‘बलिदानम वीर लक्षणम’

“जहाज के ब्रिज पर लगी कप्तान की कुर्सी पर वो शख्स शांत बैठा था ... बिना हड़बड़ी और घबराहट के, जब तक जहाज दिखता रहा, हम उन की ओर देखते रहे ... ” ये 49 साल पहले हुई उस जंग में जिंदा बचे एक नौसैनिक का बयान था, अपने जहाज के कप्तान को याद करते हुए। आज इसकी तारीखी प्रासंगिकता है, क्योंकि 9 दिसंबर 1971 को ही ये जहाज डूबा था। लेकिन ये कहानी सिर्फ एक जहाज के डूबने की नहीं है ... ये कप्तान महेंद्रनाथ मुल्ला की चुनी हुई शहादत की कहानी है।

सशस्त्र सेना झंडा दिवस पर एक अनुरोध

मित्रों, आज 7 दिसम्बर है ... 1949 से प्रति वर्ष यह दिन सशस्त्र सेना झंडा दिवस या झंडा दिवस के रूप में मनाया जाता है | यह भारतीय सशस्त्र बलों के कर्मियों के कल्याण हेतु देश की जनता से दान स्वरूप धन-संग्रह के प्रति समर्पित एक दिन है। सभी मित्रों से अनुरोध है कि आज के दिन कम से कम 101/- रुपये Armed Forces Flag Day Fund में जमा जरूर करवाएं।

चिड़िया नाल मैं बाज लडावां तां गोविंद सिंह नाम धरावां

अगर मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी का कुशल नेतृत्व और जवानों का रण कौशल न होता तो हमें यह दृश्य कभी न दिखते दुश्मन के टैंक पर चढ़ विजयी भारतीय जवान भांगड़ा कर रहे हैं | इसी बहादुरी के लिए मेजर (बाद में ब्रिगेडियर) चांदपुरी को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

दुर्घटना या नरसंहार !!?? – सन ८४ का भोपाल गैस कांड

८४ के सिख दंगों के बाद भोपाल गैस कांड वो दूसरा नरसंहार था जिस की ज़िम्मेदारी कॉंग्रेस और राजीव गांधी पर आती है | आज इस त्रासदी की 36 वीं बरसी है। इतिहास साक्षी है कि किस प्रकार तब की कांग्रेस सरकार और प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस त्रासदी के सब से बड़े दोषी वॉरेन एंडरसन को सभी कानूनों को ताक पर रख बच निकल जाने का पूरा मौका दिया और पीड़ितों को न्याय से वंचित रखा। दोषियों को सज़ा दिलवाने की जगह उन्हें पूर्ण संरक्षण देते हुए देश से भाग जाने दिया गया|

एक बार विदाई दे माँ … खुदीराम बोस

खुदीराम बोस (जन्म: १८८९ - मृत्यु : १९०८) भारतीय स्वाधीनता के लिये मात्र १९ साल की उम्र में हिन्दुस्तान की आजादी के लिये फाँसी पर चढ़ गये। कुछ इतिहासकारों की यह धारणा है कि वे अपने देश के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के ज्वलन्त तथा युवा क्रान्तिकारी देशभक्त थे।

कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले !!

बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी ... आज के इंटरनेट युग का विचारशील युवा आप से ये जरूर पूछेगा या स्वयं गूगल पर जरूर खोजेगा कि ऐसे क्या कारण थे कि १९४८ में एक युवा द्वारा उस व्यक्ति की हत्या की गई जिसे कि देश की स्वतंत्रता प्राप्ति का प्रमुख कारण बताया जाता था।

बस इतना याद रहे … एक साथी और भी था …

"उपर मत आना, मैं उन्हें संभाल लूंगा", ये संभवतया उनके द्वारा अपने साथियों को कहे गए अंतिम शब्द थे, ऐसा कहते कहते ही मेजर संदीप ऑपरेशन ब्लैक टोरनेडो के दौरान मुंबई के ताज होटल के अन्दर सशस्त्र आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गए|

“जा कर रण में ललकारी थी, वह तो झाँसी की झलकारी थी !!”

एक बार गौरी पूजा के अवसर पर झलकारी गाँव की अन्य महिलाओं के साथ महारानी को सम्मान देने झाँसी के किले में गयीं, वहाँ रानी लक्ष्मीबाई उन्हें देख कर अवाक रह गयी क्योंकि झलकारी बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह दिखतीं थीं (दोनो के रूप में आलौकिक समानता थी)। अन्य औरतों से झलकारी की बहादुरी के किस्से सुनकर रानी लक्ष्मीबाई बहुत प्रभावित हुईं। रानी ने झलकारी को दुर्गा सेना में शामिल करने का आदेश दिया।

महाबलिदानी महारानी लक्ष्मी बाई की १९२ वीं जयंती

बलिदानों की धरती भारत में ऐसे-ऐसे वीरों ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने रक्त से देश प्रेम की अमिट गाथाएं लिखीं। यहाँ की ललनाएं भी इस कार्य में कभी किसी से पीछे नहीं रहीं, उन्हीं में से एक का नाम है- झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई। उन्होंने न केवल भारत की बल्कि विश्व की महिलाओं को गौरवान्वित किया। उनका जीवन स्वयं में वीरोचित गुणों से भरपूर, अमर देशभक्ति और बलिदान की एक अनुपम गाथा है।

अमर क्रांतिकारी स्व॰ श्री बटुकेश्वर दत्त जी की ११० वीं जयंती

8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा (वर्तमान का संसद भवन) में भगत सिंह के साथ बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्य की तानाशाही का विरोध किया। बम विस्फोट बिना किसी को नुकसान पहुंचाए सिर्फ पर्चे के माध्यम से अपनी बात को प्रचारित करने के लिए किया गया था। उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था, जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया।