और चीन के कुत्तों , दोनों को उनके अब्बू अम्मी की याद दिला दी है। मगर नोटबंदी करके बड़े नोट खत्म क्यों किये , शौचालय से लेकर सड़क तक लगातार निर्माण कार्य क्यों जारी है , कहीं 60 सालों में बल्ब जल रहा है तो कहीं नलके से पानी।

मगर इस देश में फ़ूफ़ाओं और नखरैल जीजाओं के बारात में , और घर परिवार के हर नए काम में मुंह फुला कर स्यापा करने वाली एक पूरी कैटेगरी हासिल है , और ये सब वे हैं जो हमारे धरना अंकल सड़ सी एम् जी दिल्ली वाले के अचूक फार्मूले और उसका डेडली रिज्लट देखते हुए बार बार उसी का प्रयोग करने में लगे हैं। शाहीन बाग़ से लेकर सिंधु बॉर्डर तक जो एक बात बदकिस्मती से सामने आई की -आपकी नीयत साफ़ सरल और स्पष्ट नहीं थी /है -होती जो इस देश की जनता अब हर छोटी बड़ी बात पर प्रतिक्रिया देना सीख गई है इस पर भी स्पष्टतया दे रही है।

स्पॉन्सर्ड इंवेंट चाहे सड़क पर हों या किसी पांच सितारा होटल में , आम लोगों के सामने जब उसके बिहाइंड द सीन्स आते हैं तो फिर इन सबमे अपने चेहरे और डॉयलॉग चमकाने की गरज़ से शामिल हुए शब्द वीरों को फिर अपनी कही गई बात अपने माथे पर त्रिशंकु की तरह लिए फिरते रहना पड़ता है। क़ानून से दिक्कत है -तो कानूनी रास्ते से उस दिक्कत का समाधान निकलेगा। बस इतनी सी सरल सी बात है।

तो ये जो जलेबी टेढ़ी बहुत है और रसगुल्ले मीठे ज़रा ज्यादा हो गए हैं जैसी हाहाकारी मांगों की ठेली या तो बहुत जल्दी ही समेट ली जानी चाहिए या नहीं तो फिर उसे पक्का करके सीधा शासन को चुनौती देनी चाहिए।

सड़कें चलने के लिए होती हैं उन्हें रोकना और रोक कर ,आंदोलन भी फिर कहाँ चल सकता है -ठहराव कभी भी जीवन और विकास के लिए अनुकूल नहीं होता। सड़कों से उठ कर अपने अपने खेतों , मेड़ों ,मैदानों और गाँव कस्बों से सरकार के पास अपने विरोध को भेजिए , देखिये परिणाम ज्यादा सकारात्मक होंगे। पारदर्शी हों आप दोनों समाज के सामने ,बस

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