केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने दिल्ली में वामपंथियों के चहेते इतिहासकार इरफान हबीब के कारनामों का खुलासा करते हुए जमकर लताड़ लगायी है. दरअसल 2019 में कन्नूर विश्वविद्यालय की एक घटना को लेकर राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने मंगलवार को हबीब पर बरसते हुए उन्होंने हबीब को ‘गली का गुंडा’ बताते हुए आरोप लगाया कि उसने हाथापाई करके उनकी आवाज दबाने की कोशिश की थी।

राज्यपाल ने नई दिल्ली में मंगलवार को दिसंबर 2019 में हुई उस घटना का जिक्र किया, जब वह कन्नूर विश्वविद्यालय की तरफ से आयोजित भारतीय इतिहास कांग्रेस के 80वें अधिवेशन का उद्घाटन करने गए थे। वहां इरफ़ान हबीब भी एक वक्ता थे। खान ने आरोप लगाया कि इतिहासकार सीधे उनके पास हाथापाई करने पहुंच गया था। दरअसल उनके भाषण के दौरान एजेंडावादी इतिहासकर इरफान हबीब स्टेज पर पहुंच गए और उन्होंने राज्यपाल के एडीसी और सुरक्षा अधिकारियों के साथ धक्का-मुक्की की थी.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने नई दिल्ली में मीडिया के एक सवाल के जवाब में यह बातें कही। उन्होंने कहा, “क्या किसी अकादमिक विद्वान का काम झगड़ना है। इरफान हबीब ‘गली का गुंडा है’। जब मैंने जवाब देने की कोशिश की तब उन्होंने हाथापाई करके मेरी आवाज दबाने की कोशिश।”

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान पर कथित इतिहासकार इरफान हबीब द्वारा की गयी हाथापाई के बाद वामपंथी मीडिया ने हबीब को बचाने के लिए अपना एजेंडा भी चलाया था. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उस समय इस बात का विरोध करना तो दूर की बात थी वामपंथी मीडिया ने ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’ वाली मुहावरे के तर्ज पर आरिफ मोहम्मद खान को ही निशाने पर ले लिया था . देश विरोधी खबरें चलाने वाला पोर्टल द वायर ने शीर्षक लिखा था , ‘सीएए पर केरल राज्यपाल के समर्थन के विरोध में इरफान हबीब ने मोर्चा संभाला’, और पूरे लेख में द वायर ने यह दिखाने की कोशिश की थी कि असल दोषी इरफान हबीब नहीं, आरिफ मोहम्मद खान थे, जिनके कारण इरफान हबीब को ऐसा कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा.

इन सबमें भला एनडीटीवी कैसे पीछे रहता? एनडीटीवी ने भी आरिफ मोहम्मद खान की प्रतिक्रिया पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हुए लेख प्रकाशित किया, ‘ आरिफ़ मोहम्मद खान का चौंकने वाला बयान-दर्शकों में विरोधी गुट ‘बजबजाते नालियों’ के समान है’

साभार- एनडीटीवी पोर्टल

दरअसल भारतीय इतिहास कांग्रेस यानि IHC के उपाध्यक्ष हैं इरफान हबीब और इसके सदस्य हैं रोमिला थापर, डीएन झा, बिपिन चन्द्र, सतीश चन्द्र, आरएस शर्मा, मृदुला मुखर्जी, नुरुल हसन, सुमित सरकार, अथर अली और कई ऐसी ही वामपंथी मानसिकता वाले लोग। राम मंदिर मामले पर इन सभी महान इतिहासकारों ने दशकों तक देश को गुमराह करने का काम किया था। ये सभी वो लोग हैं जिनका मानना है कि इतिहास के साथ छेडछाड़ करना इनका जन्मसिद्ध अधिकार है, और ये जो मर्जी चाहे इतिहास के साथ कर सकते हैं। इरफान हबीब जैसे लोग दावा करते हैं कि सिर्फ उनका बताया इतिहास ही एकमात्र सच्चा इतिहास है, और किसी के पास उनसे सवाल करना का अधिकार नहीं है।

जाहिर है दशकों तक इन वामपंथी इतिहासकारों ने सिर्फ मुगलों का महिमामंडन किया है और कांग्रेस पार्टी का गुणगान किया है. लेकिन अब इनकी करतूत एक-एक कर के सामने आ रही है.

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